सत्यपाल मलिक नहीं रहे!

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Satyapal malik

— प्रोफेसर राजकुमार जैन —

दिल्ली के डॉ राममनोहर लोहिया अस्पतांल के आईसीयू में मौत से संघर्ष करते हुए साथी मलिक हार गए। मैं और रमाशंकर सिंह तकरीबन डेढ़ महीने पहले अस्पताल में मिलने के लिए गए हुए थे। पुराने अंदाज में देखते ही दोनों हाथ ऊपर उठाकर नमस्ते करने के प्रयास मे मजबूर, दवाइयां देने की नलकियों से बंधे होने के कारण। हल्की मुस्कान में हमारी और देखा फिर धीमी आवाज में कहा लडूंगा, मैंने कोई बेमानी नहीं की, सीबीआई मेरा क्या बिगाड़ लेंगी।

सत्यपाल मलिक के घर सीबीआई की तलाश अभी हाल तक जारी हैl किसी को गलतफहमी नहीं कि यह किस लिए हो रही है। जो भाजपा, नरेंद्र मोदी की मुखालफत करेगा उसका अंजाम यही होगा।

परंतु मुझे लगता है कि नरेंद्र मोदी की संगत में रहने के बावजूद मोदी, सत्यपाल के सोशलिस्ट डीएनए से वाकिफ नहीं हुए। सत्यपाल मलिक की सियासी तालीम सोशलिस्ट तहरीक में हुई है। मेरठ कॉलेज के छात्र रहते हुए वे सोशलिस्टों के युवा संगठन ‘समाजवादी युवजन सभा’ में शरीक हो गए और मेरठ कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष भी चुने गए। वहां से शुरू हुए उनके सियासी सफर का मैं चश्मदीद गवाह हू। मेरठ जिले के गांव हिसावदा के जाट किसान परिवार में जन्मे सतपाल मलिक का जलवा पश्चिम उत्तर प्रदेश के छात्र नौजवानों में दहकता था। उसकी धाक वहीं तक महदूद नहीं थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी के दयाल सिंह जैसे कॉलेज के छात्र संघ का उद्घाटन, तात्कालिक छात्र संघ अध्यक्ष कैलाश शर्मा सत्यपाल मलिक से कॉलेज के अधिकारियों के तमाम विरोध के बावजूद करवाने पर अड गए। परंतु जब सत्यपाल मलिक की तकरीर हुई तो सब दंग रह गए, अधिकारियों को भी शर्मिंदगी महसूस हुई।

साठ साल पहले शुरू हुए शुरुआती सफर में हम साथ थे। हमने सोशलिस्ट तहरीक में एक साथ सड़क पर संघर्ष, जद्दोजहद की। आपातकाल में तिहाड़ जेल में रात एक साथ बितायी। विचार की आग का आलम यह था कि 1968 में इंदौर में हुए समाजवादी युवजन सभा के राष्ट्रीय सम्मेलन में शिरकत करने गए हम साथियों के पास वापसी के टिकट के पैसे भी नहीं थे।

सत्यपाल मलिक की शादी के तुरंत बाद जावेद आलम जयंती गुहा जो दिल्ली के कॉलेज में पढ़ा रहे थे, उनके अंतर धार्मिक विवाह से खफा कालेज मैनेजमेंट ने उनको कॉलेज से बर्खास्त कर दिया। उसके विरोध में दिल्ली के सोशलिस्टों ने मैनेजमेंट के खिलाफ प्रदर्शन किया, जिसमें उनकी नवविवाहित पत्नी प्रोफेसर इकबाल कौर मलिक भी गिरफ्तार होकर तिहाड़ जेल में बंदी हुई।

उनकी शख्सियत और शोहरत की जानकारी से मुतासिर होकर चौधरी चरण सिंह ने इनको आग्रह सहित भारतीय क्रांति दल में शामिल होने का फरमान सुना दिया। उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य से शुरू हुआ यह सफर लोकसभा, राज्यसभा, केंद्रीय मंत्री, तथा राज्यों के राज्यपाल के पद पर रहने तक जारी रहा। हालांकि दाग उनके सियासी सफर पर भी है। भाजपा के राष्ट्रवाद के झांसे में आकर इन्होंने भी भाजपा जैसी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर मोदी के रहमोकरम पर राज्यपाल का पद पाया। पर आदत से मजबूर सोशलिस्ट तालीम अपना असर दिखाने दिखने लगी।

