जय प्रकाश नारायण आंदोलन

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जयप्रकाश नारायण (11 अक्टूबर 1902 - 8 अक्टूबर 1979)

श्री हरीश खरे ने जयप्रकाश जी के १९६७ से १९७७ के ऐतिहासिक योगदान की उपेक्षा की है। इस दशक में जयप्रकाश जी ने क्या किया?
१. १९६५-१९६६ में बिहार में अकाल राहत का काम और डा. लोहिया के साथ गहन विचार विमर्श,
२. १९६७ के राष्ट्रपति चुनाव में डा. जाकिर हुसैन का समर्थन,
३. १९६८ में सहरसा में सर्वोदय की पुनर्रचना के लिए सघन अभियान, महात्मा गांधी जन्म शताब्दी समिति का संयोजन और बिहार का ‘राज्यदान’,
४. १९६९-७० में उत्तर बिहार में माओवादियों से लंबा आमना-सामना,
५. चंबल में ६५० से अधिक बागियों का आत्मसमर्पण,
६. १९७१ में इंदिरा गांधी की चुनावी जीत की आलोचना और प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के अनुरोध पर बांग्लादेश के पक्ष में विश्व जनमत निर्माण,
७. १९७२-७३ में राजनीतिक सुधार की पहल,
८. १९७४ में सिटिजंस फार डेमाक्रेसी की स्थापना और चुनाव सुधार के लिए जस्टिस तारकुंडे समिति का गठन, अज्ञेय जी के संपादन में ‘एव्रीमैंस’ साप्ताहिक का प्रकाशन, गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन का आलोचनात्मक अनुमोदन और बिहार आंदोलन का सशर्त नेतृत्व,
९. ५ जून १९७४ को ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान,
१०. १ जनवरी १९७५ को छात्र युवा संघर्ष समिति की स्थापना, कलकत्ता में सी. पी. एम. की रैली में भाषण, ५ मार्च को भारतीय जनसंघ के सम्मेलन में भाषण और ६ मार्च ‘७५ को ‘संसद मार्च’ तथा लोकसभा को देशदशा में सुधार के लिए ज्ञापन,
११. २५ जून १९७५ को सर्वोच्च अदालत द्वारा प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की सदस्यता बहाल करने से इनकार करने के बाद इस्तीफा के लिए शांतिपूर्ण सत्याग्रह का ऐलान,
१२. २६ जून १९७५ से गिरफ्तार, प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला को आपातकाल हटाने के लिए पहल के लिए पत्र,
१३. १७ जनवरी १९७७ को लोकसभा चुनावों की घोषणा का स्वागत और एक नये प्रतिपक्ष दल के लिए पहल, १९७७ में गांधीवादी श्री मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री मनोनीत करना, जनता पार्टी का अध्यक्ष समाजवादी चंद्रशेखर को बनाना और बिहार का मुख्यमंत्री समाजवादी कर्पूरी ठाकुर को बनवाना,
१४. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मुस्लिमों और महिलाओं के लिए हिस्सेदारी को सहज बनाने की अपील और १९७७-७९ के जनता पार्टी के संगठन और सरकार के विवादों से अपने को अलग रखना…

इसमें से किस घटना से जयप्रकाश नारायण द्वारा आर. एस. एस. से संयुक्त मोर्चा बनाने का दावा किया जाए? इसके विपरीत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की पटना, बनारस से लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय तक छात्रसंघ चुनावों में प्रबलता थी। जनसंघ १९७५ में हुए मध्यावधि चुनाव में ‘लोकमोर्चा’ की सहयोगी पार्टी थी और नयी सरकार में साझेदारी कर रही थी। बिहार विधानसभा में भी १९७२ के चुनाव में अन्य गैर-कांग्रेसी दलों की तुलना में जनसंघ के ज्यादा सदस्य विजयी हुए थे। नानाजी देशमुख भी बिना जयप्रकाश नारायण से पूछे जून ‘७५ में बनी जन संघर्ष समिति के सर्वसम्मति से सचिव चुने गए थे। समिति के अध्यक्ष गांधीवादी श्री मोरारजी देसाई और कोषाध्यक्ष समाजवादी श्री अशोक मेहता थे।

लेकिन इमरजेंसी और मोदी राज के लिए किसी पर आरोप लगाना जरूरी है। इसमें जेपी और कभी-कभी लोहिया जी पर उंगली उठाई जाती है। दोनों लावारिस हैं। वैसे भी समाजवादी और सर्वोदय मार्ग पर चलने वाले इसे निरर्थक विवाद मानते हैं। अगर भारत में १९९९ से जारी भाजपा राज के जनक जयप्रकाश नारायण नहीं थे, तो किसी की तो भूमिका थी! आइए सच को पहचानने की कोशिश करें:/

१. आर. एस. एस. के सत्तारोहण में वैश्विक पूंजीवादी ताकतें हर स्तर पर शामिल हैं।
२. हिंदू मध्यम वर्ग और सवर्ण जातियों के योगदान को ऐसे लोग नहीं देख पाते।
३. मुस्लिम मध्यम वर्ग को निर्दोष माना जाता है।
४. भारत विभाजन और अल्पसंख्यकवाद का कोई महत्व नहीं है!
५. कांग्रेस और श्रीमती इंदिरा गांधी तथा श्री राजीव गांधी की ‘नरम सांप्रदायिकता’ की चर्चा करने की हिम्मत नहीं है।
६. बहुजन समाज पार्टी का भाजपा से मिलकर सरकार बनाने की अनदेखी करने में ही भलाई है।
७. वामपंथियों को भी इस बदलाव से दूर माना जाता है जबकि वामपंथियों और भारतीय जनता पार्टी ने मिलकर श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का राज चलाया था।

कहां तक गिनाऊं?

साधू देखौ, जग बौराना।
सांच कहे तो मारन दौड़े,
झूठ कहे पतियाना……

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  1. जयप्रकाश जी गांधीजी के बाद एक मात्र भारतीय मानस के हृदय सम्राट रहे! हमेशा पद मुक्त रहे। गांधी शांति प्रतिष्ठान में भी आजीवन संचालक रहे लेकिन पद मुक्त!! 1976 में 12 वर्ष के उम्र में उनसे सहरसा बिहार में मिला था । इस वर्ष प्रतिष्ठान कार्य से मुक्त हो रहा हूँ ! लेकिन गांधीजी, जयप्रकाश जी के कार्य में रहा ! “जीवन का अर्थ और अर्थमय जीवन को थोड़ा समझ पाया, इस बात का मन में संतोष और समाधान है !!

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