सुबह सूरज ठीक से उगा नहीं। सूरज पर कटे कटे बादल छाये रहे। ठंड के कारण खिड़कियां बंद रहती हैं, इसलिए चिड़िया के स्वर सुनाई नहीं पड़े। खिड़कियों में लगे शीशे के बाहर सबकुछ शांत लगता है। आम, नारियल और महुगनी के पेड़ साधु की तरह लग रहे हैं। सुबह जगा था तो पटाखों के शोर थे। शादी का समय है। लोग अतिरिक्त उत्साह में रहते हैं। उस पर अगर धनाढ्य लोगों की शादी हो रही हो तो पटाखे धमाके में बदल जाते हैं। कानपुर में यह उत्साह जानलेवा हो गया। बंदूक से गोली निकली और दूल्हे की गर्दन को पार कर गई। उत्सव मातम में बदल गया। इधर मैं एक शादी समारोह में शामिल हुआ। डीजे पर नाचती औरतें भी आयीं और मेरे पास से गुजरते लोगों के मुंह से शराब के भभके। ऐसे लोग अगर बंदूक से गोली चलायेंगे तो गोली तो मातम लेकर आयेगी ही। वैसे भी बंदूक तो शान का प्रतीक है। बिहार का सामंती मन उफनता रहता है। दरवाजे पर हाथी नहीं है तो क्या हुआ? हाथ में सिक्कड़ तो है । उप मुख्यमंत्री अपने क्षेत्र में आये तो बंदूकें चलीं।
बिहार के दोनों उप मुख्यमंत्री लाजवाब हैं। उनकी चाल और बोली में घमंड चूता है। हर वक्त चुनौती देने के मूड में रहते हैं। लगता रहता है कि अगर विपक्ष का कोई नेता मिला तो उसका मुंह नोंच लेंगे। पू्र्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव तो हर समय निशाने पर रहते हैं। नयी सरकार आयी है तो उन्हें घर खाली करने का फरमान जारी किया है। मैं जब रांची गया तो देखा कि शिबू सोरेन के नाम पर एक मुख्यमंत्री की तरह बड़ा आवास आवंटित है। सरकार चाहे जिसकी भी हो, शिबू सोरेन उसी भवन में रहे। बिहार में बात दूसरी है। अगर यह मान लिया जाए कि लालू प्रसाद यादव का उस भवन में गैर कानूनी है तो पू्र्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के नाम पर आवास क्यों आवंटित है? कम से कम सरकारी तुला तो एक तरह का होना चाहिए। होना तो यह चाहिए कि जितने भी लोग गैर कानूनी ढंग से रह रहे हैं, उन्हें निष्कासित किया जाय ।
2014 के बाद ऐसा लगता है कि सत्ता पक्ष विपक्ष को समूल नष्ट करने पर तुला है। देश 1947 में आजाद हुआ और जब पहला मंत्रिमंडल बना तो नेहरू ने हिन्दू महासभा के श्यामा प्रसाद मुखर्जी और डॉ अम्बेडकर को भी उसमें जगह दी गई। और उतनी दूर न भी जाइए तो राजीव गांधी के समय को याद कीजिए। अटल बिहारी वाजपेयी बीमार हुए। वे उस वक्त विपक्ष में थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें ससम्मान इलाज के लिए अमेरिका भिजवाया। सत्ता पक्ष में उदारता नहीं हो तो वह तानाशाह की तरह काम करती है। लालू प्रसाद यादव का आवास अगर गलत है तो इसके साथ लालकृष्ण आडवाणी का भी आवास भी ग़लत है और आरएसएस चीफ मोहन भागवत को जेड सुरक्षा देना भी ग़लत है। मनमोहन सिंह की सरकार के बारे में कहा जाता था कि सोनिया गांधी उसे चलाती हैं तो नरेंद्र मोदी की सरकार भी तो नागपुर कैंप के इशारे पर नाचती है। दरअसल मौजूदा राजनीति में लोक लज्जा की भारी कमी है। आजकल कानून की मनमानी व्याख्या हो रही। नेता ‘सैंया भये कोतवाल‘ की तर्ज पर काम कर रहे हैं। सत्ता आंखों में नशा भर देती है। आंखों में नफ़रत और घमंड। नतीजा है कि सत्ताधारी बौखने और भौंकने लगते हैं। बहुत कम लोग होते हैं जिस पर सत्ता असर नहीं डालती। अधजल गगरी छलकत जाय की हालत स्थायी नहीं होती।
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