
सत्य की हत्या
आज सत्य
असह्य इतना हो गया है
कान में सीसा गला
ढलवा सकेंगे,
सत्य सुनने को नहीं तैयार होंगे;
आँख पर पट्टी बँधा लेंगे,
निकलवा भी सकेंगे,
रहेंगे अंधे सदा को,
सत्य देखेंगे नहीं पर;
घोर विषधर सर्प,
लोहे की शलाका, गर्म, लाल,
पकड़ सकेंगे मुट्ठियों में,
उंगलियों से सत्य
छूने की हिम्मत नहीं करेंगे।
इसलिए चारों तरफ षड्यंत्र है
उसके गले को घोंटने का,
या कि उस पर धूल-परदा डालने का,
या कि उसको खड़ा, जिंदा गाड़ने का।
किन्तु वे अपनी सफलता पर न फूलें।
सत्य तो बहुरूपिया है।
सत्य को जिंदा अगर वे गाड़ देंगे,
पच न धरती से सकेगा
फसल बनकर उगेगा,
जो अन्न खाएगा
बनेगा क्रांतिकारी।
सत्य पर गर धूल-परदा डाल देंगे,
वह हटाकर-फाड़कर के नग्न
रस्मी लाज को धक्का लगाएगा,
सभी का ध्यान आकर्षित करेगा।
गला घोंटेंगे अगर उसका
किसी कवि-कंठ में वह छटपटाएगा,
निकलकर, गीत बनकर
हृदय में हलचल मचाएगा।
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