जब कैप्टन अब्बास अली ने डॉ. लोहिया को आगरा में गिरफ्तार होने का आदेश दिया

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फोटो हेरिटेज टाइम्स से साभार

— क़ुरबान अली —

(यह किस्सा लगभग पचपन वर्ष पुराना है जब 1967 के आम चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश में गैर-कांग्रेसवाद की कवायद शुरू हुई थी और जिसके बाद उत्तर प्रदेश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी। साभार कैप्टन अब्बास अली की आत्मकथा ‘न रहूँ  किसी का दस्तनिगर- मेरा सफ़रनामा’- लेखक)  

डॉ. राममनोहर लोहिया की विरासत का दावा करनेवाली आज की सियासी जमातें, उनके कथित अनुयायी और मौजूदा नस्ल शायद इस बात पर यकीन न करें लेकिन अपनी पार्टी का ‘सुप्रीम लीडर’ होने के बावजूद डॉ लोहिया कभी भी अपने सहयोगी साथियों और कार्यकर्ताओं को ये एहसास नहीं होने देते थे के वे उनके ‘बॉस’ या मालिक हैं और जो वह चाहते हैं सिर्फ वैसा ही हो। बल्कि कई मर्तबा तो वह अपने सामान्य कार्यकर्ता या साथी को अपना नेता होने का एहसास कराते थे और उनकी भावनाओं और फैसलों का सम्मान करते थे। 1963 में जब डॉ लोहिया फ़र्रुख़ाबाद से एक उप-चुनाव में तीसरी लोकसभा का चुनाव जीत कर आये तो उन्होंने सदन में मनीराम बागड़ी को अपने संसदीय दल का नेता माना। 1967 के आम चुनावों में चौथी लोकसभा के लिए संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के 20 से ज्यादा सदस्य लोकसभा में चुनकर आये तो उन्होंने डॉ लोहिया के कहने पर मधु लिमये को अपने संसदीय दल का नेता चुना।

उत्तर प्रदेश में सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के महामंत्री रहे एक प्रमुख नेता मधुकर दिघे अपनी आत्मकथा ‘मेरी लोकयात्रा’ में लिखते हैं कि डॉ लोहिया पार्टी पदाधिकारियों को ‘अफसर’ कहा करते थे। वे जब भी मधुकर दिघे से मुखातिब होते उन्हें ‘अफसर साहब’ कह कर संबोधित करते थे। उत्तर प्रदेश में सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के एक और प्रमुख नेता रहे  कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया ने भी अपनी आत्मकथा ‘नींव के पत्थर’ में डॉ लोहिया का ज़िक्र कुछ इसी तरह कई जगह किया है।

डॉ. राममनोहर लोहिया के करीबी सहयोगी और उत्तर प्रदेश में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी तथा सोशलिस्ट पार्टी के राज्यमंत्री रहे कैप्टन अब्बास अली ने अपनी आत्मकथा ‘न रहूँ किसी का दस्तनिगर- मेरा सफ़रनामा’ में डॉ लोहिया की महानता और बड़प्पन के कई क़िस्से बयां किये हैं।

कैप्टन साहब लिखते हैं कि “10 मई 1966 को उत्तर प्रदेश सोशलिस्ट पार्टी का पहला राज्य सम्मेलन लखनऊ में हो रहा था उसी समय राजनारायण जी ने विधानसभा का घेराव करने का ऐलान कर दिया। विधान भवन पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठीचार्ज किया। इसी दौरान विधान भवन के गेट नंबर 9  पर धरना दे रहे कैप्टन अब्बास अली के कमर पर लखनऊ के एसएसपी सुभाष गुप्ते ने इतनी ज़ोर से ‘फुल बूट’ मारा के वो बेहोश हो गए उनका पित्ताशय फटते फटते बचा और उन्हें सिविल अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। वे तीन दिन बाद होश में आये। इस बीच डॉ. लोहिया ने उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का निर्विरोध राज्य मंत्री चुनवा दिया।” 12 मई 1966 को लोकसभा में इस घटना का उल्लेख करते हुए डॉ लोहिया ने कहा “हमारे साथी अब्बास अली जो नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज के कप्तान थे, उनकी कमर में  ऐसी चोट मारी कि उनको मारफिया का इंजेक्शन देना पड़ा…..(व्यवधान)। मैं नहीं चाहता कि मामला आगे बढ़े। इसलिए मैं इस सरकार से निवेदन करना चाहता हूँ  कि वह उत्तर प्रदेश में ऐसी कार्यवाही करे जिससे लड़ाई बढ़े नहीं।”(लोकसभा में लोहिया भाग 9,पृष्ठ संख्या 262-265 और 349 से साभार)।

