— राघव शरण शर्मा —
आज स्वामी सहजानंद का निर्वाण दिवस है। स्वामी सहजानंद के जीवन संघर्ष से हमें निम्न शिक्षाएं प्राप्त होती है –
1. राजनीति को जातीय नजरिए से न देखकर आर्थिक नजरिए से देखा जाना चाहिए।
2. आर्थिक संघर्ष जनता को गोलबंद करने के लिए किए जाते है। परन्तु किसान आंदोलन का लक्ष्य सिर्फ आर्थिक मांग पूरी होने तक नही है।मजदूरों के सहयोग से राजसत्ता दखल किसान आंदोलन का अन्तिम लक्ष्य है।
3. वामपंथी समुदाय का एक विश्व दृष्टिकोण होता है परन्तु इसकी अंतर्राष्ट्रीयता देशप्रेम के साथ बनी रहती है।
4. क्रान्ति का अर्थ व्यक्ति , सरकार या पार्टी मे बदलाव तक सीमित नही है । यह शासक वर्ग और व्यवस्था मे बुनियादी बदलाव है।
5. क्रान्ति के लिए सिर्फ सर्वहारा का अधिनायकत्व पर्याप्त नही है। किसान मजदूर और गरीब अवाम के सम्मिलित नेतृत्व से ही जनवादी क्रान्ति सम्पन्न की जा सकती है।
6. क्रान्ति के लिए समस्त कमाने वाली जनता के बहुमत की सक्रियता और उनके बीच संयुक्त मोर्चा बनाकर संघर्ष करना जरूरी है।
7. मुक्ति संघर्ष के लिए संसदीय और असंसदीय दोनो मोर्चे पर लडना होगा । संसदीय लडाई प्रशिक्षित नेताओं की देखरेख मे लडी जानी चाहिए । एक तरफ तो हम इससे कुछ राहत दिला सकते हैं दूसरी तरफ शासक वर्ग का भंडाफोड कर सकते हैं तीसरी तरफ किसानो को यह समझा सकते हैं कि संसदीय लडाई प्रधान महत्व का नही है, यह अपर्याप्त है । असल लडाई वर्ग-संघर्ष है।
8. किसान क्रान्ति का प्रधान बल है , सामन्त विरोधी संघर्ष ही साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष को अग्रगति प्रदान कर सकते हैं, अंजाम तक पंहुचा सकते हैं।
9. किसान सभा धर्म के सकारात्मक योगदान के खिलाफ नही है,
यह धर्म के पाखंड, शोषण और भाग्यवाद के खिलाफ है। धर्म का काम है पुरूषार्थी बनाना।
10. धर्म व्यक्तिगत है। सामूहिक धर्म, उन्माद पैदा करता है ।
11. व्यक्ति सामाजिक सत्ता से संश्रय कर अपने को और अपने लक्ष्य को पूर्ण करता है । लेकिन कुछ मामलो मे व्यक्ति को अपने अस्तित्व की तलाश अपनी अस्मिता और जनसंस्कृति मे करनी चाहिए ।
स्वामी जी ने सन 1949 के दिसम्बर महीने के अन्त में 18 छोटे-छोटे समाजवादी दलों को मिलाकर एक संयुक्त समाजवादी दल बनाया था जिसके वे 21 फरवरी 1950 को चेयरमैन मनाए गए। परन्तु तीन महीने के भीतर देहावसान हो जाने के कारण उनका प्रयास सार्थक नही हो पाया।
कांग्रेस समाजवादी और भारतीय साम्यवादी दल अपनी डेढ चावल की खिचड़ी अलग पकाने लगे। वे वामपक्षी संयुक्त मोर्चे में सम्मिलित नही हुए और वे अंततः बिखर गए। इस दिल के टुकडे हजार हुए, कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा” के तर्ज पर वे राष्ट्रीय दलों के दुमछल्ला बनकर रह गए।