— डॉक्टर लक्ष्मण यादव —
“प्रख्यात समाजवादी विचारक किशन पटनायक जी के साथ बैठे पिताजी. यह तस्वीर मेरे जीवन का एक ऐसा आत्मीय कोना है, जहाँ ख़ुद को सहेजता और गढ़ता रहता हूँ”
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आज पिताजी, कॉमरेड शिव नारायण का स्मृति दिवस है। पिताजी का जीवन समाजवादी विचार और संघर्ष की जीवंत मिसाल रहा है। इसी अवसर पर मुझे वे दिन याद आते हैं, जब पिताजी किशन पटनायक जी के साथ समाजवादी आंदोलन की धारा को मज़बूत करने में लगे रहते थे। किशन जी डॉ. राममनोहर लोहिया की समाजवादी पाठशाला के सबसे अग्रणी हस्ताक्षर थे। किशन जी, अपने विचार, स्वभाव और स्वप्न में सच्चे समाजवादी थे। पिताजी उन दिनों बड़े फ़क़्र के साथ अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों पर किशन जी के साथ संवाद और वैचारिक संघर्ष को तरजीह देते थी।
दोनों की एक तस्वीर मेरे पास है। यह तस्वीर मेरे लिए सिर्फ़ एक निजी याद मात्र नहीं, बल्कि उस दौर की ऐतिहासिक गवाही का आत्मीय दस्तावेज़ है, जब आंदोलन और विचार को जीने वाले लोग शिद्दत से काम कर रहे थे। बात 1996 की है। किशन जी आज़मगढ़ आये हुए थे। समाजवाद के सबसे बुनियादी परचम को हाथ में थामें किशन जी देश भर में घूमकर अपने मिज़ाज के लोगों को जोड़ रहे थे। दिन में आज़मगढ़ में आयोजन हुआ। शाम को किशन जी हमारे गाँव आ गये। पिताजी के साथ बरामदे में सोये। कबीर पंथी बड़े पिताजी ने सब इंतज़ाम किए थे। देर रात तक बतियाते रहे।
किशन जी, डॉ. राममनोहर लोहिया की भारतीय समाजवाद की वैचारिक परंपरा के सबसे समर्पित और ज़मीनी वाहक थे। लोहिया का समाजवाद उन्होंने सिर्फ़ किताबों में नहीं, बल्कि जनता के संघर्षों में ज़िंदा रखा। किशन जी ने कहा था “भारत में राजनीति का विकल्प सत्ता के ढाँचे को बदलने से नहीं, समाज के बुनियादी ढाँचे को बदलने से आएगा।” यह वाक्य आज भी हमें चेताता है कि असली समाजवाद केवल नारे या चुनावी वादों से नहीं, बल्कि जनता की आकांक्षाओं और संघर्षों के साथ गहरे जुड़ाव से पैदा होता है। आज भी इस देश को अगर कोई सच्ची राह दिखा सकता है, तो वह है सामाजिक न्याय का समाजवादी विचार।
बड़े फ़क़्र के साथ कहता हूँ कि मेरे पिताजी अपने साथियों के साथ आज़मगढ़ में इसी समाजवादी संघर्षों की विरासत के लिए समर्पित नाम थे। किशन जी ने अपने जीवन को छात्र-युवा संघर्ष, वैकल्पिक राजनीति और भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन के लिए समर्पित किया। 1974 के छात्र आंदोलन में वे प्रेरणा-स्रोत थे। वे लगातार कहते रहे कि राजनीति में विचार और नैतिकता का पतन ही लोकतंत्र का सबसे बड़ा संकट है। उन्होंने सत्ता की राजनीति से परे, एक ऐसी वैकल्पिक राजनीति की ज़रूरत बताई थी; जो गरीब, दलित, किसान, मज़दूर और वंचित समुदायों की आवाज़ बने।
आज जब हम अपने समय की चुनौतियों को देखते हैं मसलन कॉरपोरेट पूँजी की राजनीति पर पकड़, बढ़ती आर्थिक असमानता, जाति और समुदाय के आधार पर अन्याय, लोकतांत्रिक संस्थाओं का क्षरण और समाज में नफ़रत और विभाजन की राजनीति; तो किशन पटनायक और लोहिया का समाजवाद और भी प्रासंगिक हो उठता है। मेरे पिता, कॉमरेड शिव नारायण, ने इन्हीं विचारों को अपनी ज़िंदगी में साधा। उनके संघर्ष और किशन जी की वैचारिक ईमानदारी ने हमें यह सिखाया कि समाजवाद सिर्फ़ एक राजनीतिक विचार नहीं, बल्कि एक जीवन दृष्टि है; जहाँ समानता, न्याय और भाईचारा हमारे रोज़मर्रा के आचरण का हिस्सा बनते हैं।
इस बार 27 सितंबर को, किशन पटनायक जी के स्मृति दिवस पर, मैं उनकी जन्मभूमि बड़गर, उड़ीसा जा रहा हूँ। इस बार वहाँ के ऐतिहासिक समारोह में मुझे मुख्य अतिथि बनने का मौक़ा मिला है। मेरे लिए यह “विचारों और संघर्षों की जन्मभूमि” पर लौटना है; जहाँ से समाजवादी राजनीति की नई पीढ़ी को दिशा मिली थी। वहाँ जाकर मैं अपने पिता और किशन जी दोनों को नमन करूंगा और यह संकल्प लूँगा कि समाजवाद की मशाल जो उन्होंने हमें सौंपी थी; उसके प्रकाश को आज के अंधेरों में और भी मज़बूती से जलाए रखना है। पिताजी को किशन जी के बिना और किशन जी को पिताजी के बिना याद कर पाना मेरे लिए असंभव लगता है।
किशन पटनायक जी की जीवन दृष्टि आज भी हमें यह याद दिलाती है कि “लोकतंत्र तभी बचेगा जब जनता का विश्वास राजनीति में बचेगा।” और जनता का विश्वास तभी बचेगा जब राजनीति जनसंघर्षों और न्याय के प्रति प्रतिबद्ध होगी।
नमन किशन पटनायक और कॉमरेड शिव नारायण को; जिन्होंने हमें सिखाया कि संघर्ष, विचार और वैकल्पिक राजनीति ही असली विरासत हैं।
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