— डॉ. सुनीलम —
कल डॉ राममनोहर लोहिया की 55वीं पुण्यतिथि थी। डॉ. लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के अकबरपुर नामक ग्राम में हुआ था। पिता हीरालाल जैन पक्के कांग्रेसी थे। वे बचपन से ही उन्हें कांग्रेस के अधिवेशनों में ले जाया करते थे।
लोहिया ने अपनी पढ़ाई बनारस, कोलकाता, मुंबई और बर्लिन से की। युवावस्था में अनेक युवा संगठनों के साथ कार्य किया। विदेश में पढ़ाई कर जब लौटे तब उन्हें कांग्रेस पार्टी ने विदेश विभाग की जिम्मेदारी सौंपी। नासिक की जेल में उन्होंने जेपी, आचार्य नरेंद्रदेव और अन्य समाजवादियों के साथ मिलकर देश में एक सोशलिस्ट पार्टी खड़ी करने की योजना बनाई। नतीजतन 17 मई 1934 को कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ। 1942 में गांधीजी द्वारा ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन’ की घोषणा किए जाने के बाद वे भूमिगत हो गए और उन्होंने 1942 के आंदोलन का अन्य समाजवादी नेताओं के साथ मिलकर नेतृत्व किया। अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद उन्हें लाहौर जेल की उसी काल कोठरी में रखा गया, जहां भगतसिंह को फांसी के पहले रखा गया था।
भारत की स्वतंत्रता संबंधी निर्णय हो जाने के बाद अंग्रेजों ने सभी कांग्रेसियों को छोड़ दिया लेकिन जेपी और डॉ लोहिया को नहीं छोड़ा। बाद में गांधीजी के हस्तक्षेप के बाद लोहिया और जेपी को छोड़ा गया। बीमार हालत में वे स्वास्थ्य लाभ के लिए गोवा पहुंचे जहां साढ़े चार सौ साल से पुर्तगाली शासन चल रहा था। उन्होंने पहली बार पुर्तगाली सरकार को गोवा मुक्त करने की खुली चुनौती दी। जिसके परिणाम स्वरूप गोवा आजाद हुआ।
आजाद भारत में डॉ लोहिया 13 बार गिरफ्तार हुए। उन्होंने समाजवादी आंदोलन को नई धार दी। अंग्रेजी हटाओ आंदोलन, दाम बांधो आंदोलन, हिमालय बचाओ आंदोलन नामक अभियान चलाए। पिछड़ा पावे सौ में साठ और चपरासी का बेटा हो या राष्ट्रपति की संतान, सबको शिक्षा एक समान जैसे नारे बुलंद किए।
डॉ लोहिया ने कहा कि दुनिया में सात किस्म की नाइंसाफियां लगातार चलती हैं, जिनके खिलाफ लड़ने की जरूरत है। इसे उन्होंने सप्त क्रांति का नाम दिया।
आज हम देखते हैं कि दुनिया में कारपोरेट के माध्यम से अमीर मुल्कों द्वारा गरीब मुल्कों का शोषण अत्यधिक बढ़ गया है। अमीर मुल्कों के 100 से अधिक कारपोरेट के पास दुनिया की 50 फीसद से अधिक पूंजी केंद्रित हो गई है। हथियारों की बिक्री के लिए दुनिया भर में युद्ध थोपकर अमेरिका, यूरोप हथियारों की होड़ पैदा कर अपनी अर्थव्यवस्था को लगातार सुदृढ़ बना रहे हैं। जिसके खिलाफ आकुपाई वॉल स्ट्रीट जैसे आंदोलन भी चल रहे हैं।
इसी तरह, भारत के संविधान में समाजवाद का उद्देश्य स्पष्ट तौर पर उल्लेखित होने के बावजूद देश गैरबराबरी चरम पर है।
गौतम अडानी एक दिन में सवा हजार करोड़ रुपए कमाता है। दूसरी तरफ 40 करोड़ लोग दो डॉलर से कम यानी 170 रुपये से कम पर गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर है। 1 फीसद आबादी के पास 52 फीसद पूंजी केंद्रित हो चुकी है। इसी अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय आर्थिक शोषण और लूट, जो कि देश और दुनिया के स्तर पर चल रही है उसे डॉ लोहिया ने सबसे बड़ी नाइंसाफी बताया था।
डॉ लोहिया ने जाति के आधार पर भेदभाव अर्थात सवर्णों द्वारा अवर्णों के खिलाफ किए जा रहे भेदभाव और अत्याचार को भारत में सदियों से हो रही सबसे बड़ी नाइंसाफी बतलाया था। आज भी दलितों पर जिस तरह से अत्याचार की घटनाएं रोज सामने आती हैं उससे पता चलता है कि सवर्णों द्वारा यह नाइंसाफी आज भी जाति के आधार पर की जा रही है। जिसके खिलाफ डॉ. लोहिया ने सप्त क्रांति की जरूरत बताई थी।
चौथी नाइंसाफी उन्होंने महिलाओं का शोषण, भेदभाव अत्याचार को बताया था इसलिए उन्होंने जब पिछड़ा पावे सौ में साठ का नारा दिया तब उसमें महिलाओं को शामिल किया था । आज महिलाओं के खिलाफ हिंसा चरम पर है। इसके बड़ी संख्या में महिला संगठन सक्रिय हैं। पुलिस, प्रशासन, सरकार महज कड़े कानून बनाकर असफल प्रयास कर रहे हैं।
