22 सितंबर। आंगनवाड़ी, आशा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और मिड डे मील समेत अन्य स्कीम वर्कर्स ने 24 सितंबर को देशव्यापी एक दिवसीय हड़ताल का आह्वान किया है।
इस हड़ताल का आह्वान अखिल भारतीय संयुक्त समिति ने किया है। अब इस हड़ताल को देशभर के किसान संगठनों का भी साथ मिला है जबकि सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने पहले ही इनका समर्थन कर दिया था।
संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) जो देशभर के किसान संगठनों का संयुक्त मंच है और इसी के नेतृत्व में किसान लगभग दस महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं उन्होंने रविवार को, 24 सितंबर 2021 को होने वाली इस हड़ताल को सक्रिय समर्थन देने का ऐलान किया है।
ये श्रमिक, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और सेवाओं के निजीकरण को रोकने और चार लेबर कोड को वापस लेने के अलावा न्यूनतम मजदूरी के प्रावधान के साथ श्रमिकों के रूप में अपनी सेवाओं को नियमित करने की मांग कर रहे हैं।
एसकेएम ने अपने बयान में कहा है कि वो यह मानता है कि देश के दूरदराज के हिस्सों में भी पोषण, स्वास्थ्य देखभाल, बच्चों की देखभाल और शिक्षा की बुनियादी सेवाएं देनेवाले इन योजना कार्यकर्ताओं, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं, का शोषण किया जा रहा है और उन्हें भरण-पोषण भत्ता भी नहीं मिलता है।
ये श्रमजीवी अपनी जान जोखिम में डालकर कोविड महामारी से लड़ने में सबसे आगे रहे हैं। एसकेएम 24 सितंबर को होने जा रही स्कीम वर्कर्स की ऐतिहासिक अखिल भारतीय हड़ताल के प्रति अपनी ओर से पूरी एकजुटता जाहिर की है।
स्कीम वर्कर्स फेडरेशन के संयुक्त मंच द्वारा 14 सितंबर को हड़ताल का नोटिस दिया गया था जिसमें देशभर के स्कीम वर्कर्स के शामिल होने का दावा किया गया था। यह नोटिस केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय के सचिव को दिया गया है।
10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा हस्ताक्षरित, नोटिस में 17 मांगों को शामिल किया गया है। जो इस प्रकार हैं –
1. उन सभी योजनाकर्मियों को फ्रंटलाइन वर्कर अधिसूचित करें जिन्हें कोविड ड्यूटी में नियुक्त किया गया था। फ्रंटलाइन वर्कर्स को प्राथमिकता देते हुए सभी के लिए तत्काल मुफ्त और सार्वभौमिक टीकाकरण सुनिश्चित करें। एक निश्चित समय सीमा के भीतर सार्वभौमिक मुफ्त टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए वैक्सीन उत्पादन में तेजी लाएं और वितरण को सरकारी विनियमन के तहत लाएं।
2. सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं तथा स्कीम वर्कर्स सहित महामारी-प्रबंधन कार्य में लगे लोगों के लिए सुरक्षात्मक उपकरण आदि की उपलब्धता सुनिश्चित करें। सभी फ्रंटलाइन श्रमिकों के बार-बार, निरंतर और फ्री कोविड-19 टेस्ट किए जाएं। कोविड से संक्रमित फ्रंटलाइन वर्कर्स को अस्पताल में भर्ती करने को प्राथमिकता दी जाए।
3. स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए जीडीपी का 6 प्रतिशत आवंटित किया जाए। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत करें ताकि अस्पताल में पर्याप्त बिस्तर, ऑक्सीजन और अन्य चिकित्सा सुविधाओं को सुनिश्चित किया जा सके और कोविड संक्रमण बढ़ने पर आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके। आवश्यक स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती सहित सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाए। सुनिश्चित करें कि गैर-कोविड रोगियों को सरकारी अस्पतालों में प्रभावी उपचार मिले।
4. सभी फ्रंटलाइन श्रमिकों को 50 लाख रुपये का बीमा कवर दो जिसमें ड्यूटी पर होनेवाली सभी मौतों को कवर किया जाए, साथ ही जान गंवानेवाले वर्कर्स के आश्रितों को पेंशन/ नौकरी दी जाए। पूरे परिवार के लिए कोविड-19 के उपचार का भी कवरेज दिया जाए।
5. कोविड-19 ड्यूटी में लगे सभी कॉन्ट्रैक्ट व स्कीम वर्कर्स के लिए प्रतिमाह 10,000 रुपए का अतिरिक्त कोविड जोखिम भत्ता भुगतान किया जाए। स्कीम वर्कर्स के वेतन और भत्ते आदि के सभी लंबित बकायों का भुगतान तुरंत किया जाए।
