सच कहने का जोखिम उठाने की मिसाल बन गये हैं कन्नड़ लेखक देवनूरु महादेव

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— अनिल सिन्हा —

स्वतंत्रता दिवस और घर-घर तिरंगा कार्यक्रम का शोर है। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की याद आना स्वाभाविक है जो आजादी के आंदोलन और तिरंगा से दूर था, लेकिन अब उस विरासत पर कब्जा करने की कोशिश में है। आरएसएस देश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी तथा उसकी हिंदुत्व की विचारधारा का जन्मदाता तथा मार्गदर्शक है। लेकिन यह संगठन फिलहाल लोगों की नजर से थोड़ा ओझल है क्योंकि लोगों के सामने केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके खास सहयोगी तथा गृहमंत्री अमित शाह के चेहरे हैं। उन्हें लगता है कि यही जोड़ी पूरे तंत्र को चला रही है।

प्रचार-तंत्र का यह कमाल है कि लोगों का ध्यान इससे हट ही गया है कि देश की सत्ता में बैठी पार्टी किसी ऐसे परिवार का सदस्य है जो करीब सौ साल से देश को हिंदू राष्ट्र में बदलने का सपना देख रहा है और प्रधानमंत्री मोदी इसके प्रचारक रहे हैं। लोगों के ध्यान में यह बात भी नहीं आ रही है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश में पचास से अधिक संगठन चलाता है जिनका मुख्य काम धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण करना है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से लेकर विश्व हिंदू परिषद तक विभिन्न वर्गों के बीच उसका नेटवर्क फैला है।

जब सारा ध्यान मोदी-शाह पर टिका है पर्दे के पीछे काम कर रहे और इन दोनोें को ‘‘कठपुतली’’ की तरह नचानेवाले संगठन की असलियत को फिर से लोगों के सामने लाने की जरूरत को पूरा किया है प्रसिद्ध कन्नड़ लेखक और विचारक देवनूरु महादेव ने, जिनकी सच्चाई और ईमानदारी पर उंगली नहीं उठाई जा सकती। उन्होंने एक बड़ी खामोशी को तोड़ा है। कन्नड़ में लिखी 68 पेज की उनकी पुस्तिका ‘आरएसएस : डेप्थ एंड ब्रेड्थ’ यानी ‘आरएसएस : पहुंच और विस्तार’ की एक लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं और इसका अंग्रेजी समेत कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है, कई में हो रहा है। लोकप्रिय लेखक ने अपनी इस पुस्तिका में उपमाओं, कहावतोें और लोककथाओं का इस्तेमाल अपनी परिचित साहित्यिक शैली में किया है, लेकिन तथ्यों की शत-प्रतिशत प्रामाणिकता के साथ। पुस्तिका में मिथकों तथा तथ्यों का अद्भुत मेल है जो आरएसएस के चरित्र को परत-दर-परत उघाड़ कर रख देता है।

देवनूरु ने पुस्तिका को भविष्य के नागरिकों को समर्पित किया है। वह लिखते हैं, ‘‘मेरी कामना है कि जिन बच्चों ने इस दुनिया मेेें विश्वमानव के रूप में जन्म लिया है, वे बड़े होकर यही बने रहें।’’ जाहिर है इस कामना के पीछे उनकी यह चिंता छिपी है कि भारत के आम लोगों की नागरिकता पर बड़ा खतरा मॅंडरा रहा है।

देवनूरु आरएसएस का परिचय एक जादूगर के रूप में कराते हैं, ‘‘हमारी लोक कथाओं में एक ऐसे जादूगर की कहानी है जिसने दुनिया भर में कोहराम मचा रखा है। वह एक अत्याचारी के रूप में लोगोें के सामने आता है क्योंकि उसने अपने प्राण सात समुंदर पार की गुफा में एक तोते के भीतर सुरक्षित कर रखा है। अव्वल तो वह एक जादूगर है और साथ ही साथ एक बहुरूपिया। कई रूपों को धारण करनेवाला प्राणी। असंख्य भेषों में दिखनेवाला। उसे कोई छू नहीं सकता क्योंकि उसने अपनी आत्मा को सुदूर कंदरा में छिपाकर हर हमले से अपने को सुरक्षित कर लिया। इस दलदल से निकलने का सिर्फ एक ही रास्ता है कि सबसे पहले यह पता किया जाए कि उसकी आत्मा कहां छिपाकर रखी हुई है। हमें उसे ढूंढ़ना होगा। आरएसएस की जान को ढूंढ़ निकालने के लिए मैंने एक पुराने बदबूदार कुएं में झांका है जहां से संगठन की उत्पत्ति का पता लगाया जा सके। मुझे जो दिखाई पड़ा वह घिनौना है।’’

