मालूम नहीं
तारे तब दिखाई देंगे
जब आसमान दिखाई देगा
जब आसमान दिखाई देगा
जब तारे दिखाई देंगे
तब चांद दिखाई देगा
जल्दी ढल जाने वाला
कितने चरणों की यात्रा होगी
उसके साथ
मालूम नहीं
रात के दोनों सिरों के बीच
बचा
मास्क की ढाल भी है
दो गज की दूरी भी
वैक्सीन की डोज भी है
और है घर की लक्ष्मण रेखा
फिर भी ख़ुद को मरते हुए देखा
एक लम्बी प्रतीक्षा के बाद
चिता पर जलते हुए देखा
वहां अपनों में
एक-दो को छोड़कर कोई नहीं दिखा
जिसे देखकर मन में तूफ़ान मचा
मैं सौभाग्यशाली था
मैं संभल गया
मुझे हृदयाघात होते-होते बचा
संवेदना
मां जायेगी उस स्त्री के पास
पड़ोसी बहन के पास
जिसकी लड़की और दामाद
दोनों गुज़रे हैं हठात्
मां जानती है
बाहर काल कोरोना है
लेकिन ड्योढ़ी के अंदर वह क्यों रुके
अपनी संवेदना से क्यों चुके
जिसमें सारी पॄथ्वी का रोना है
सूखती नदियों के समानांतर
छीजते जंगल से
कम होते आक्सीजन में
मां जायेगी उस स्त्री के पास
और वायरस-भरे अंचल से
लौटेगी
जयगान और विलाप
अभी महामहीप का जयगान
थोड़ा कम हुआ है
इसलिए नहीं कि
प्रचारित लोकप्रियता कम हुई है
जनता के एक हिस्से का विलाप बस
थोड़ा तेज़ हुआ है
विलाप थोड़ा कम होते ही देखना
और सुनना
जयगान को तेज़
और तेज़ होते हुए
अ-जीवन
जीवन में
एक अ-जीवन आया है
इसी के चलते है ज़्यादा
जल और वन की कमी
बराबर आक्सीजन की कमी
यह अ-जीवन
शीघ्र टलेगा
या रहेगा
आजीवन ?
दादा-ओ-दादा !
आग और धुआं
धुआं भी
कम ख़तरनाक नहीं था
वह उस आग का धुआं था
जो जान लेने पर आमादा थी
आग ने
दस लोगों की जान ली
तो धुएं ने
बीस की
आग जहां नहीं पहुंच पायी
वहां पहुंचकर
धुएं ने मारा
सिर्फ़ सौंदर्य
घर की सफ़ाई करिए तो
कितनी सारी धूल निकलती है
कितना सारा मकड़ी का जाला
मकड़ी के जाले में मिली
मकड़ी मरी हुई
और एक तितली
और वह भी
ज़िंदा नहीं
बेशक, उसके पंख सलामत हैं
जिन पर एक-एक आंख बनी है
जिनमें न पीड़ा है न ख़ुशी
सिर्फ़ सौंदर्य
उड़ने से वंचित पंख
नष्ट नहीं हुए हैं
देखने से वंचित आंख
मुझ पर तनी है
संवेदना, आग और धुआं, सिर्फ सौंदर्य… कविताए बहुत अच्छी लगीं। हार्दिक बधाई।
अच्छी लगी कविताएँ खासकर आग और धुआं, संवेदना… हार्दिक बधाई।