कैप्टन अब्बास अली लिखते हैं कि “20 जून 1966 को उत्तर प्रदेश सोशलिस्ट पार्टी की राज्य समिति की मीटिंग में राज्य कर्मचारियों की लंबी हड़ताल, सूबे में फैली कमरतोड़ महंगाई, बेरोजगारी और राज्य कर्मचारियों के साथ राज्य सरकार द्वारा उत्पीड़न पर बहस हुई। इस बैठक में राज्य समिति ने एक संघर्ष समिति बनाई और श्री राजनारायण को इसका संयोजक बनाया गया। इस समिति ने उत्तर प्रदेश में घूम-घूम कर सघन प्रचार किया और सभाएं की। इस संघर्ष में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, रेवोलुशनरी सोशलिस्ट पार्टी  ने पूरा सहयोग दिया। ये भी समिति में निश्चित हुआ था कि 12 जुलाई को उत्तर प्रदेश बंद किया जाएगाऔर विधानसभा का घेराव भी किया जाएगा। इस आंदोलन के सिलसिले में डॉ. लोहिया ने सूबे भर का दौरा शुरू कर दिया और उन्हें 12 जुलाई से 2 दिन पूर्व 10 जुलाई को ही आगरे में  गिरफ़्तार कर लिया गया।

इस गिरफ्तारी का भी एक रोचक प्रसंग है। राजनारायण चाहते थे कि डॉ लोहिया बनारस में गिरफ्तारी दें। उन्होंने इस सिलसिले में कैप्टन अब्बास अली से डॉ लोहिया का कार्यक्रम बनारस में लगाने को कहा। अब्बास अली ने कहा कि डॉ लोहिया कार्यक्रम पहले से ही आगरा में तय हो चुका है अब उसे बदलना संभव नहीं होगा। बक़ौल कैप्टन अब्बास अली राजनारायण से उनका वार्त्तालाप फोन पर कुछ इस तरह हुआ :

राजनारायण : डॉ साहब की गिरफ्तारी का कार्यक्रम बनारस में लगवाइए।

कैप्टन अब्बास अली : उसके लिए आगरा तय हो चुका है। डॉ लोहिया 11 जुलाई को दिल्ली से आगरा पहुंचेंगे।

राजनारायण : आगरा में ऐसा क्या खास है?

कैप्टन अब्बास अली : बनारस में ऐसा क्या खास है?

राजनारायण :  मैं डॉ लोहिया से बात करता हूं, उनको बनारस में ही गिरफ्तारी देनी होगी।

कैप्टन अब्बास अली : जरूर करिए और मुझे भी बता दीजिएगा।

इस बातचीत  के बाद राजनारायण ने डॉ. लोहिया को फोन कर उनसे बनारस में गिरफ्तारी देने का अनुरोध किया। इसपर डॉ लोहिया ने राजनारायण से कहा “कप्तान अब्बास अली का हुक्म है कि मैं 11 जुलाई को आगरा पहुँचूं। मैं उनके कहे बिना अपना कार्यक्रम नहीं बदल सकता। आप उनसे बात कर लीजिए अगर वो कहेंगे कि मैं बनारस चला जाऊं तो मैं वहां चला जाऊंगा।”

राजनारायण डॉ लोहिया की यह बात सुनकर लाजवाब हो गए। उनको लगता था कि शायद उनकी (राजनारायण की) बात सुनकर डॉ लोहिया अपना प्रोग्राम बदल देंगे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

