दिल्ली में जंतर मंतर पर मनरेगा मजदूरों का तीन दिन का धरना

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2 अगस्त। मनरेगा का बजट कम किए जाने के विरोध में और भुगतान बढ़ाने समेत कई मांगों को लेकर जंतर मंतर पर मंगलवार से देश भर से आए मजदूरों का तीन दिवसीय धरना शुरू हो गया है।

नरेगा संघर्ष मोर्चा के बैनर तले मनरेगा मजदूर लंबित वेतन, विलंबित भुगतान, अपर्याप्त बजटीय आवंटन सहित अन्य मुद्दों का विरोध कर रहे हैं।

नरेगा संघर्ष मोर्चा के सदस्यों का कहना है कि ”जहां गरीबी और बेरोजगारी में वृद्धि के कारण मनरेगा की मांग बढ़ी है, वहीं केंद्र सरकार द्वारा बजटीय आवंटन को कम कर दिया गया है।”

“इस वर्ष, सरकार ने बजटीय आवंटन को 15,000 करोड़ रुपए (पहले 97,034 करोड़ रुपये था अब 72,034 करोड़ रुपये हो गया है) कम कर दिए हैं। वहीं, मई 2021 से 2022 के बीच मनरेगा में काम की मांग 11 फीसदी से ज्यादा बढ़ गई।”

मोर्चा का कहना है कि लाखों मज़दूरों को लंबित मजदूरी का सामना करना पड़ रहा है। मोदी सरकार द्वारा अपर्याप्त आवंटन के कारण मनरेगा मजदूरों को कहीं और कम भुगतान वाले काम की तलाश करने के लिए मजबूर कर दिया है।

मनरेगा मजदूर लंबे समय से मजदूरी और कार्य दिवसों की संख्या में वृद्धि की मांग कर रहे हैं। पिछले साल नरेगा संघर्ष मोर्चा ने अपनी मांगों को लेकर पीएम को पत्र लिखा था।

दिसंबर में, स्वराज अभियान ने मनरेगा के कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त धन सुनिश्चित करने, अगले 30 दिनों के भीतर सभी लंबित मजदूरी का भुगतान करने, प्रति परिवार 50 दिनों के काम का अतिरिक्त अधिकार प्रदान करने आदि के मामले में हस्तक्षेप करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

मनरेगा काम के अधिकार की एक ऐसी स्कीम है जो प्रत्येक ग्रामीण परिवार को साल भर में 100 दिनों के सुनिश्चित रोजगार की गारंटी करती है।

यह अधिनियम 2005 में एक लंबे संघर्ष के बाद पारित किया गया था, और इसे “दुनिया का सबसे बड़ा सार्वजनिक निर्माण कार्यक्रम” और सबसे बड़ी गरीबी उन्मूलन योजना कहा जाता है।

समीक्षकों का आकलन है कि COVID-महामारी के दौरान जब शहरों में मजदूरों की नौकरियां चली गईं, मनरेगा ने लाखों लोगों को भुखमरी से बचाने में मदद की।

– शशिकला सिंह

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