लहू बोलता भी है
— प्रोफ़ेसर राजकुमार जैन —
सैय्यद शाहनवाज अहमद कादरी की किताब का टाइटल ‘लहू बोलता भी है’ पढ़कर शुरू में अटपटा सा लगा, क्योंकि लहू खौलता...
नशा और नंगई के बीच नौनिहाल!
— जयराम शुक्ल —
अब यह बताने की जरूरत नहीं कि मासूमों के साथ बलात्कार फिर हत्या जैसे अपराधों का सैलाब क्यों तेजी से उफनने...
राष्ट्रपिता और फादर
— कुमार कलानंद मणि —
सन 1922 में गांधीजी को यरवदा जेल में रखा गया था। जेल के सुपरिटेंडेंट मेजर जोंस को लगा कि गांधीजी...
गांधीवादी संस्थाओं पर गिद्ध-दृष्टि
— जागृति राही —
गांधी विचार की संस्थाओं, आश्रमों में घुसपैठ और उन पर कब्जे की कोशिश बीजेपी की सरकारें और संघ के समर्थक लगातार...
राहुकाल से लोकतंत्र के निकलने की शेषकथा
— जयराम शुक्ल —
(तीसरी और अंतिम किस्त )
चाटुकारिता भी कभी-कभी इतिहास में सम्मान योग्य बन जाती है। आपातकाल के उत्तरार्ध में यही हुआ। देशभर से...
अनुशासन के नाम पर यातना पर्व
— जयराम शुक्ल —
आपातकाल पर मेरे दो नजरिए हैं, एक- जो मैंने देखा, दूसरा- जो मैंने पढ़ा और सुना। चलिए पहले से शुरू करते हैं। वो स्कूली...
अर्थी को कंधा भी नसीब नहीं
— प्रो. राजकुमार जैन —
कोरोना की महामारी से हो रही मौतों के खौफ़ के कारण पुरानी कहावतें भी बेमतलब हो गई हैं। बचपन से...
हमारे लोकतांत्रिक मूल्य क्या इतने कमजोर हैं!
— शिवानंद तिवारी —
बिहार आंदोलन के दरमियान पटना के गांधी मैदान में जयप्रकाश जी की सभा होने वाली थी। तारीख का स्मरण नहीं है।...
आपातकाल को भूल नहीं सकते
— रामबाबू अग्रवाल —
आजाद भारत के इतिहास में 25 जून की तारीख अहम है। इसी दिन यानी 25 जून 1975 को स्वतंत्र भारत के...
विंध्य का वह संघर्ष
— जयराम शुक्ल —
विन्ध्यप्रदेश आज जिंदा होता तो बीते अप्रैल की चार तारीख उसका 73वाँ स्थापना दिवस मनाया गया होता। अब सिर्फ स्मरण का...