रामास्वामी पेरियार की 146 वी जयंती के अवसर पर विनम्र अभिवादन.

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Ramaswamy Periyar

suresh khairnar

— डॉ. सुरेश खैरनार —

मिलनाडु के ईरोड में 17 सितंबर 1879 में वेंकट रामास्वामी नाम के पिता वेंकटप्पा नायडू धनी व्यापारी थे. इसलिए घरपर भजन किर्तन तथा हिंदू महाकाव्य रामायण, महाभारत और पुराणों के पाठ लगातार चलते रहते थे. इसी से तंग आकर पंद्रह साल के रामास्वामी ने घर से भागकर उत्तर की काशी मतलब बनारस की राह पकडी. लेकिन बनारस के धार्मिक पाखंड को देखते हुए, उनकी रही सही आस्था भी जलकर राख हो गई. इसलिए वापस ईरोड लौट कर आए, और ईरोड के नगराध्यक्ष बन गए.

केरल के मशहूर मंदिर वायकोम के सत्याग्रह में चक्रवर्ती राजगोपालचारी की प्रेरणा से कांग्रेस में शामिल हो गए. असहयोग आंदोलन में भी भाग लिया, और जेल गए. 1922 में मद्रास प्रेसिडेंन्सि कांग्रेस के अध्यक्ष बने. और सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रस्ताव रखा. जो कांग्रेस ने ठुकरा दिया. इसलिए कांग्रेस से मोहभंग होने की वजह से 1925 में कांग्रेस को छोडते हूऐ , उन्हें लगा कि यह पार्टी दलितों के बारे में असंवेदनशील है. उसके लिए उन्होंने दलितों के समर्थन में 1944 में जस्टिस पार्टी की स्थापना की. लेकिन चुनाव में पार्टी की बुरी तरह से हार देखकर, उन्होंने द्रविड़ मुनेत्र कझगम पार्टी की स्थापना की. और खुद सत्ता की राजनीति से दूर रहें. और स्रि – शुद्रो के लिए लड़ाई लडने लगे.

1937 में चक्रवर्ती राजगोपालचारी जब मद्रास प्रेसिडेंन्सि के मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने हिंदी को अनिवार्य घोषित किया. तो पेरियार ने हिंदी विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करने की वजह से, सरकारने उन्हें 1938 में जेल में बंद कर दिया. उन्होंने प्रथम बार तमिलनाडु तमिलों के लिए घोषणा की. 1925 में सेल्फ रिस्पेक्ट मुव्हमेंट की शुरुआत करते हैं . और 1929 में यूरोप, सोवियत रुस, और मलेशिया की यात्रा की. 1929 अपना नायकर उपनाम का त्याग कर के, उसकी जगह पेरियार मतलब पवित्र आत्मा यह उपनाम रख लिया.

1938 तमिलनाडु तमिलों के लिए नारा दिया. 1944 में जस्टिस पार्टी के नाम को बदल कर द्रविड़ मुनेत्र कझगम(डीएमके) किया. 1948 में अपनी उम्र के 69 वे साल मे अपनी उम्र से चालिस साल छोटी लड़की, जो उनकी निजी सहायक थी, और पहली पत्नी का निधन हो गया था. इसलिए उस लड़की के साथ शादी करने के निर्णय को लेकर काफी विवाद हुआ. लेकिन उन्होंने उसकी परवाह नहीं की, और दूसरी शादी की थी.

1949 में पेरियार और अण्णा दुराई के बीच मतभेद होने की वजह से डीएमके का पहलीबार विभाजन हुआ. 24 दिसंबर 1973 के दिन 94 की उम्र में निधन हो गया. लेकिन तमिलनाडु में द्रविड़ संस्कृति को लेकर पहली बार किसी ने स्वाभिमान को बढ़ावा देने के लिए जबरदस्त आंदोलन करने की वजह से आज तमिलनाडु में अलट-पलट कर डीएमके की सरकारों का राज जारी है. और इस राजनीतिकी निंव रामास्वामी पेरियार ने ही डाली थी.

और उसी द्रविड़ पहचान की बदौलत तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पुत्र और युवा मंत्री उदयनिधी स्टालिन ने, सनातन धर्म के बारे में बोलते हुए, उसकी तुलना मलेरिया या डेंग्यू जैसी बिमारीयो के साथ की है. क्योंकि तमिलनाडु में मनुस्मृति से लेकर सनातन धर्म के खिलाफ आंदोलन सौ साल से पहले ही शुरू करने वाले पायोनियर रामास्वामी पेरियारकी 144 वी जयंती के अवसर पर आयोजित समारोह में उदयनिधी स्टालिन ने सनातन धर्म की आलोचना की तो. तुरंत ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी राजनीतिक इकाई भाजपा ने सनातन धर्म की तारीफ के पुल बांधने की मुहिम शुरू कर दी.

