नंदकिशोर आचार्य हिंदी साहित्य की शान हैं। साहित्य की हर विधा में उन्होंने लिखा है। साहित्य अकादेमी सम्मान भले कवि के नाते मिला, पर नाटककार और आलोचक के रूप में उनकी अपनी साख है।
गांधी विचार और शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका काम अहम रहा है। राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति और बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति के वे अध्यक्ष रहे। इतिहास के शिक्षक रहे, मगर विभिन्न विश्वविद्यालयों में गांधी विचार पढ़ाया। अहिंसा कोश का संपादन किया।
यों संपादक की भूमिका में भी कई पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे। मेरे लिए निजी उपलब्धि यह रही कि पत्रकारिता में प्रवेश का अवसर 1977 में उनके संपादन में निकलने वाले साप्ताहिक ‘मरुदीप’ से मिला। तब मैं शौक़िया रंगकर्म से जुड़ा था। उनका पहला नाटक “किसी और का सपना” मैंने ही निर्देशित किया था।
31 अगस्त को आचार्यजी 80 वर्ष के हो रहे हैं। उन्हें अग्रिम बधाई। राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति के अध्यक्ष राजेंद्र बोड़ा, सचिव हिमांशु व्यास और साहित्य की दुनिया से राजाराम भादू, अंजु ढडढा, माधव हाड़ा आदि ने अनेक सहृदय मित्रों ने मिलकर आने वाले रविवार एक अंतरंग आयोजन को शक्ल दी है।
आयोजन सबके लिए खुला है। आइए। एक साहित्यिक जन्मदिन अनौपचारिक संवाद और संस्मरणों में मनाइए।
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