6. ड्यूटी पर रहते हुए संक्रमित हुए सभी लोगों के लिए न्यूनतम 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।
7. मजदूर विरोधी लेबर कोड्स को वापस लिया जाए। स्कीम वर्कर्स को ‘वर्कर’ की श्रेणी में लाया जाए। जब तक स्कीम वर्कर्स का नियमितीकरण लंबित है तब तक सुनिश्चित करें कि सभी स्कीम वर्कर्स का ई-श्रम पोर्टल में पंजीकरण किया जाए।
8. केंद्र प्रायोजित योजनाओं जैसे आईसीडीएस, एनएचएम व मिड डे मील स्कीम के बजट आबंटन में बढ़ोतरी कर इन्हें स्थायी बनाओ। आईसीडीएस और मिड डे मील स्कीम के सभी लाभार्थियों के लिए अच्छी गुणवत्ता के साथ पर्याप्त अतिरिक्त राशन तुरंत प्रदान किया जाए। इन योजनाओं में प्रवासियों को शामिल किए जाए।
9. 45वें व 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों के अनुसार स्कीम वर्कर्स को मजदूर के रूप में मान्यता दो, सभी स्कीम वर्कर्स को 21,000 रुपए प्रतिमाह न्यूनतम वेतन दो, 10,000 रुपए प्रतिमाह पेंशन तथा ईएसआई, पीएफ आदि प्रदान करो।
10. मौजूदा बीमा योजनाएं- प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बीमा योजना- इन सभी योजनाओं को सभी स्कीम वर्कर्स को कवर करते हुए सार्वभौमिक कवरेज के साथ ठीक से लागू किया जाए।
11. गर्मियों की छुट्टियों सहित वर्तमान में स्कूल बंद होने की स्थिति में मिड डे मील वर्कर्स को न्यूनतम वेतन दिया जाए। केंद्रीयकृत रसोईया और ठेकाकरण न किया जाए।
12. कोरोना अवधि तक सभी को 10 किलो राशन प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह दिया जाए। महंगाई पर रोक लगाई जाए। छह महीने तक टैक्स के दायरे से बाहर सभी परिवारों के लिए 7500 रुपये प्रतिमाह और जरूरतमंदों के लिए मुफ्त राशन/भोजन की व्यवस्था की जाए। सभी के लिए नौकरियां और आय सुनिश्चित की जाए।
13. स्वास्थ्य (अस्पतालों सहित), पोषण (आईसीडीएस और मिड डे मील स्कीम सहित) और शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं के निजीकरण के प्रस्तावों को वापस लो। एनडीएचएम और एनईपी 2020 को रद्द करो। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और सेवाओं के निजीकरण पर रोक लगाओ।
14. जनविरोधी कृषि कानूनों को वापस लो जोकि योजनाओं के लिए हानिकारक हैं।
15. डिजिटलाइजेशन के नाम पर लाभार्थियों को निशाना बनाना बंद करें। ’पोषण ट्रैकर’, ’पोषण वाटिका’ आदि के नाम पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न बंद करें।
16. भोजन के अधिकार और शिक्षा के अधिकार की तरह सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के अधिकार के लिए कानून बनाया जाए।
17. वित्त जुटाने के लिए, ‘सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट’ जैसी परियोजनाओं पर रोक लगाई जाए। संसाधनों के लिए अति धनी वर्गों पर कर लगाया जाए।
गौरतलब है कि स्कीम वर्कर्स में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता तथा सहायिका, मिड-डे-मील रसोइए, ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य कार्यकर्ता आशा (ASHA) तथा शहरी क्षेत्रों की स्वास्थ्य कार्यकर्ता उषा (USHA), तथा सरकार की कई अन्य योजनाओं में संलग्न कार्यकर्ता शामिल हैं।
स्कूलों में कार्यरत शिक्षा मित्र समेत एएनएम योजना के कार्यकर्ता एवं आजीविका मिशन श्रमिक आदि मिलाकर विभिन्न योजनाओं से जुड़े हुए हैं।
ऐसे लोग 43 साल से स्कीम वर्कर काम कर रहे हैं लेकिन आज तक नौकरी की सुरक्षा नहीं है। यही नहीं, अभी तक इन्हें श्रमिक का दर्जा नहीं मिला है। इनकी संख्या तकरीबन 65 से 70 लाख होगी। इन्हीं पर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था का आधार टिका हुआ है।
इन श्रमिकों का दुख है कि इनके श्रम को मान्यता दिलाने की इनकी लंबे समय से चली आ रही मांग अभी भी पूरी नहीं हुई है, आज भी इन्हें कर्मचारी नहीं बल्कि कार्यकर्ता ही मान जाता है।
हालांकि पिछले साल से देश में स्कीम वर्कर्स ने स्थानीय स्वास्थ्य विभागों को कोरोना प्रसार को रोकने में मदद करने में सबसे अहम भूमिका निभायी।
