— डॉ. अनन्या स्वराज —
बिहार में चुनावी चहलपहल शुरू हो चुकी है। बिहार विधानसभा चुनाव वर्ष 2025 में कुल 243 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अक्टूबर-नवम्बर में होने वाला है। यह चुनाव भारत निर्वाचन आयोग द्वारा दो या तीन चरणों में सम्पन्न किया जाएगा। बिहार में महिला वोट बैंक की वृद्धि नए राजनीतिक आयामों को तैयार कर रही है। बिहार विधानसभा चुनाव 2019 के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर मालूम चलता है कि मतदाताओं की कुल संख्या 7 करोड़ 12 लाख 16 हजार 286 थी, जिसमें पुरुष मतदाता 3 करोड़ 76 लाख 81 हजार 329 तथा महिला वोटर 3 करोड़ 35 लाख 32 हजार 797 की थी। भले ही संख्यात्मक रूप से महिला मतदाताओं की संख्या कम थी, परन्तु मतदान प्रतिशत में इनका योगदान पुरुषों से अधिक था। कुल मतदान 57.33 प्रतिशत था, जिसमें पुरुष मतदाताओं का 54.90 प्रतिशत मतदान था, जबकि महिला वोटरों का मतदान 59.58 प्रतिशत था। अतः हम देखते हैं कि बिहार में महिला मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हो रही है। इसका कारण शराबबंदी, नौकरी में महिला आरक्षण, चुनावों में महिला आरक्षण, सुरक्षा और अन्य विकास के कार्य हैं। महिलाएँ अब यह सुरक्षा और आजादी खोना नहीं चाहती हैं। 2019 के चुनाव मतदान में पुरुषों के मुकाबले महिलाएँ 112 फीसदी आगे थीं। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी 53 प्रतिशत पुरुष और 59.45 प्रतिशत महिलाओं ने वोट डाले थे। अर्थात, पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने 6.45 प्रतिशत अधिक मताधिकार का प्रयोग किया था।
यह बेहद हर्षोल्लास का विषय है कि बिहार में महिला मतदाताओं में राजनीतिक जागरूकता आ रही है। परन्तु समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से इस विषय पर चर्चा अवश्य होनी चाहिए कि महिलाओं में राजनीतिक समझ की प्रक्रिया, राजनीतिक समाजीकरण और राजनीतिक गतिशीलता का स्रोत क्या है? प्रक्रियाओं की उपयुक्त विधियाँ उचित परिणाम का उद्गम होती हैं। चुनावों के मद्देनजर रैलियाँ अहम भूमिका निभाती आई हैं। 22 अगस्त 2025 को तथागत बुद्ध की पावन भूमि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महाजनसभा का आयोजन किया गया था। केन्द्र सरकार ने उदारतापूर्वक बिहार में विकास कार्यक्रमों के लिए अपने खजाने को खोला है और 12,992 करोड़ रूपयों की कई परियोजनाओं का उद्घाटन किया, जैसे- सुलभ आवागमन के लिए गंगा पर औंटा से सिमरिया तक छ: लेन वाला पुल, वैशाली से कोडरमा के बीच का बुद्ध सर्किट ट्रेन, बक्सर में 660 मेगावाट क्षमता वाला थर्मल पावर प्लांट, मुजफ्फरपुर के होमी भाभा कैंसर अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र का निर्माण, मुंगेर में सीवरेज नेटवर्क और एसटीपी परियोजना, बख्तियारपुर से मोखामा एनएच-31 सड़क का सुधार आदि के निर्माण की घोषणा की।
महाजनसभा के दौरान बोधगया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और महागठबंधन के अन्य गणमान्य मंत्रीगणों के दर्शन के लिए महिलाओं में विशेष उत्साह देखा गया। बोधगया के प्रांगण में डेढ़ लाख लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई थी। साथ ही अन्य टेंट में लोगों के खड़े रहने की भी व्यवस्था की गई थी। अनुमान के मुताबिक लाखों में भीड़ उमड़ी। दर्शक दीर्घा में महिलाओं की बहुतायत में भीड़ देखी गई। महिलाएँ गयाजी, नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद, पटना आदि ज़िलों से आई थीं। जीविका, आशा और अन्य कार्यकर्ताओं की भीड़ भी जुटाई गई थी। इसमें तो कोई दो राय नहीं है कि नीतीश काल में महिलाओं के अस्तित्व का कायाकल्प हुआ है। महिलाओं के शिक्षा और रोजगार में आरक्षण से महिलाओं के प्रतिनिधित्व में वृद्धि तो हुई है, साथ ही उनके अस्तित्व को नई पहचान मिली है।