देवनूरु बताते हैं कि चातुर्वर्ण्य तथा मनुस्मृति में अटूट विश्वास की वजह से ही आरएसएस को भारतीय संविधान में कोई आस्था नहीं है। वह गोलवलकर और सावरकर को उद्धृत करते हैं जहां  मनुस्मृति को कानून का आधार बनाने की वकालत की गई है। सावरकर कहते हैं,‘‘मनुस्मृति ही उन नियमों तथा विधियों का आधार है जिसका पालन हिंदू आज तक अपनी रोज की जिंदगी में करते हैं। मनुस्मृति ही हिंदू कानून है।’’

देवनूरु बताते हैं कि भाजपा शासित राज्यों में भगवदगीता पढ़ाए जाने के पीछे चार वर्णों की व्यवस्था की विचारधारा को फैलाने का उद्देश्य है। लेकिन उन्होंने इस आख्यान की सत्यता को ही चुनौती दी है कि भगवान ने चार वर्णों का प्रतिपादन किया। वह कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि चातुर्वर्ण्य की उत्पत्ति मुझसे हुई है। देवनूरु सवाल करते हैं कि क्या गीता के मूल ग्रंथ में कृष्ण ने चातुर्वर्ण्य का उल्लेख किया है? क्या इसे बाद में जोड़ा गया? क्या महाभारत में गीता को ही बाद में जोड़ा गया है और ऐसा हुआ है तो कब हुआ है?

देवनूरु अपने संदेह के समर्थन में स्वामी विवेकानंद को उद्धृत करते हैं। विवेकानंद ने कहा है, ‘‘शंकराचार्य की गीता पर लिखी गई टीका के पहले लोग इसके विवरण से अनजान थे। ……निश्चित तौर पर, कुछ लोगों का निष्कर्ष है कि गीता के रचयिता खुद शंकराचार्य थे और उन्होंने ही महाभारत में गीता को जोड़ दिया।’’

आरएसएस के बारे में देवनूरु महादेव की कन्नड़ में लिखी किताब का आवरण पृष्ठ, जिस किताब ने धूम मचा रखी है

देवनूरु महादेव कहते हैं, ‘‘इसीलिए भारत का संविधान हिंदुओं की इस परिवार (संघ परिवार) के लिए एक दुःस्वप्न है जो चाहता है कि इसके बच्चे विश्व-नागरिक के रूप में भले पैदा हों लेकिन जाति-वर्ण से मजबूती से बॅंधे रहें और मौत तक इसके घेरे में रहें। यह उनकी नींद हराम कर रहा है। आरएसएस और इसका परिवार संविधान को खत्म करने के लिए ऐसे कामों में लगा है जिसका कभी समर्थन नहीं किया जा सकता।’’

देवनूरु आरएसएस की सांप्रदायिकता की जड़ें भी चातुर्वर्ण्य को कायम रखने की इसकी कोशिशों में पाते हैं। वह कहते हैं कि चार वर्णों की व्यवस्था का विरोध करनेवाले जिन धर्माें ने भारत में जन्म लिया- जैन, बौद्ध तथा लिंगायत- उन्हें अपना बताकर तथा वर्णव्यवस्था में शामिल कर वह उन्हें निष्क्रिय बनाता है ताकि चार वर्णों की व्यवस्था को बचाया जा सके। इस्लाम तथा ईसायत जैसे धर्मों पर ‘परिवार’ की ओर से हमला कराया जाता है क्योंकि उन्हें वर्ण व्यवस्था के भीतर नहीं लिया जा सकता है।

देवनूरु कहते हैं, ‘‘चार वर्णों की व्यवस्था के भीतर लेकर उन्हें निगलने में अक्षम आरएसएस अल्पसंख्यकों को हर तरह से बेजान और हर तरह के अधिकार से वंचित करना चाहता है। गोलवलकर ने कहा है कि विदेश से आए लोगों के सामने दो ही विकल्प हैं। वे राष्ट्रीय नस्ल में अपने को विलीन कर दें और इसकी संस्कृति अपना लें और बहुसंख्यक आबादी की संस्कृति और आचार-विचार को पूरी तरह अपना लें या तब तक उसकी दया पर रहें जब तक वह इसकी इजाजत दे और उसकी इच्छा होने पर देश छोड़ दें।’’

इसके लिए आरएसएस हिटलर के तरीकों और फासीवाद तथा नाजीवाद की विचारधारा का सहारा लेता है। देवनूरु बताते हैं कि किस तरह एक झंडा, एक राष्ट्रीय विचारधारा, हिटलर वाली एक नस्ल और सभी तरह की शक्तियों से संपन्न एक नेता का निरंकुश शासन उनका लक्ष्य है।

