बेरोजगारी पर एक बहस

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रेखांकन : मुकेश बिजोले

— राजेन्द्र राजन —

हली जुबान बोली, देखिए एक बेरोजगार के खुदकुशी कर लेने की घटना पर चर्चा करना फिजूल है। सुसाइड नोट में भले ही बेरोजगारी से तंग आकर आत्महत्या करने की बात कही गयी है पर ऐसा कई बार देखने में आया है कि बेरोजगार आदमी कर्ज से दबा होता है और उधार न चुका पाने के कारण खुदकुशी कर लेता है मगर सुसाइड नोट में बेरोजगारी को वजह बता देता है। असल कारण तो फिजूलखर्ची की आदत के चलते उधार लेते जाना है।

दूसरी जुबान ज्यादा संजीदा स्वर में बोली, देखिए अभी हमें मालूम नहीं है कि जिस युवक ने खुदकुशी की, उसने कर्ज ले रखा था या नहीं। इसलिए हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि खुदकुशी के पीछे कर्जखोरी वजह थी या नहीं। लेकिन हम यह पक्के तौर पर कह सकते हैं कि घटना के मूल में गहरा अवसाद था और अमूमन खुदकुशी करनेवाले अवसादग्रस्त होते हैं। यह प्रायः अकेलेपन की वजह से होता है। यह एक मानसिक समस्या है जो पश्चिम की देन है। इससे निपटने के लिए मनोवैज्ञानिकों की मदद ली जानी चाहिए।

अब तीसरी जुबान ने चर्चा में प्रवेश किया, कहा कि खुदकुशी का असल कारण गृह कलह हो सकता है। क्योंकि हम अकसर देखते हैं कि खुद को बेरोजगार बतानेवाले युवक खुद पर काबू नहीं रख पाते, बदमिजाज होते जाते हैं, घर में झगड़ा-झंझट करते हैं और आखिरकार गृहक्लेश की बलि चढ़ जाते हैं।

चौथी जुबान ने गहन जानकारी का तड़का लगाते हुए कहा, देखिए बेरोजगारी पर जो नयी रिपोर्ट आयी है उसमें गांवों में भी और शहरों में भी बेरोजगारी बढ़ने के आंकड़े तो दिये गये हैं और इसपर सरकार को आगाह भी किया गया है लेकिन उसमें बेरोजगारी की वजह से किसी के खुदकुशी करने की बात नहीं लिखी है।

यह आर्थिक ज्ञान आ जाने के बाद पांचवीं जुबान ने मामले पर राजनीतिक प्रकाश डाला। कहा कि कुछ लोग इस घटना पर केंद्र से नाहक सवाल कर रहे हैं जबकि यह घटना केंद्र में नहीं एक राज्य में हुई है।

छठी जुबान ने इससे सहमति जताते हुए कहा, ऐसी घटनाएं किसी न किसी राज्य में ही होती हैं इसलिए केंद्र से सवाल पूछने का कोई मतलब नहीं है और मुझे तो शक होता है कि इस तरह के सवाल उठाने के पीछे केंद्र सरकार को बदनाम करने और देश की छवि खराब करने की साजिश तो नहीं है!

यह सुनते ही सातवीं जुबान को गुस्सा चढ़ गया और वह बोल पड़ी कि देखिए, जब हम चाँद और मंगल ग्रह पर जा रहे हैं और महाशक्ति बनने की दहलीज पर खड़े हैं तब बेरोजगारी के चलते किसी के खुदकुशी कर लेने जैसी छोटी-मोटी घटनाओं पर हमें ध्यान नहीं देना चाहिए। मेरा तो यह भी मानना है कि ऐसी खबरें छापने-दिखाने पर रोक लगा दी जानी चाहिए।

अब आठवीं जुबान की बारी थी। उसने कहा कि देखिए, हम चाहकर भी बेरोजगारी की समस्या से आंख नहीं चुरा सकते इसलिए अच्छा हो कि सरकार बेरोजगारों को औपचारिक या अनौपचारिक किसी काम में लगाने की योजना बनाए और सबसे अच्छी योजना यही होगी कि उन्हें राष्ट्र-विरोधी तत्त्वों से निपटने में लगा दिया जाए।

नौवीं जुबान ने चर्चा को दार्शनिक रंग देते हुए कहा कि देखिए, बेरोजगारी कोई समस्या नहीं है। एक ही समस्या है जनसंख्या वृद्धि, बाकी सब समस्याएं उसी की देन हैं। इसलिए चाहे कोई बेरोजगारी की वजह से चाहे कर्ज के चलते खुदकुशी करे इसपर माथा पीटने की जरूरत नहीं है। हमें यह मानना चाहिए कि प्रकृति संतुलन बिठाने की कोशिश कर रही है।

दसवीं जुबान ने समापन करते हुए कहा, असल समस्या यह नहीं है कि बेरोजगारी बहुत बढ़ गयी है, असल समस्या यह है कि बेरोजगारी पर शोर मचानेवाले बढ़ गये हैं। अगर बेरोजगारी का सवाल उठाया ही न जाए तो इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाएगा और तब शायद कोई बेरोजगार खुदकुशी ही न करे। इसलिए मेरा तो मानना है कि खुदकुशी की यह जो घटना हुई है इसके लिए उऩ लोगों को जिम्मेदार मानते हुए जो बेरोजगारी का सवाल उठा रहे हैं उनमें से कुछ चुनिंदा लोगों के खिलाफ खुदकुशी के लिए उकसाने का केस दर्ज किया जाए।

इस तरह बहस का समापन हुआ।

फिर दसों जुबानें एकसाथ देर तक अट्टहास करती रहीं।

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