क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में सिर्फ और सिर्फ तथाकथित सनातन धर्म ( ब्राम्हण धर्म ) की रक्षा के लिए की गई है . जो हजारों वर्ष पुरानी मनुस्मृति के अनुसार समाज को चलाना चाहते हैं. यहातक की डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर ने 26 नवंबर 1949 के दिन संविधान सभा में भारतीय संविधान की घोषणा करने के बाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनायझरके 30 नवंबर के 1949 संपादकीय में कहा गया कि, “यह संविधान देश – विदेश के सविंधानो की नकल कर के गुधडी जैसे बनाया है. इसमें हमारे देश के कोई भी मार्गदर्शक तत्व जो भारत मनू ने स्पार्टा के लायकरगस और पर्शियन सोलोन के भी पहले से विश्व के सबसे बेहतरीन संविधान मनुस्मृति के रहते हुए, इस की कोई जरूरत नहीं थी. मनुस्मृति में हमारे देश की संस्कृति तथा अध्यात्मिक नियम और कानून, जिसका पालन हजारों सालों से हमारे देश में हो रहा है. और मनुस्मृति ही हमारा हिंदू कानून है. ”

जिस मनुस्मृति में स्रि और शुद्र जातियों का जन्म पैर के अंगुठे से हुआ है. ऐसा लिखा हुआ है. और उन्हें वेदों का अध्ययन करने कि मनाही से लेकर, अगर कहीं से वेदमंत्र सुन लिया तो, कानों में शिशे का उबला हुआ रस डाला जाता था. और शुद्र जातियों का एकमात्र काम है, ऊंची जातियों की सेवा करना.

चुनाव को देखते हुए गोपनीयता रखते हुए अचानक महिलाओं के विधानसभा और लोकसभा में 33% आरक्षण का बीस साल बाद का गाजर दिखाने वाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक ईकाई भाजपा उसी मनुस्मृति के अनुसार जिसका संघ ने हमारे संविधान के घोषणा के बाद, भारत का आदर्श संविधान मनुस्मृति की वकालत की है. और उस मनुस्मृति में महिलाओं के लिए कौन से नियम है ? स्त्रियों को बचपन में पिता की छत्रछाया में रहना है, जवानी में अपने पति, और बुढ़ापे में अपने बेटे के कृपा पर रहना चाहिए. वह अकेली नहीं रह सकती. क्योंकि वह कमजोर है. और उसे हमेशा ही पुरुषों की कृपा से रहना चाहिए. और अभी लोकसभा में तथाकथित महिलाओं के आरक्षण का विधेयक भी. उन्हि पुरुषों की शुद्र राजनीतिक चालबाजी का तमाशा है. क्योंकि यह विधेयक प्रत्यक्ष रूप से अमल में आने के लिए, और भी बीस साल लगने वाले हैं. क्योंकि गृहमंत्री लोकसभा में साफ-साफ बोले है कि “जबतक जनगणना नही होती, और उसके बाद मतदारसंघों का परिसीमन नही होता. तब तक इस पुरी प्रक्रिया को आजसे कम-से-कम पंद्रह से बीस साल लगने वाले हैं.

इसका मतलब डॉ. राम मनोहर लोहिया की भाषा में “भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी लडाई हिंदू धर्म में उदारवाद और कट्टरता की लड़ाई पिछले पांच हजार सालों से भी अधिक समय से चल रही है. और उसका अंत अभी भी दिखाई नहीं पड़ता, इस बात की कभी कोशिश नहीं की गई, जो होनी चाहिए थी. इस लड़ाई को मद्देनजर रख कर हिंदुस्तान के इतिहास को देखा जाए लेकिन देश में जो कुछ होता है, उसका बहुत बड़ा हिस्सा इसी कारण होता है. ”

कभी कट्टरपंथी हावी हो जाते हैं. तो कभी उदारपंथी. फिलहाल 1985 से बाबरी मस्जिद के आड में कट्टरपंथी अपने रथयात्राओ के द्वारा तथा दुनिया भर की शिलापूजा, शिलान्यास और अन्य धार्मिक अंधभक्ति के अभियानों के माध्यम से, देश में धार्मिक ध्रुविकरण करने में कामयाबी हासिल की है. और उसकी बदौलत नरेंद्र मोदी भारतीय संसदीय इतिहास में पहली बार 2014 में. और उसके पहले नई शताब्दी की शुरुआत में जोड़तोड़ करके तथाकथित एनडीए नामका 26 विभिन्न दलों के मददसे सबसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे. और 2014 से नरेंद्र मोदी को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाबी मिली. और दोबारा 2019 में और भी अधिक सिटे लेकर गणेश चतुर्थी तिथि के दिन जो भारत के संविधान के विपरीत है. नई संसद के प्रवेश करने का कार्यक्रम 100 सौ ब्राम्हणों को दक्षिण भारत से लाकर सोंगल की प्रतिस्थापना जिसका तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री अन्ना दुराई ने जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर सोंगल के बारे में सामंतवाद के प्रतीक बोलते हूऐ विरोध किया था. और दक्षिण भारत में अपना चुनाव प्रचार के लिए उपराष्ट्रपति से लेकर नई संसद के उद्घाटन समारोह के लिए दक्षिण भारत से ब्राम्हणों को लाने के पिछे भी संघ और भाजपा को दक्षिण भारत में राजनीतिक लाभ के मोह माया की वजह है. हालांकि संघ भाजपा का धर्म सिर्फ राजनीतिक ध्रुवीकरण का हथकंडे के अलावा कुछ नहीं है.