वह भाजपा के कार्यों में चातुर्वर्ण्य की दुर्गन्ध, मनु के कानूनों की घुसपैठ, संविधान का खात्मा, इस्लाम तथा ईसायत के प्रति असहिष्णुता और आर्यों की श्रेष्ठता के विचार को देखते हैं। वह बताते हैं कि किस तरह कर्नाटक में धार्मिक स्वतंत्रता का कानून संविधान को नष्ट करनेवाला और मनु के कानून को स्थापित करनेवाला कदम है।

देवनूरु के अनुसार संविधान का संघीय ढांचा आरएसएस के निशाने पर है। यह हमारे संविधान की आत्मा है और आरएसएस उसे ही नष्ट करना चाहता है। उन्होंने गोलवलकर को उद्धृत किया है जिसमें उन्होंने कहा है, ‘‘हमें अपने संविधान के संघीय स्वरूप को गहरे दफना देना चाहिए। हमें भारत के भीतर स्वायत्त और अर्ध-स्वायत्त राज्यों के सारे निशान मिटा देना चाहिए।’’

देवनूरु कहते हैं कि जीएसटी के जरिए भाजपा ने एक झटके में संघीय ढांचे को दफना दिया है और गोलवलकर की इच्छा पूरी कर दी है। राज्यों ने इसे स्वीकार कर अपनी आर्थिक स्वायत्तता त्याग दी है।

देवनूरु इसी ओर जाते एक और कदम के बारे में बताते हैं कि किस तरह आरएसएस अलग-अलग भाषाओं की जगह एक ही भाषा को रखना चाहता है। यह भाषा संस्कृत है। हिंदी के रास्ते चलकर वह संस्कृत को वापस लाना चाहता है।

देवनूरु आरएसएस की नस्ली दृष्टि और आर्यों को लेकर उनकी मानसिक गांठ को भी उघाड़ कर रख देते हैं। वह कहते हैं कि आरएसएस आदिवासी की जगह उन्हें वनवासी कहता है और उनसे सब कुछ छीन लेने के बाद उनकी पहचान भी मिटाना चाहता है। वह कहते हैं कि वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं कि मूलनिवासी जब तक अपनी पहचान पर जोर देते रहेंगे, इन्हें अपने बाहर से आए हुए होने का अहसास होता रहेगा। वह कहते हैं कि हरियाणा के राखीगढ़ी के प्राचीन जीवाश्मों की डीएनए जांच से साबित हो गया है कि सिंधु घाटी सभ्यता में आर्य या वैदिक विरासत पूरी तरह अनुपस्थित थी। इसीलिए वे सिंधु घाटी की सभ्यता को ‘सरस्वती नदी की सभ्यता’ का नाम दे रहे हैं। देवनूरू सवाल करते हैं, ‘‘इससे क्या फर्क पड़ता है अगर हम यह स्वीकार कर लेते हैं कि आर्य बाहर से आए थे? भारत की भूमि हर बच्चे को गले लगाती है जो यहां जन्म लेता है। इसके अलावा द्रविड़, आर्य, मुसलमानों और ईसाइयों का खून अनिवार्य रूप से मिश्रित है। अगर ऐसी बात है तो आरएसएस बेचैन क्यों हैं? वह वर्तमान में क्यों नहीं जीना चाहता है?  ऐसा लगता है कि आरएसएस आर्य नस्ल को लेकर मनोग्रस्त हो गया है।’’

देवनूरु ने भारत की राजनीतिक पार्टियों को तीन वर्गों में बॉंटा हैै। पहले में किसी एक व्यक्ति के नियंत्रण में चलनेवाली पार्टियां, दूसरे में परिवार के नियंत्रण में चलनेवाली पार्टियां और तीसरे में गैर-संवैधानिक समूह की ओर से चलनेवाली पार्टियां। वह कहते हैं, ‘‘तीनों तरह की पार्टियां लोकतंत्र के लिए घातक हैं। लेकिन तीसरे प्रकार की पार्टियां सबसे ज्यादा घातक होती हैं।’’ भारतीय जनता पार्टी देश की सत्ता में बैठी तीसरे प्रकार की पार्टी है और गैर-सवैधानिक संगठन द्वारा संचालित है।

वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी भले ही भाजपा के बहुमत पाने के कारण सत्ता में आए हों और एक मजबूत नेता के रूप में पेश किए जा रहे हों, वह ‘‘कठपुतली’’ हैं जो पहले के नेताओं के मुकाबले बेहतर तरीके से आरएसएस की धुनों पर अभिनय कर सकते हैं।

