हिमाचल प्रदेश में इस समय जो विकास का तरीका है इसे बदलना ही है! वैसे तो पूरे विश्व में जिस तरह से विकास की अंधी दौड़ से धरती के पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ा है तो पूरे विश्व में दोबारा से विकास के मॉडल को गढ़ना होगा। पूंजीवाद मॉडल ने धरती पर जीवन को संकट में डाला है और आज का विश्व की सरकारों का नेतृत्व इसके बारे बिल्कुल संवेदनशील नहीं है। वो धरती के बढ़ते तापमान के बारे बेपरवाह हैं।
हिमाचल प्रदेश को भौगोलिक दृष्टि से तीन जोन में विभाजित किया जाता है:
हिमाचल प्रदेश का ऊपर का पहाड़ी क्षेत्र: इस क्षेत्र में लौहल स्पीति किन्नौर के साथ शिमला कुल्लू चम्बा मंडी के ऊपर के क्षेत्र!
पहाड़ के मध्य क्षेत्र: इसमें मंडी का ज्यादातर क्षेत्र कुल्लू वैली चंबा का नीचे का क्षेत्र सिरमौर का ऊपर का क्षेत्र और कांगड़ा और सोलन का कुछ क्षेत्र!
निचला पहाड़ी क्षेत्र: इसमें ऊना बिलासपुर हमीरपुर कांगड़ा का निचला क्षेत्र चंबा सिरमौर सोलन का कुछ क्षेत्र जिसे शिवालिक क्षेत्र से जाना जाता है।
हम हिमाचल प्रदेश में कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर को मध्य पहाड़ी क्षेत्र में विकास के मॉडल को एक बढ़िया नमूना मानते हैं। यह विश्वविद्यालय 1970 के दशक में बना है और हम यहां 1975 में पहली बार एक रात रुके हैं। और 1986 के बाद अक्सर आना जाना रहता है और अब लगभग हर महीने जाते हैं। यहां पर बर्षा के जल का बहुत ही बढ़िया ढंग से प्रबंध किया गया है। जल और मिट्टी सरंक्षण का बहुत बढ़िया प्रयास है। सारे बिल्डिंग अच्छे ढंग से प्लान किए हैं। हाल ही में बने कुछ स्ट्रक्चर जरूर अपवाद हैं। पर कुल मिला कर पर्यावरण की दृष्टि से बहुत सही हैं। यहां का वर्षा का लगभग 80 प्रतिशत जल को छोटे छोटे जलाशयों में जमा किया जाता है। इसे खेती के लिए इस्तेमाल भी किया जाता है और भूज कोल में भी बढ़ौतरी होती है। मध्य पहाड़ी क्षेत्र के लिए यही मॉडल अपनाए जाने की जरूरत है। हिमाचल प्रदेश में बड़े बिल्डिंग बनाए जाने की मनाही होनी ही है। दो ढाई मंजिल से ज्यादा इमारतें बिल्कुल नहीं बननी हैं और एक तिहाई कंस्ट्रक्शन एरिया ही अलाउड हो बाकी ग्रीन बेल्ट रखा जाना जरूरी है। शिमला मनाली कुल्लू मंडी सुंदर नगर धर्मशाला चंबा नाहन सोलन बिलासपुर ऊना हमीरपुर कांगड़ा पालमपुर देहरा नूरपुर शहरों में बिल्कुल नई इमारतें बनाने पर रोक हो। दूसरे कस्बों में भी प्लानिंग से ही इमारतें बने। और जितने भी टूरिस्ट जगहें हैं वहां भी प्लानिंग से ही इंफ्रास्ट्रक्चर बने। यहां भी कोई पक्का स्ट्रक्चर बने तो वर्षा के जल का उचित प्रबंध सुनिश्चित किया जाना जरूरी है। सड़कें बनाते समय मक का सही प्रबंध जरूरी है। आज जो भी सड़कें बन रही हैं सारी की सारी बाढ़ को न्योता दे रही हैं। पिछले समय में जो भी बहुत बड़े नुकसान हुए हैं इसमें सबसे ज्यादा बरबादी सड़कों के बनाने से ही हुई है या फिर बिल्डिंग बनने से वर्षा जल के बहाव ही कारण रहा है।
हिमाचल प्रदेश में वाटरशेड प्रबंध के हिसाब से ही विकास होना है। 3 जोन में अलग अलग तरीके अपनाने होंगे। तभी लोग सुरक्षित रहेंगे। सभी हाउसहोल्ड को अपने अपने घरों की सुरक्षा की प्लानिंग बनानी होगी। सरकार को समय रहते इसके लिए पहल करनी है और राजनीतिक समझ बनाने की जरूरत है। सराज में जो भी नुकसान हुआ है इसका मुख्य कारण धड़ाधड़ बिना प्लानिंग से विकास ही है। पिछले 25 सालों में बड़े स्तर पर सड़कें बनी हैं और सरकारी दफ्तर भी बने हैं और टूरिज्म के लिए होटल और दूसरे इन्फ्रास्ट्रक्चर बने हैं और पर्यावरण की अनदेखी बड़े स्तर पर हुई है। इससे सीख लेने की जरूरत है।
जय हिंद
डॉ अशोक कुमार सोमल
स्वराज सत्याग्रही व पर्यावरण प्रेमी
लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान
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