कैप्टन अब्बास अली इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि “पूर्वी उत्तर प्रदेश खासकर बनारस में हमारी पार्टी काफी मजबूत थी। जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी कमजोर। इसलिए हम चाहते थे कि डॉ लोहिया आगरे में गिरफ्तारी दें। यह राजनारायण जी को पसंद नहीं था।

11 जुलाई को डॉ. लोहिया जैसे ही दिल्ली से राजामंडी स्टेशन (आगरा) पहुंचे उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उनके साथ श्री बृजराज सिंह पूर्व सांसद, श्री बालोजी अग्रवाल एम.एल.ए, श्री हुकुम सिंह परिहार एम.एल.ए, श्री रामस्नेही लाल यादव, श्री किताब सिंह यादव और श्री गंगाप्रसाद शर्मा सहित कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।

डॉ लोहिया की गिरफ़्तारी से कार्यकर्ताओं में और भी गुस्सा और जोश आ गया। विधानसभा का अभूतपूर्व घेराव किया गया और चंद्रभान गुप्ता पूर्व मुख्यमंत्री और श्रीमती सुचेता कृपलानी मुख्यमंत्री को विधानसभा के अंदर नहीं घुसने दिया गया। 12 जुलाई से पूर्व ही मुझे और श्री रमाशंकर गुप्ता को पार्टी कार्यालय पानदरीबा, लखनऊ  से गिरफ़्तार कर लिया गया। दूसरी तरफ श्री शंकर दयाल तिवारी, राज्य सचिव मार्क्सवादी

कम्युनिस्ट पार्टी को उनके घर हुसैनाबाद से पुलिस गिरफ़्तार करके ले गई। श्री रमेश सिन्हा जो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के राज्य सचिव थे, उन्हें भी लखनऊ पुलिस ने लाठीचार्ज करके सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ गिरफ़्तार कर लिया। बांदा ज़िले के पुलिस कप्तान ने बंद कराने वाले लोगों पर गोली चलवा दी जिसमें तीन कार्यकर्ता शहीद हो गए और दसियों जख़्मी हो गए। इस तरह ’12 जुलाई उत्तर प्रदेश बंद’ के सिलसिले में सूबे भर में राज्य सरकार की ग़लत नीतियों और निहत्थे लोगों पर लाठी-गोली प्रहार से माहौल गरम हो गया और आम लोग महसूस करने लगे कि राज्य सरकार बौखला गई है। इस आंदोलन में राज्य सरकार ने सूबे के मुख्तलिफ ज़िलों से 5000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया।

डॉ. राममनोहर लोहिया के अलावा राज्य भर में गिरफ्तारियां हुईं। श्री मुल्कीराज सैनी, श्री रामशरण दास सहारनपुर में, श्री विजयपाल सिंह एम.पी. कम्युनिस्ट पार्टी मुज़फ़्फरनगर में, श्री महाराज सिंह भारती एम.एल.सी., श्री सरजूप्रसाद त्यागी, श्री मंजूर अहमद समाजवादी मेरठ में, श्री प्यारेलाल शर्मा ग़ाज़ियाबाद में, श्री सत्येन्द्र त्यागी और श्री गिरिराज सिंह, अध्यक्ष संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बुलंदशहर में, श्री अनीसुर रहमान शेरवानी और श्री गोपालकृष्ण सक्सेना अलीगढ़ में, श्री लक्खी सिंह और श्री राधेश्याम मथुरा में, श्री बशीर महमूद जुबेरी अध्यक्ष सं.सो.पा. एटा में, श्री बृजराज सिंह पूर्व एम.पी., श्री राम सिंह चौहान एम.एल.ए., श्री हुकुम सिंह परिहार एम.एल.ए आगरे में, कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया पूर्व एम.पी. और श्रीमती सरला भदौरिया एम.पी., श्री गजेन्द्र सिंह और श्री रामाधार शास्त्री इटावे में, श्री जगदीश अवस्थी एम.पी., श्री मोतीलाल एम.एल.ए, बाबू बदरे कानपुर में, श्री रामसागर मिश्रा एम.एल.सी. लखनऊ में, श्री रामनारायण त्रिपाठी एम.एल.ए फ़ैजाबाद में, श्री रामसेवक यादव एम.पी. बाराबंकी में, श्री मधुकर दिघे और श्री अश्विनी शुक्ला गोरखपुर में, कुमारी सरस्वती अम्माल और अलमेलु  अम्मल बस्ती में, बाबू विश्रामराय और श्री झारखंडे राय कम्युनिस्ट आजमगढ़ में, श्री उग्रसेन और श्री चंद्रबली सिंह देवरिया में, श्री शंभुनाथ यादव एडवोकेट और रामेश्वर सिंह बलिया में, श्री दलश्रृंगार दूबे ग़ाजीपुर में, श्री राजनारायण और श्री प्रभुनारायण सिंह एम.एल.सी. बनारस में, डॉ. अंसारी शाहगंज जौनपुर में, श्री त्रिभुवन नाथ सांडा सुल्तानपुर में, श्री नंदकिशोर नाई रायबरेली में, श्री सालिग्राम जायसवाल एम.एल.ए. और श्री छुन्ननगुरू एम.एल.ए. इलाहाबाद में सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया।