आशा वर्कर्स की अखिल भारतीय समन्वय समिति (AICCAW) की सुरेखा ने बताया कि “हरियाणा में यहां एक लाख से अधिक स्कीम वर्कर्स हैं और उनमें लगभग सभी महिलाएं हैं। वे वर्षों से अपने काम की मान्यता की मांग रही हैं, लेकिन कुछ भी नहीं बदला है।”
उन्होंने कहा कि आगामी हड़ताल के लिए हरियाणा में तैयारियां जोरों पर हैं।
सुरेखा ने कहा “यह निराशाजनक है कि जब हम महामारी से लड़ने में सहायता कर रहे हैं तब भी सरकार हमारी मांगों पर विचार तक नहीं कर रही है। लेकिन हमारी यूनियन स्कीम वर्कर्स के अधिकारों के लिए लड़ना बंद नहीं करेगी।”
यह दूसरी बार होगा कि स्कीम वर्कर्स देशभर में अपने काम का बहिष्कार करेंगी। पिछले साल भी इसी तरह की दो दिवसीय हड़ताल की गयी थी, जिसमें इसी तरह के मुद्दों को उठाया गया था।
स्कीम वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसडब्ल्यूएफआई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामा ने कर्नाटक से फोन पर बताया कि “जब देश महामारी की चपेट में था, तो आशा वर्कर्स ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर जाकर जागरूकता फैलाने और दवाएँ वितरित करने के लिए गईं, आंगनबाड़ियों ने कई सर्वेक्षण किए। अब भी, दोनों कोविड-19 टीकाकरण अभियान से संबंधित अतिरिक्त कर्तव्यों को पूरा करने में लगी हुई हैं।” जिसका अर्थ है कि महामारी के बाद से स्कीम वर्करों का काम कई गुना बढ़ गया है।
रमा ने अफसोस जताते हुए कहा कि कार्यभार में वृद्धि हुई है लेकिन ‘आशा’ की आय में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है।
उदाहरण के लिए, उनके अनुसार, ‘कर्नाटक में कोविड-19 के कारण मृत्यु के मामले में बीमा योजना का लाभ अभी तक नहीं पहुंचा है।” रामा बीमा योजना की ओर इशारा कर रहे थे, जिसे पिछले साल प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के तहत सभी स्वास्थ्य कर्मियों के लिए शुरू किया गया था, जो जीवन बीमा कवर प्रदान करता है। जिसमे कोविड -19 के कारण मृत्यु के मामले में 50 लाख रुपए दिए जाते हैं।
इस बीमा योजना को इस साल फिर से छह महीने के लिए कोरोना की दूसरी लहर के बाद शुरू किया गया था।
इस बीच, स्थानीय मुद्दों को उठाते हुए, हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और जम्मू- कश्मीर सहित विभिन्न राज्यों में स्कीम वर्करों द्वारा विरोध प्रदर्शन भी किए गए हैं। उनके भी मुद्दे आगामी एक दिवसीय हड़ताल के दौरान उठाए जाने की उम्मीद है।
इसके अलावा अन्य राज्यों में भी संघर्ष जारी है। मसलन, पंजाब में राज्य के शिक्षामंत्री विजय इंदर सिंगला के संगरूर आवास के बाहर आंगनबाडी कार्यकर्ताओं का धरना अपने छठे महीने में प्रवेश कर गया है। प्रदर्शनकारी कार्यकर्ता यह कहते हुए सरकारी स्कूलों में प्री-प्राइमरी छात्रों के नामांकन का विरोध कर रहे हैं कि इससे उनकी नौकरी ‘खतरे में’ पड़ जाएगी।
1975 में शुरू होने के बाद से, तीन से छह साल की उम्र के बच्चों के लिए प्री-स्कूल गैर-औपचारिक शिक्षा, आंगनवाड़ी के काम के तहत आती है। पंजाब कथित तौर पर 2017 में पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं को सरकारी प्राथमिक विद्यालय में स्थानांतरित करनेवाला पहला राज्य बन गया।
ऑल पंजाब आंगनवाड़ी वर्कर्स यूनियन (APAWU) से जुड़ी एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता प्रतिभा शर्मा, जो “विरोध स्थल पर ड्यूटी देकर” बठिंडा में अपने घर लौटी थीं, उन्होंने बताया कि “हम भी आगामी एक दिवसीय हड़ताल में भाग लेंगे यदि हमारी यूनियन इसका आह्वान करती है। यह हमारे काम की बात है, हम हरसंभव तरीके से अंत तक लड़ेंगे।”
इसी तरह, उत्तराखंड आशा कार्यकर्ता एसोसिएशन ने कहा, मानदेय में वृद्धि की मांग को लेकर पिछले एक महीने से अधिक समय से अपने काम का बहिष्कार कर रही आशा कार्यकर्ता भी उत्तराखंड में 24 सितंबर को राज्य भर में रैलियां करेंगी। उन्होंने कहा, “राज्य में 13,000 आशा कार्यकर्ता हैं और सभी हड़ताल में हिस्सा लेंगी।”
(साभार- न्यूजक्लिक)