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विष्णु खरे की कविता

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यथार्थ   किसने देखा था पहले-पहल मृग को मरीचिका के पीछे दौड़ते हुए कहां होते हैं वैसे मृग अब मरीचिकाएं लहराती झिलमिलाती हैं अब किधर किन्तु कहावत बन गयी मृग-मरीचिका...

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