10 सितंबर। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में स्थित हसदेव अरण्य कुछ समय से पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। इन दिनों हसदेव अरण्य में पुनः पेड़ काटने की तैयारी जोरों पर है। कोल खनन के लिए जंगल की कटाई की जाएगी। कोल खनन के लिए हजारों पेड़ों की बलि दी जाने की जानकारी मिलने पर ग्रामीणों ने विरोध शुरू कर दिया है। ग्रामीण जंगलों को बचाने के लिए अपने स्तर पर सक्रिय हो गए हैं। आदिवासी जल, जंगल, जमीन को भगवान मानकर पूजते हैं। उदयपुर क्षेत्र में महिलाएं और पुरुष लाठी डंडा लिये पेड़ों की कटाई और जेसीबी से बनाए जा रहे रास्ते को बंद कराने के लिए पहुँच गए हैं। कई गाँवों के ग्रामीण तीन दिनों से पेड़ों की रक्षा के लिए जंगल में डेरा जमाए हैं। जबकि इसके पूर्व आंदोलन के दौरान अधिकरियों ने ग्रामीणों की सहमति के बिना पेड़ नहीं काटने का आश्वासन दिया गया था।
एबीपी न्यूज के हवाले से मिली सूचना के अनुसार, प्रदर्शनकारी मुनेश्वर सिंह अरमो का कहना है, कि दो दिन पहले कोयला खदान से जंगल की ओर करीब 500 मीटर की दूरी तक पोकलेन के जरिए रास्ता बनाया जा रहा था। विदित हो, कि राज्य सरकार ने बीते 6 अप्रैल 2022 को सरगुजा जिले में परसा ईस्ट एवं कांते बेसन कोल माईन फेज टू के विस्तार को आधिकारिक मंजूरी दे दी थी। दोनों कोल ब्लॉक राजस्थान राज्य विद्युत निगम को आवंटित है। एमडीओ के जरिए अडानी ग्रुप को खनन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पिछली बार कोल खनन के लिए पेड़ों की कटाई का जबरदस्त विरोध हुआ था।
इधर आंदोलन कर रहे ग्रामीणों को क्षेत्रीय विधायक और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव सहित जिले के तमाम वन अधिकारी समझाने की कोशिश कर रहे हैं। डीएफओ पंकज कमल का कहना है, कि आदेश में हसदेव अरण्य क्षेत्र के 43 हेक्टेयर पर 8000 पेड़ कटने हैं। मई में 100 पेड़ काटे जा चुके हैं। बाकी के लिए आदेश नहीं मिला है। सरकार के निर्देशानुसार ग्रामीणों की सहमति पर ही पेड़ काटे जाएंगे।