इसी तरह डॉ लोहिया ने रंगभेद को दुनिया के स्तर पर बड़ी नाइंसाफी माना था। आम अश्वेतों की तरह डॉ. लोहिया खुद भी अमरीका में रंगभेद के शिकार हुए थे। उन्होंने रंगीन ( काले) लोगों पर कॉफी हाउस में लगी रोक का प्रतिकार किया और सत्याग्रह कर चुनौती दी थी। उसको लेकर बाद में अमरीकी प्रशासन को माफी मांगनी पड़ी थी। आज भी रंगभेद यूरोप और अमरीका में जारी है। तमाम ऐसे नए दक्षिणपंथी समूह इन देशों में सक्रिय हैं जो खुलकर अश्वेतों पर हमले करते हैं तथा उन्हें द्वितीय श्रेणी का नागरिक मानते हैं। आपको याद होगा कि अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड नामक एक अश्वेत को जब एक श्वेत (गोरे) पुलिसकर्मी ने घुटनों से गला दबाकर मार डाला था तब पूरा अमरीका उसके खिलाफ खड़ा हो गया और ट्रंप की रंगभेदी सरकार के शासन को अमरीकियों ने पलट दिया। इसके बावजूद रंगभेद जारी है।
डॉ लोहिया ने छठी नाइंसाफी दुनिया में निजता के अधिकार (राइट टु प्राइवेसी) के हनन को बतलाया था।
राष्ट्र-राज्य, सरकारों, संगठनों, पार्टियों के निजता के अधिकारों पर हमले को सप्तक्रांति के सात मुद्दों में जोड़ा था। किसी भी देश में कोई नागरिक कौन-से कपड़े पहनेगा, क्या खाएगा, क्या संगीत सुनेगा, किस धर्म के प्रति आस्था रखेगा, क्या उसकी पूजा पद्धति होगी, यह उसका निजता का अधिकार है लेकिन आज भारत और दुनिया में मोदी सरकार सहित तमाम सरकारें अपने नागरिकों के निजता के अधिकार का हनन कर रही हैं। नफरत के खिलाफ और संविधान को बचाने के लिए देशभर में कई अभियान चल रहे हैं और पदयात्राएं की जा रही हैं। यह सब इसी निजता के अधिकार को बचाने के लिए किया जा रहा है।
डॉ लोहिया ने सातवीं नाइंसाफी हिंसा के इस्तेमाल को बतलाया था। जिसका उपयोग समाज और देश पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए किया जाता है।
रासायनिक हथियारों का बहाना बनाकर अमरीका ने इराक को तबाह कर दिया। अफगानिस्तान पर पहले सोवियत रूस और बाद में अमेरिका ने हथियारों के दम पर कब्जा जमाया था, जिसके खिलाफ आज हथियारों के दम पर तालिबान अफगानिस्तान पर काबिज है।
रूस द्वारा यूक्रेन के खिलाफ छेड़ा गया युद्ध यह बतलाता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंसा बेरोकटोक जारी है।
इसी तरह देश में समूह विशेष के खिलाफ हिंसा का क्रम लगातार बढ़ता जा रहा है। कभी गौकशी रोकने के नाम पर तो कभी लव जिहाद की आड़ में, कभी कोरोना फैलाने के लिए तबलीगी जमात को जिम्मेवार बतलाकर, कभी धर्म के आधार पर बलात्कार और सफाया कर देने की धमकी देकर और अब समुदाय विशेष के खिलाफ आर्थिक बहिष्कार की अपील करके नफरत और हिंसा फैलाई जा रही है।
कल्याणकारी राज्य भी आज दमनकारी रूप ले चुका है। जो आदिवासी जल, जंगल, जमीन की लूट के खिलाफ सरकार को चुनौती देते हैं, उन्हें माओवादी बताकर जेल में डाल दिया जाता है। कश्मीर में जो कोई भी केंद्र सरकार के आफसा (आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट) या पब्लिक सेफ्टी एक्ट के खिलाफ बोलता है, जो जम्मू-कश्मीर राज्य का दर्जा खत्म कर उसको विभाजित करने या धारा 370 और 35A हटाने का विरोध करता है उसे पृथकतावादी और आतंकवादी बताकर या तो मार दिया जाता है या जेल में डाल दिया जाता है। सभी तरह की हिंसा को डॉ लोहिया ने नाइंसाफी बताया था।
इन सात नाइंसाफियों के खिलाफ आज भी संघर्ष करने की जरूरत है। आज डॉ लोहिया के जमाने की तुलना में ये नाइंसाफियां और भी बढ़ गई हैं। इन मुद्दों के साथ-साथ आज पर्यावरण का विनाश करनेवाला, विकास का वर्तमान मॉडल, बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। पर्यावरण का संकट मानव के अस्तित्व को चुनौती दे रहा है। इसी तरह बेरोजगारी, नशा और महंगाई ऐसे मुद्दे हैं जो वर्तमान समय में बड़ी नाइंसाफी के तौर पर सामने आ रहे हैं। डॉ लोहिया होते तो अवश्य इन मुद्दों को भी समतावादी समाज की स्थापना के लिए प्रतिपादित सप्त क्रांतियों में शामिल करते।
आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि कौन सप्त क्रांति का वाहक बनेगा? जन संगठन, युवा, किसान, दलित, आदिवासी, महिला एवं अल्पसंख्यकों के संगठन अपने अपने स्तर पर संघर्ष कर रहे हैं तथा मोदी सरकार के दमन के शिकार भी हो रहे हैं। जेल में फर्जी मुकदमों में बंद हैं।
डॉ लोहिया समाजवादी विचारक और समाजवादी आंदोलन के प्रणेता थे इसलिए यह जरूरी है कि देश के समाजवादी सप्त क्रांति के ध्वजवाहक बनने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लें तथा न्याय, बराबरी, लोकतंत्र और बंधुत्व पर आधारित समाज और राष्ट्र के निर्माण में अपनी ऐतिहासिक भूमिका का निर्वाह करें।