बापू के सपनों का भारत और आज का भारत

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mahatma-gandhi

प्रयाग के लब्धप्रतिष्ठ साहित्यिक श्री माधव शुक्ल (1881 – 1943) ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में आरम्भ हुये असहयोग आन्दोलन से प्रेरित होकर 1921 में अधोलिखित कविता की रचना की जिसमें राष्ट्रीय स्वातंत्र्य की बलिवेदी पर प्राणोत्सर्ग का, सर्वस्व लुटाने का आग्रह है

बापू के सपनों का भारत

“मेरी जां न रहे मेरा सर न रहे सामां न रहे न ये साज रहे। फकत हिन्द मेरा आजाद रहे माता के सर पर ताज रहे ॥ पेशानी में जिसके सोहे तिलक औ गोद में गान्धी विराज रहे।
न ये दाग बदनमें सुफेद रहे न तो कोढ़ रहे न ये खाज रहे ॥ सिख हिन्दु मुसल्मां एक रहे भाई भाई सा रस्मो रिवाज रहे। गुरु ग्रन्थ कुरान पुरान रहे मेरा पूजा रहे आँ नमाज़ रहे ॥
मेरी टूटी मड़ैया मे राज रहे कोई गैर न दस्तन्दाज़ रहे।
मेरी बीन के तार मिले हो सभी एक भीनी मधुर आवाज़ रहे ॥ ये किसान मेरे खुशहाल रहें पूरी हो फसल सुख साज रहे।
मेरे बच्चे वतन पै निसार रहें मेरी मा बहिनोंमें लाज रहे ॥
मेरी गायें रहे मेरे बैल रहें घर घर मे भरा सब नाज रहे।
घी दूध की नदिया बहती रहे हरसू आनन्द स्वराज रहे ॥
माधव की है चाह खुदा की कसम मेरे बाद वफातये वाज़ रहे। गाढ़ का कफन हो मुझ पै पड़ा बन्देमातरम् अलफाज़ रहे ॥

आज का भारत

करीब एक सौ साल बाद गांधी के सपनों के भारत की क्या स्थिति है, उसका संक्षिप्त चित्र मैंने खींचा है।

सोहे पेशानी में नमो महाप्रभु, गोद में गोडसे विराज रहा।
हिन्दु मुसल्मां के बीच आज अदावत का रस्मो रिवाज यहां। कुरानशरीफ वेद-पुरान तो हैं, नमाज़ पर गिरता गाज यहां
मस्जिद को मन्दिर बनाने के ख्वाहिशमंद का दस्तन्दाज यहां।
किसान हैं सिन्धु बोर्डर पर, उनके घर में अब नाज कहां?
गाडी से रौंदे गये कई, सियासी हुक्मरानों में लाज कहां?
असत्याग्रह पर बच्चे निसार रहे, हे बापू, तेरा स्वराज कहां? जयश्रीराम का नारा गूंज रहा, ‘ईश्वर अल्ला” अल्फाज कहां?

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