‘पंचतंत्र’ का रोचक पुनर्पाठ

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— संजय गौतम —

भारतीय कथा परंपरा में ‘पंचतंत्र’ की कहानियों का स्‍थान अन्यतम है। इसके लेखन-काल एवं लेखक के बारे में चाहे सहमति न हो, लेकिन इन कहानियों के जादू से कोई इनकार नहीं कर सकता। कहा जाता है कि एक राजा ने अपने बिगड़ैल पुत्रों को सुधारने के लिए विष्‍णु शर्मा के पास भेजा। विष्‍णु शर्मा ने इन कहानियों को सुनाकर राजकुमारों को शिक्षित किया और उन्‍हें सही राह दिखाई। पांच तंत्रों में विभक्‍त ‘पंचतंत्र’ में अनेक कहानियां हैं और एक कहानी के भीतर से दूसरी कहानी निकलती है। पशु-पक्षियों के लोक से निकली कहानियां जितना औत्सुक्‍य जगाती हैं, उतनी ही शिक्षा भी देती हैं। इन कहानियों का अनुवाद दुनिया के कई देशों में हुआ। मणीन्द्र नाथ ठाकुर ने अपनी किताब ‘ज्ञान की राजनीति’ में बताया है कि ‘पंचतंत्र’ हजार साल पहले अरब देशों में राजनीतिक पाठ्यक्रम का हिस्सा हुआ करता था। ये कहानियां अपनी कथा और शैली की वजह से हर काल और समय के लेखकों को प्रभावित करती रही हैं। भारतीय भाषाओं के कई लेखकों ने इनका उपयोग किया है। इन्‍हें आधार बनाकर रमेश बक्षी ने व्‍यंग्‍य शैली में पूरी किताब लिखी है। वरिष्‍ठ हिंदी कवि केदारनाथ सिंह ने अपनी लंबी कविता ‘बाघ’ की भूमिका में कहा है कि ‘पंचतंत्र’ जितना सरल दिखता है, वस्‍तुत: वह उतना सरल है नहीं। यह भी कि ‘बाघ’ के जन्‍म में ‘पंचतंत्र’ का पशुलोक है।

वरिष्‍ठ लेखक और पत्रकार मधुकर उपाध्‍याय ने इसी ‘पंचतंत्र’ की कहानियों को आधार बनाते हुए पंचतंत्र : पुनर्पाठ के नाम से छब्‍बीस कहानियों को प्रस्‍तुत किया है। अपनी भूमिका में उन्‍होंने बताया है कि ‘पंचतंत्र’ के काल को लेकर एवं उसके लेखक के संबंध में अनेक मत प्रचलित हैं। उन्‍होंने वाराणसी से प्रकाशित ग्रंथ, रामपुर की रजा लाइब्रेरी में संग्रहीत संस्‍करण, संपूर्णानंद संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय एवं अपने संग्रह में उपलब्‍ध संस्‍करणों के आधार पर पुनर्पाठ किया है। वह ‘पंचतंत्र’ का रचनाकाल प्राय: तेईस सौ वर्ष पहले का मानते हैं। उनके अनुसार ग्रंथ के लेखक का स्‍थान दक्षिण भारत का मालूम पड़ता है। विष्‍णु शर्मा अपनी आयु पूरमपूर अस्‍सी वर्ष बताते हैं, न एक दिन कम न एक दिन अधिक। वह एक स्‍थानीय बस्‍ती की पाठशाला के आचार्य थे। विष्‍णु शर्मा ने स्‍वयं इसका लेखक होने न होने के बारे में एक श्‍लोक में कहा है, ‘अगर मैं ‘पंचतंत्र’ का लेखक नहीं हूं, किसी और की रचनाएं सुनाता हूं, तो यही सही। मेरे आगे ‘पंचतंत्र’ के लेखक की बिसात क्‍या है? उसे पूछता कौन है?’ (पृ.12) भूमिका में मधुकर उपाध्‍याय ने ‘पंचतंत्र’ के पांचों तंत्रों का परिचय देते हुए उसकी कथा संरचना और कथावर्ग के बारे में विस्‍तार से बताया है।

मधुकर उपाध्याय

अपना पुनर्पाठ उन्‍होंने धन, प्रबंधन, नीति, रणनीति विषय को ध्‍यान में रखकर प्रस्‍तुत किया है। इन विषयों को आधार बनाते हुए उन्‍होंने कहानियों के क्रम को आगे-पीछे करते हुए एक अपना सिलसिला बनाया है। पात्रों के नाम में भी कही-कहीं परिवर्तन किया है। छब्‍बीस कहानियों में हर कहानी एक श्‍लोक एवं उसके अर्थ के साथ शुरू होती है। उन्‍हीं के अनुसार हर कहानी में डेढ़ कहानी है। आधी कहानी उनकी है और पूरी कहानी ‘पंचतंत्र’ से। वह एक श्‍लोक से शुरू करके आधी कहानी के अंतर्गत कोई घटना बताते हैं, वह घटना सामाजिक है, राजनीतिक है या किसी कंपनी के प्रबंधन से संबंधित। इसी घटना की चर्चा करते हुए कोई पात्र एक कहानी सुना देता है। कहानी ‘पंचतंत्र’ की होती है। कभी कोई पात्र कहानी पढ़ने भी बैठ जाता है।

उदाहरण के तौर पर संग्रह की तीसरी कहानी ‘सूखे पेड़ की गवाही’ को लें। कहानी में पहले श्‍लोक है– ‘न वित्तं दश्यित प्राज्ञ: कस्‍यचित् स्वल्प मप्यहो। मुनेरपि यतस्‍तस्‍य दर्शनात चलते मन:’।। (समझदार व्‍यक्ति को अपना थोड़ा सा धन भी किसी को नहीं दिखाना चाहिए। मुनियों तक का मन धन देखकर चंचल हो जाता है।) कहानी कंपनी में काम करने वाले गहरे मित्र विरुप और सरूप से शुरू होती है। आगे चलकर धर्मबुद्धि और पापबुद्धि की कहानी सामने आती है। इस कहानी में धन को देखकर पापबुद्धि के मन में लालच आता है और वह धर्मबुद्धि को धोखा देता है। अंतत: वह पकड़ लिया जाता है। श्‍लोक में कही गई बात कहानी से सिद्ध होती है।

इस तरह आज के संदर्भों से जोड़ते हुए पुरानी कहानी को नए रूप में प्रस्‍तुत किया गया है। पुरानी कहानी की भाषा में जहां संस्‍कृतनिष्‍ठता का ध्‍यान रखा गया है, वहीं वर्तमान संदर्भित कहानी में अंग्रेजी के साथ ही आज प्रचलित भाषा का प्रयोग भी हुआ है। निदर्शनात्‍मक कथा शैली में रोचकता बनी हुई है। ‘पंचतंत्र’ का जादू पाठकों में बना हुआ है। आगे भी बना रहेगा। हर पीढ़ी तक ‘पंचतंत्र’ के किस्‍सों को पहुंचाने के लिए नए-नए यत्‍न होते रहेंगे। ‘पंचतंत्र’ नए-नए स्‍वरूप में आता रहेगा। वह स्‍वरूप भी स्‍वागत योग्‍य है।

किताब – पंचतंत्र : पुनर्पाठ
लेखक – मधुकर उपाध्‍याय
मूल्‍य – 275 रु.
प्रकाशन – सेतु प्रकाशन, नोएडा सेक्टर-65, पिन -201301
[email protected]

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