12 जुलाई सन् 66 को उत्तर प्रदेश बंद के सिलसिले में बांदा पुलिस ने जो गोली चलाई और जिसमें पार्टी के तीन कार्यकर्ता शहीद हुए और दसियों जख़्मी हुए, उसकी जांच के संबंध में संसोपा राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री एस. एम. जोशी 15 जुलाई को लखनऊ तशरीफ लाए। 16 जुलाई को मैं उनके साथ बांदा गया जहां प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता श्री जमुना प्रसाद बोस जी 12 जुलाई से पुलिस दमन के ख़िलाफ भूख हड़ताल पर बैठे हुए थे। जोशी जी ने उन्हें जूस पिलाकर उनकी भूख हड़ताल ख़त्म कराई और घोषणा कि पुलिस की इस दमनकारी नीति के ख़िलाफ उत्तर प्रदेश राज्य सरकार का विरोध जारी रहेगा। 20 जुलाई 1966 को राज्य कार्यालय ने पुलिस की इस दमनकारी नीति के ख़िलाफ निंदा का प्रस्ताव राज्य समिति में पास किया। इस मीटिंग में कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया ने ऐलान किया कि आइंदा 1967 के आमचुनाव में मैं लोकसभा के इटावा और कन्नौज क्षेत्र में ही अपने और डॉ. लोहिया के चुनाव की देखभाल करेंगे।

डॉ. राममनोहर लोहिया ने अपनी गिरफ़्तारी को एक ‘हैबियस कोर्पस’ याचिका के जरिये इलाहबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन सरकारी दबाव के चलते हाई कोर्ट ने डॉ लोहिया की याचिका निरस्त कर दी और राज्य सरकार द्वारा की गई उनकी गिरफ़्तारी को जायज़ ठहरा दिया।

26 दिसंबर 1966 को मैं सुबह 8 बजे लखनऊ मेल से दिल्ली डॉ. लोहिया के बंगला नं. 7, गुरुद्वारा रक़ाबगंज रोड पहुंचा। डॉ. साहब ने मुझसे पूछा कि तुम्हारा क्या प्रोग्राम है? मैंने उन्हें बताया कि 28 दिसंबर से मुझे 2 दिन के लिए श्री मधुलिमये एम.पी. के साथ नैनीताल, अल्मोड़ा और रानीखेत के दौरे पर जाना है। डॉ. साहब ने मालूम किया कि पहाड़ पर जाने के लिए सर्दी से बचाव के लिए तुम्हारे पास  मुनासिब कपड़े हैं या नहीं? उन्होंने मेरी अटैची खुलवाकर देखी और कहा कि इस सर्दी में पहाड़ पर जाने के  लिए ये कपड़े नाकाफ़ी हैं।