सनातन धर्म पिछडी जातियों के साथ हजारों वर्ष से कैसा व्यवहार करते आ रहा है ? यह बात आजसे 144 साल पहले 17 सितंबर 1879 को पैदा हुए इरोड वेंकट रामास्वामी नायकर नाम के इरोड में वेंकत्पा नायडू नाम के एक धनी व्यापारी के घर में पैदा हुए ,दक्षिण के, समाजसुधारक श्री.रामास्वामी नायकर 24 दिसंबर 1973 के दिन मृत्यु होने के पहले 94 साल के दिर्घायू के जीवन में, पंद्रह साल की उम्र में पिताजी से अनबन होने की वजह से काशी चले गए. और काशी का अति पाखंड युक्त माहौल देखकर नास्तिक बनकर ही लौटे थे. उम्र के पंद्रह साल के रामास्वामी ने अपने काशी के अनुभवों के बाद सनातन धर्म के खिलाफ एल्गार शुरू करते हूऐ एतिहासिक कार्य किया है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी राजनीतिक ईकाई भाजपा उसी सनातन धर्म में सति की प्रथा से लेकर छूआछूत तथा स्रि – शुद्रो के साथ हजारों वर्ष से कैसा व्यवहार होता आया है ? उसके समर्थन करने वाले प्रतिनिधि है. जिसके खिलाफ महात्मा ज्योतिबा फुले, राजा राम मोहन राय, इश्वर चंद्र विद्यासागर, रामास्वामी पेरियार, डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने अथक प्रयास किए थे. इसी सनातन धर्म की उचनिच की प्रथा की वजह से आज स्रि – शुद्रो की स्थिति आर्थिक सामाजिक पिछड़ेपन की स्थिति बनाने के लिए जिम्मेदार है. उस सनातन धर्म की रक्षा के लिए बढ़चढ़कर आगे आएं हैं.

दोसौ साल पहले महिलाओं को पति के मर जाने के बाद उसकी चिता पर जबरदस्ती से जलाने वाले सनातन धर्म का बचाव करते हुए शर्म आनी चाहिए. वैसे ही उसी सनातन धर्म के अनुसार शुद्रो को मंदिर प्रवेश की बंदी से लेकर, उसके गले में मटका और कमरपर झाडू बांधकर चलने वाली परंपरा कौन सा मानव धर्म में आती है ? पेरियार रामास्वामी नायकर जिन्होंने आजसे सौ साल पहले सनातन धर्म की मानवताविरोधी – स्त्रियों के विरोधी कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. उदयनिधी सिर्फ उसको याद दिलाने की बात कर रहे हैं. और चांद और सुरज पर अपने यानों को भेजने वाले लोगों को अपने धर्म की कुरीतियों का खुलकर समर्थन करते हुए देखकर हैरानी होती है. और आजसे दोसौ साल पहले महात्मा ज्योतिबा फुले, राजाराम मोहन राय पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर, केशवचंद्र सेन, देवेंद्रनाथ ठाकुर, रामास्वामी पेरियार तथा डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने भी यही बातों को ध्यान में रखते हुए उसके खिलाफ अपनी जिंदगी भर प्रचार – प्रसार किया है. और भारत विश्व गुरु बनाने के लिए निकले लोग एक ही समय में चांद – सुरज पर संशोधन करने के लिए यान भेज रहे हैं. और दुसरी तरफ सनातन धर्म जैसे विषमताओं का समर्थन करने वाले पुराने धर्म की रक्षा करने की बात कर रहे हैं. इससे बडा पाखंड कोई और हो नही सकता.

और उसी दक्षिणी भारत के ब्राम्हणों को भारत सरकार के खर्चे से लाकर नई संसद के पूजा- पाठ और होमहवन जो हमारे देश के संविधान के खिलाफ होने के बावजूद जबरदस्ती से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छाया में पले बढे प्रधानमंत्री सनातन धर्म के हिसाब से शुद्र में शुमार होता है. लेकिन संघ के रेजिमेंटेशन की वजह से नरेंद्र मोदी गणेश चतुर्थी को संसद भवन में प्रवेश करने जैसे, पाखंड कीऐ हैं. आज पेरियार के 146 वे जयंती पर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि उन्होंने जिस सनातन धर्म के खिलाफ सौ साल पहले एल्गार शुरू किया था. उसे दोबारा करना है.


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