वह कहते हैं कि एक गैर-संवैधानिक संगठन की ओर से संचालित पार्टी सत्ता में नहीं होती तो बेरोजगारी और महंगाई कम की गई होती। सार्वजनिक संपत्ति बेचकर सरकार नहीं चलाई जाती। विदेशी कर्ज इतना नहीं बढ़ गया होता। स्वायत्त संस्थाओं को बेजान नहीं किया जाता। उन्होंने कहा है कि कोरोना के पहले अंबानी की कुल संपत्ति 2.86 लाख करोड़ थी। वह जून, 2022 में बढ़कर 8.03 लााख करोड़ हो गई। अदानी की संपत्ति 2020 में सिर्फ 69 हजार करोड़ थी, अंबानी की संपत्ति के चौथाई से भी कम थी। वह जून, 2022 में 7.80 लाख करोड़ हो गई।’’
वह कहते हैं कि यह सरकार किसके लिए है? यह देश भर के लोगो को बैठकर सोचना होगा।

देवनूरू इंदिरा गाधी के आपातकाल से मौजूदा हालत की तुलना करते हैं और कहते हैं कि “वह आपातकाल सिर्फ प्रशासनिक था जबकि यह जीवन के हर क्षेत्र पर शिकंजा कसनेवाला काल है।’’

वह कहते हैं कि हम याद रखें कि इंदिरा गांधी की छोटी अवधि की तानाशाही में न्यायपालिका, कार्यपालिका, प्रेस और अन्य स्वायत्त संस्थाओें को इस तरह बेजान नहीं बना दिया गया था जैसा आज किया गया है। मोदी के राज में न्यायपालिका, कार्यपालिका, प्रेस और स्वायत्त संस्थाएं अपने अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

उनका कहना है कि झूठ का सहारा लेनेे की परंपरा गोलवलकर ने ही डाली थी जब वह प्राचीन भारत मेें यहां की जातियों की नस्ल सुधारने के कथित प्रयोगों को लेकर दिए गए बयान से पलट गए। वह कहते हैं कि झूूठ का सहारा लेकर अभी टीपू सुल्तान को खलनायक बनाया जा रहा है। वह जनसंख्या के आंकड़ों के जरिए बताते हैं कि किस तरह आरएसएस ने यह झूठ फैलाया है कि टीपू ने कुर्ग जिले मेें 69000 हिंदुओं का धर्मांतरण कराया जबकि वहां की कुल आबादी ही इतनी नहीं थी।

देवनूरु कहते हैं कि आरएसएस तथा भाजपा की धोखाधड़ी के कारनामे देश भर में फैले हैं और अंत में इसने भ्रम, संदेह और नफरत के माहौल में पाकिस्तान को स्थायी दुश्मन बताकर सत्ता हासिल कर ली है और अब सैकड़ों संपन्न और विविध परंपराओं और पंथों का समावेश करनेवाला हिंदू धर्म इस धोखे पर जयप्रकाश नारायण की तरह ही विलाप कर रहा है जिन्हें आरएसएस आश्वासन देकर पलट गया कि जनता पार्टी में शामिल भारतीय जनसंघ के लोग आरएसएस की सदस्यता छोड़ देंगे।

देवनूरु पिछडे़-दलितों को आगाह करते हैं कि श्रीराम सेने तथा बजरंग दल में हिजाब, हलाल बिक्री पर रोक और अजान के खिलाफ आवाज उठानेवाले युवा वंचित तबकों से हैं। क्या विकास का हमारा लक्ष्य उनकी संख्या के मुताबिक नौकरी देने का नहीं होना चाहिए? लेकिन भाजपा चाहती है कि शूद्र उसके पैदल सिपाही रहें, असुरक्षित रहें और चार वर्णों के मुताबिक सेवा करनेवालों की स्थिति में वापस जाएं।

वह बताते हैं कि किस तरह भाजपा ने निजीकरण के जरिए नौकरियों में आरक्षण को बेअसर कर दिया है। भूमि सुधार में जोतनेवालों को जो हक मिला था, उसे ठेके की खेती के जरिए खत्म किया जा रहा है। ये शूद्रों को फिर से गुलामी की ओर ले जानेवाले कदम हैं। श्रमिकों के अधिकार छीनने की केंद्र सरकार की कोशिशें भी इसी दिशा में हैं।

वह बताते हैं कि 2017 से 2022 के बीच भारत में 2 करोड़ महिलाएं श्रम बाजार से बाहर हो गईं। इन सब के बीच, शिक्षा का निजीकरण किया जा रहा है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा घट रही है।

देवनूरु कहते हैं, ‘‘वे किसी भी भेष मेें आ सकते हैं। उदाहरण के तौर पर वे मंदिर के रख-रखाव के लिए आ सकते हैं। वे झूठी खबर फैला सकते हैं। वे चालीसा के पाठ का आयोजन कर सकते हैं। वे किसी भावनात्मक मुद्दे में फॅंसा सकते हैं जैसे कांटे में मछली फंसाई जाती है। हमें सतर्क रहने की जरूरत है। हर साजिश का पर्दाफाश करने की जरूरत है।’’

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