राज्यपाल जैसे संविधानिक पद पर रहते सरकारी आयोजन मे भी इन्होने बेबाकी, बेखौफ होकर जहां आतंकियों को ललकारा की मारना है तो कश्मीर को लूटने वालों को मारो, इन गरीब पुलिस वालों को जो रोटी के कारण हुकुम बजा रहे हैं उनको क्यों मारते हो? सतपाल मलिक यही नहीं रुके उन्होंने वहां के नेताओं जिन्होंने राज्य को दोनों हाथों से लूटा है, उनको निशाना बनाने का भी खुल्लम-खुल्ला ऐलान कर दिया। सोशलिस्ट तेवर से, वर्ग संघर्ष, गरीब मजदूर किसान, लुटेरे कमेरो की आवाज बुलंद कर दी। सरकार ने उस इंसान के घर पर छापा डाला जिसने गद्दी पर रहते हुए प्रधानमंत्री को कहा था कि राज्य में लूट मची हुई है। आरएसएस के एक बड़े नेता ने मुझे काम करने की एवज में 200 करोड़ की रिश्वत पेशकश की है, प्रधानमंत्री ने भी उनकी पीठ थपथपाई थी।

सवाल है, कि सरकार मलिक से खफा क्यों है? कश्मीर में पुलवामा में सरकारी साजिश का भंडाफोड़ सार्वजनिक रूप से इन्होने कर दिया। किसानों के आंदोलन के वक्त कहा, ‘मैं पहले किसान हूं बाद में और कुछ’। किसान आंदोलन के पुरजोर समर्थन में खड़े हो गए। सरकार भला कैसे बर्दाश्त करती? नतीजा साफ है, उसी कारण सीबीआई का छापा इनके घर पर पड़ा था। बड़े से बड़े पद पर रहने के बावजूद सार्वजनिक रूप से कई बार इन्होंने ऐलान किया कि मेरे पास 5-6 जोड़ी कुर्ते पजामे के अलावा और कुछ नहीं। एक कमरे के मकान में रहता हूं। सरकार जानती है कि उनके पास कोई अवैध संपत्ति नहीं मिलेगी।

छापे की हकीकत यह है कि सरकार को अंदेशा है की जिस रिश्वत की पेशकश की गई, तथा इस तरह के भ्रष्ट लोगों के रिकॉर्ड तथा सरकारी साजिशों के दस्तावेज इनके पास है। उसकी बरामदगी के लिए यह तलाश हुई है।नवंबर 1966 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी,कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया( मार्क्सवादी)तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े युवा संगठनों समाजवादी युवजन सभा, स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया,तथा ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन ने छात्रों युवाओं के सवालों को लेकर संसद के बाहर 18 नवंबर को संयुक्त विशाल प्रदर्शन करने का निर्णय लिया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सत्यपाल मलिक तथा दिल्ली में इसकी तैयारी की जिम्मेदारी युवजन सभा की ओर से मुझे सौंपी गई थी। दिल्ली में रैली को लेकर माहौल बहुत गरमाया हुआ था।उस समय के तात्कालिक गृह उपमंत्री विद्याचरण शुक्ल के निर्देश पर दिल्ली की सरहद में दिल्ली से बाहर के छात्रों युवकों को घुसने से रोक लगा दी गई थी, रेलवे स्टेशन बस अड्डे पर पहरा बैठा दिया गया था। दिल्ली विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर पुलिस की पिकेटिंग लगी हुई थी,विश्वविद्यालय बंद कर दिया गया दिल्ली विश्वविद्यालय पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था।

