प्यारे दोस्तो!
मेरा बचपन से ही क्रन्तिकारी विचारधारा के साथ संबंध रहा है । 1931 में जब मैं पाँचवीं जमात का छात्र था, 23 मार्च को अँगरेज हुकूमत ने शहीदे आज़म भगत सिंह को लाहौर में सजा-ए-मौत दे दी। सरदार की फाँसी के तीसरे दिन इसके विरोध में मेरे शहर खुर्जा में एक जुलूस निकाला गया जिसमें मैं भी शामिल हुआ। हम लोग बा-आवाजे बुलंद गा रहे थे……
भगत सिंह तुम्हें फिर से आना पड़ेगा
हुकूमत को जलवा दिखाना पड़ेगा
ऐ दरिया-ए-गंगा तू खामोश हो जा
ऐ दरिया-ए-सतलज तू स्याहपोश हो जा
भगत सिंह तुम्हें फिर भी आना पड़ेगा
हुकूमत को जलवा दिखाना पड़ेगा…….
इस घटना के बाद मैं नौजवान भारत सभा के साथ जुड़ गया और 1936-37 में हाई स्कूल का इम्तिहान पास करने के बाद जब मैं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में दाखिल हुआ तो वहाँ मेरा सम्पर्क उस वक्त के मशहूर कम्युनिस्ट लीडर कुँवर मुहम्मद अशरफ़ से हुआ जो उस वक़्त ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के सदस्य होने के साथ-साथ कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के भी मेम्बर थे। लेकिन डॉक्टर अशरफ़, गाँधीजी की विचारधारा से सहमत नहीं थे और अकसर कहते थे कि “मुल्क गाँधी के रास्ते से आजाद नहीं हो सकता।”उनका मानना था कि जब तक फौज बगावत नहीं करेगी मुल्क आजाद नहीं हो सकता। डॉक्टर अशरफ़ अलीगढ़ में ‘स्टडी सर्कल’ चलाते थे और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के भी सरपरस्त थे। उन्हीं के कहने पर मैं स्टूडेंट्स फेडरेशन का मेंबर बना। उसी समय हमारे जिला बुलंदशहर में सूबाई असेम्बली का एक उपचुनाव हुआ। उस चुनाव के दौरान मैं डॉक्टर अशरफ़ के साथ रहा और कई जगह चुनाव सभाओं को सम्बोधित किया। उसी मौके पर कांग्रेस के ऑल इंडिया सद्र जवाहरलाल नेहरू भी खुर्जा तशरीफ़ लाये और उन्हें पहली बार नजदीक से देखने और सुनने का मौका मिला।
इसके एक साल पहले ही यानी 1936 में लखनऊ में ‘स्टूडेंट्स फेडरेशन’ कायम हुआ था और पंडित नेहरू ने इसका उद्घाटन किया था जबकि मुस्लिम लीग के नेता कायद-ए-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना ने स्टूडेंट्स फेडरेशन के स्थापना सम्मलेन की सदारत की थी।1940 में स्टूडेंट्स फेडरेशन में पहली बार विभाजन हुआ और और नागपुर में हुए राष्ट्रीय सम्मलेन के बाद गांधीवादी समाजवादियों ने ‘ऑल इंडिया स्टूडेंट्स कांग्रेस’ के नाम से एक अलग संगठन बना लिया जो बाद में कई धड़ों में विभाजित हुआ।
1939 में अमुवि से इंटरमीडिएट करने के बाद डॉक्टर अशरफ़ की सलाह पर मैं, दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ब्रितानी सेना में भरती हो गया और 1943 में जापानियों द्वारा मलाया में युद्धबंदी बनाया गया। इसी दौरान जनरल मोहन सिंह द्वारा बनायी गयी आजाद हिंद फौज मैं शामिल हो गया और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। 1945 में जापान की हार के बाद ब्रिटिश सेना द्वारा युद्धबंदी बना लिया गया।1946 में मुल्तान के किले में रखा गया, कोर्ट मार्शल किया गया, और सजा-ए-मौत सुनायी गयी, लेकिन देश आजाद हो जाने की वजह से रिहा कर दिया गया।
मुल्क आजाद हो जाने के बाद 1948 में डॉ राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हुआ और पहले जिला पार्टी की कार्यकारणी का सदस्य और फिर 1956 में जिला सचिव चुना गया।1960 में सोशलिस्ट पार्टी की राज्य कार्यकारणी का सदस्य तथा 1966 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बनने पर उसका पहला राज्य सचिव चुना गया। 1973 में संसोपा और प्रसोपा का विलय होने के बाद बनी सोशलिस्ट पार्टी, उत्तर प्रदेश का राज्यमंत्री चुना गया।
1967 में उत्तर प्रदेश में पहले संयुक्त विधायक दल और फिर चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में पहली गैरकांग्रेसी सरकार का गठन करने में अहम भूमिका निभायी। आपातकाल के दौरान 1975 से 1977 तक 15 माह तक बुलंदशहर, बरेली और नैनी सेन्ट्रल जेल में डीआइआर और मीसा के तहत बंद रहा।
1977 में जनता पार्टी का गठन होने के बाद उसका प्रथम राज्याध्यक्ष बनाया गया और 1978 में 6 वर्षों के लिए विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुआ। आजाद हिन्दुस्तान में 50 से अधिक बार विभिन्न जन-आन्दोलानों में शिरकत की और जेल यात्रा की।
बचपन से ही अपने इस अज़ीम मुल्क को आजाद और खुशहाल देखने की तमन्ना थी जिसमें जात-बिरादरी, मज़हब और ज़बान या रंग के नाम पर किसी तरह का इस्तेह्साल न हो, जहाँ हर हिन्दुस्तानी सर उंचा करके चल सके, जहाँ अमीर-गरीब के नाम पर कोई भेद-भाव न हो। हमारा पांच हज़ार साला इतिहास ज़ात और मज़हब के नाम पर शोषण का इतिहास रहा है। अपनी जिंदगी में अपनी आँखों के सामने अपने इस अज़ीम मुल्क को आज़ाद होते हुए देखने की ख्वाहिश तो पूरी हो गयी लेकिन अब भी समाज में गैरबराबरी, भ्रष्टाचार, ज़ुल्म, ज्यादती और फिरकापरस्ती का जो नासूर फैला हुआ है उसे देखकर बेहद तकलीफ होती है।
दोस्तो उम्र के इस पड़ाव पर हम तो चिराग-ए-सहरी (सुबह का दिया) हैं, न जाने कब बुझ जाएँ लेकिन आप से और आनेवाली नस्लों से यही गुज़ारिश और उम्मीद है कि सच्चाई और ईमानदारी का जो रास्ता हमने अपने बुजुर्गों से सीखा उसकी मशाल अब तुम्हारे हाथों में है, इस मशाल को कभी बुझने मत देना।
इन्कलाब जिंदाबाद !
आपका
कप्तान अब्बास अली
प्रस्तुति : क़ुरबान अली
Truly inspirational.