दोपहर के खाने के बाद वो मुझे साथ लेकर कनॉट प्लेस गए और रीगल सिनेमा के बगल में गांधी आश्रम से मुझे एक गर्म ओवरकोट, दो गर्म जर्सियां, दो गर्म बनियान, दो जोड़े गर्म मोज़े, एक गर्म शाल और कंबल और एक गर्म मफलर ख़रीदकर दिए और कहा कि पहाड़ पर जाने के लिए ये कपड़े बड़े ज़रूरी हैं। मुझे ख़्याल हुआ कि डॉ. साहब अपने साथियों का कितना ख़्याल रखते हैं। उन्हें ये हरगिज़ गवारा नहीं था कि उनका साथी-कार्यकर्ता किसी भी हालत में परेशान रहे। शाम को जब मधुजी उनसे मिलने आए तो उन्होंने मधुजी से भी ये ज़िक्र किया कि हमारे साथी कैसी कैसी परेशानियों में काम करते हैं।

“1967 के आम चुनाव में श्री राजनारायण जी, जो उस वक़्त राज्यसभा के सदस्य थे, ने उत्तर प्रदेश पार्टी के लोकसभा और विधानसभा उम्मीदवारों की क़ामयाबी के लिए जो कोशिश की, वो सराहनीय है। वह दिसंबर 1966 और जनवरी 1967 में मुस्तकिल राज्य कार्यालय, लीला निवास, पानदरीबा, लखनऊ में रहने लगे। उनकी मौजूदगी से राज्य पार्टी को काफी लाभ हुआ।वो पूरी तरह से हमारी रहनुमाई करते थे और रोज़ाना लखनऊ के आस पास के जनपदों में दौरे करके रात में ही वापस राज्य कार्यालय लौटते थे। कानपुर, उन्नाव, रायबरेली, सुल्तानपुर, बाराबंकी, सीतापुर और हरदोई ज़िलों में उनके रोज़ाना किसी न किसी ज़िले में कार्यक्रम होते रहते थे। कभी कभी तो वे इक्का तांगा और साइकिल पर ही चुनाव प्रचार के लिए चल देते। वो रोज़ाना 5-6 सभाओं में भाषण देकर पार्टी की रीति नीति के आधार पर पार्टी के उम्मीदवारों के लिए समर्थन और वोट मांगते थे। इसके अतिरिक्त वो डॉ. लोहिया के लोकसभा चुनाव क्षेत्र कन्नौज में भी अपना काफी समय देते थे। जनवरी के पहले सप्ताह में उन्होंने कन्नौज लोकसभा सीट में 4 जनवरी को छिबरामउ, 5 जनवरी को उमरदा और 6 जनवरी को कन्नौज रिज़र्व सीट विधानसभा क्षेत्रों का व्यापक दौरा करके आम सभाओं को संबोधित किया जिसमें मुझे भी उन्होंने अपने साथ रखा था।

राजनारायण जी बहुत सी ख़ूबियों के मालिक थे। अगर ये कहा जाए कि राजनीति में डॉ. लोहिया के जुझारूपन का कोई उत्तराधिकारी था तो वो श्री राजनारायण ही थे। लेकिन डॉ. लोहिया में प्रबुद्धों को प्रभावित करने की शक्ति जारी रखने का उत्तराधिकार और सोचने का अनूठा अंदाज़ रखने का श्रेय श्री मधुलिमये को जाता है।

डॉ. राममनोहर लोहिया के उत्तराधिकारी होने का श्रेय इन दोनों को ही है। राजनारायण जी बेहतरीन दोस्त थे जिसपर वे यक़ीन करते थे उसकी पूरी मदद करते थे और दोस्ती में वे किसी भी हद तक जा सकते थे। उन्हें अपना विरोध बिल्कुल पसंद नहीं था। वे अपने विरोधी से किसी हालत में एडजस्ट नहीं करते थे।”

(वरिष्ठ पत्रकार क़ुरबान अली स्वर्गीय कैप्टन अब्बास अली के पुत्र हैं और उनकी आत्मकथा के संपादक भी।आजकल वह समाजवादी आंदोलन के दस्तावेज़ों का संकलन कर रहे हैं )

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