परन्तु चुनावी दौर में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए। चुनावी महारैलियों में महिलाओं को बुलाना ही सिर्फ काफी नहीं है, बल्कि महिलाओं की मूलभूत सुरक्षा का ध्यान रखना भी प्रशासन का कार्य है। रैली में आने वाली अधिकांश महिलाओं की पृष्ठभूमि ग्रामीण थी। समाज के हाशिए तबकों की अधिकांश महिलाएँ गणमान्य राजनीतिक नायकों की एक झलक पाने के लिए उत्साहित थीं। दूर-दूर से बसों से लाई गई महिलाएँ यात्रा के दौरान आधार कार्ड, बैंक पासबुक इत्यादि कागजात अपने पर्स में रखकर ही निकली थीं। परन्तु उनके सामान रखने की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण कई महिलाओं के पर्स और सोने के गहने चोरी हो गए। लाखों की भीड़ के हिसाब से शौचालय और पेयजल की व्यवस्था नगण्य थी। खाने-पीने के अभाव के साथ सुरक्षा बल में भी कमी देखी गई थी। कई महिलाएँ किसी आर्थिक प्रलोभन, किसी दबाव और मीटिंग के नाम पर भी आई थीं। इन महिलाओं को कई प्रकार की असुविधाओं का सामना करना पड़ा। इस भव्य कार्यक्रम में किसी बड़ी अनहोनी का न होना और कार्यक्रम का पूरा हो जाना बड़ी बात है। परन्तु इन कार्यक्रमों में आम महिलाओं के प्रति प्रबंधन प्रणालियों को देखकर थोड़ी निराशा होती है। ऐसे अवसर महिलाओं की राजनीतिक जागरूकता और राजनीतिक सामाजीकरण पर भी प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। आर्थिक अवसरों को पाने, घर-परिवार को सुचारू रूप से चलाने, नौकरी बचाने आदि के लिए राजनीतिक चुनावी महारैलियों में शामिल होना राजनीतिक जागरूकता को प्रदर्शित नहीं करता है। महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी का अर्थ सिर्फ गणमान्य नेताओं को देखना नहीं होता है। महिलाओं की राजनीतिक गतिशीलता और ऊर्जा को समुचित मार्गदर्शन देने की जरूरत है, यह महिला सशक्तिकरण और महिला संवेदीकरण को बढ़ावा देने के साथ लोकतांत्रिक चेतना में वृद्धि करेगा। बिहार को जरूरत है नियोजित रूप से राजनीति में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करने की। बाहुबली और पितृसत्तात्मक विचारधारा के लोगों के हाथों की कठपुतली बनना महिलाओं की ऊर्जा और क्षमताओं का दमन करता है।
विभिन्न तबकों से महिलाओं की राजनीतिक गतिविधियों में भागीदारी बढ़ाने, राजनीतिक दलों में शामिल होने, राजनीतिक सक्रियता और प्रक्रियाओं में भाग लेने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है। राजनीतिक संस्कृति को समझने के लिए राजनीतिक सामाजीकरण की प्रणाली व्यवस्था का निर्माण आवश्यक है। सिर्फ आरक्षण देना काफी नहीं है, ठीक उसी प्रकार से जैसे कि रैलियों में सिर्फ महिलाओं को बुलाना ही काफी नहीं है। समुचित व्यवस्था, पारदर्शिता और सुरक्षा ऐसी होनी चाहिए कि नई आम महिलाओं के लिए भी राजनीति में आगमन, ठहराव और निर्गमन की प्रक्रिया सुगम और गरिमापूर्ण हो। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए यह आवश्यक है कि राजनीतिक चेतना को नियोजित ढंग से विकसित किया जाए।
यह लेख लेखक के निजी विचार हैं, जरूरी नहीं कि यह हमारे विचारों से मेल खाते हों।
Discover more from समता मार्ग
Subscribe to get the latest posts sent to your email.

