प्रदर्शन से पहले सूचना मिली की युवजन सभा के नेताओं को डॉक्टर लोहिया के सरकारी निवास स्थान 7 गुरुद्वारा रकाबगंज पर बुलाया गया है मैं, सत्यपाल मलिक, प्रोफेसर विनय कुमार, बृजभूषण तिवारी, सत्य देव त्रिपाठी तथा अन्य साथी डा,साहब से मिलने के लिए गए,वहां पर डा,साहब ने बताया कि कम्युनिस्ट पार्टी से सूचना मिली है,वह चाहते हैं प्रस्तावित मार्च को टाल दिया जाए क्योंकि कुछ दिन पहले ही संसद पर गौ रक्षा आंदोलन के प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की गोली चलने से कई साधु मारे गए थे, उसके दोहराने की संभावना कम्युनिस्टों को थी। पहले डॉक्टर लोहिया ने हमसे पूछा तुम लोगों का क्या इरादा है? हम सभी ने कहा की प्रदर्शन तो होना ही चाहिए, डॉक्टर लोहिया भी यही चाहते थे। उसी शाम को कम्युनिस्ट पार्टी के नेता तथा संसद सदस्य भूपेश गुप्त के फिरोज शाह रोड के घर पर स्टूडेंट फेडरेशन तथा समाजवादी युवजन सभा के नेताओं की एक संयुक्त बैठक बुलाई गई थी।बैठक में सोशलिस्टो की ओर से प्रोफेसर विनय कुमार, बृजभूषण तिवारी, सत्य देव त्रिपाठी, सत्यपाल मलिक और मैं पहुंचे थे।स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया की ओर से विमान मित्र (जो बाद में बंगाल में लेफ्ट फ्रंट की सरकार के समय उसके संयोजक बने रहे)एआईएसएफ की ओर से रंजीत गुहा, डॉक्टर योगेंद्र दयाल तथा कुछ और प्रतिनिधि हाजिर थे।

कम्युनिस्टों ने बैठक में कहा कि प्रदर्शन को स्थगित कर देना चाहिए,क्योंकि हमें पहले से ही पता था हमारे नेताओं ने घोषणा की के प्रदर्शन तो होकर ही रहेगा। अभी बातचीत चल ही रही थी कि भूपेश गुप्त के घर के गेट पर एक पुलिस जीप तथा कैदियों को जेल ले जाने वाली लारी वहां पहुंची।हमें माजरा समझ आ गया, प्रोफेसर विनय कुमार ने कहा की सत्यपाल और राजकुमार तुम दोनों फटाफट पीछे के दरवाजे निकलो क्योंकि तुम्हें कल विश्वविद्यालय में छात्र मार्च आयोजित करना है। मैं और सत्यपाल मलिक पीछे की ओर दौड़े परंतु पीछे दरवाजे पर ताला लगा हुआ था, हड़बड़ाहट में 1 मंजिले मकान की बरसाती छत पर हम चढ़ गए, नीचे पुलिस सोशलिस्टो की गिरफ्तारी के वारंट लेकर वहां पहुंची थी। सत्यपाल मलिक ने कहा लघु शंका बहुत तेजी से आ रही है और और कोई चारा न देखकर छत से बरसाती पानी के निकासी के लिए बने पाइप के पास उन्होंने अपने को हल्का किया हमें इस बात की शंका हुई कि यह नाली खुले में गिरती है वहां दो-तीन पुलिस वाले खड़े हैं उनको पता चल जाएगा परंतु उनकी नजर वहां पर नहीं पड़ी नीचे साथियों गिरफ्तार करके पुलिस तिहाड़ जेल ले गई, इस तरह मैं और सतपाल मलिक गिरफ्तारी से बचे। अगले दिन विश्वविद्यालय में मेरी गिरफ्तारी हो गई।

साथी सत्यपाल के राजनीतिक जीवन की एक लंबी यात्रा है। एक दौर ऐसा भी आया कि जब उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया, तो हम भी उनकी बुराई करने में किसी से पीछे नहीं थे।

मैंने कई बड़े लोगों को देखा है कि वक्त की नजाकत के मुताबिक अपने देवता, आदर्श पुरुष को छोड़ या छुपा लेते हैं, सत्यपाल मलिक ने तमाम उम्र, कैसी भी राजनीतिक स्थिति, संगति में गुजारे हो, किसी भी पार्टी या पद पर रहे हो, परंतु इनकी बैठक में डॉ राम मनोहर लोहिया का फोटो लगा रहा।

गवर्नर के पद पर रहते हुए सैकड़ों करोड़ की मिलने वाली रिश्वत को मय सबूत प्रधानमंत्री से शिकायत करने से लेकर गरीबों, मजदूरों, बेकसूरो की दुख गाथाओं को पद पर रहते हुए सरकारी समारोह में उजागर किया। किसानों के सवाल पर एक राज्यपाल की हैसियत का आदमी उसको राज्यपाल बनाने वाले प्रधानमंत्री को सार्वजनिक रूप से ललकार, लानत भेजता रहा। इसकी भी कोई दूसरी मिसाल शायद ही मिले। किसान का यह सोशलिस्ट बेटा किसी धमकी से डरने वाला नहीं था।


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