— विमल कुमार —
नृत्य के बारे में एक आम धारणा है कि वह देह की भाषा है लेकिन नृत्य देह को छोड़कर उससे परे होकर किया जाता है। वह विचार की अभिव्यक्ति है उसमें एक दर्शन भी छुपा है तथा उसमें राजनीतिक प्रतिरोध का एक रूप अंतर्निहित है।
पिछले दिनों जयपुर घराने की सुप्रसिद्ध नृत्यांगना प्रेरणा श्रीमाली की पुस्तक तत्कार के लोकार्पण समारोह में ये बातें खुलकर सामने आयीं और इस किताब ने नृत्यप्रेमियों की समझ को विकसित करने में मदद की है।
रज़ा पुस्तकमाला के तहत कुछ वर्षों में संगीत और नृत्य तथा चित्रकला पर कई महत्वपूर्ण पुस्तकें आयी हैं जिनसे हिंदी साहित्य और भाषा समृद्ध हुई है क्योंकि हिंदी के प्रकाशक आमतौर पर हिंदी में ऐसी पुस्तकें नहीं छापते या बहुत कम छापते हैं। नृत्य एक दृश्य कला है इस नाते उसके चाक्षुष अनुभव पर ही बात होती है लेकिन नृत्य के रस से आप आनंदित होते हैं। नृत्य जितना बाहर दीखता है वह कलाकार के भीतर भी होता है। वह दर्शक और कलाकार दोनों को समृद्ध और रूपांतरित भी करता है।
प्रेरणा जी की यह पुस्तक इन्हीं सवालों को छूती है। इसके लोकार्पण समारोह में किताब के कुछ हिस्से पढ़े गए जिससे पता चलता है कि यह पुस्तक नृत्य विशेषकर कथक पर विमर्श की पुस्तक है। कुछ साल पहले मनीषा कुलश्रेष्ठ की पुस्तक बिरजू लय में कुछ ऐसी बानगी देखने को मिली थी।
इंडिया इंटरनेशनल समारोह में पिछले दिनों आयोजित लोकार्पण समारोह में वक्ताओं का कहना था कि कथक सिर्फ देह की भाषा और अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं है बल्कि वह विचार का भी माध्यम है।
हिंदी के प्रख्यात कवि और संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी, नृत्य समीक्षक मंजरी सिन्हा, सुप्रसिद्ध ओडिसी नृत्यांगना माधवी मुदगल, प्रसिद्ध लेखिका अनामिका, चर्चित कथाकार मनीषा कुलश्रेष्ठ आदि ने नृत्य के बारे में खासकर कथक के बारे में काफी गम्भीर बातें कीं जिससे एक आम रसिक की दृष्टि काफी साफ हुई।
सेतु प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक के लोकार्पण समारोह का आयोजन रजा फाउंडेशन ने किया था। पुस्तक का लोकार्पण संगीत नाटक अकादेमी से सम्मानित वयोवृद्ध कथक नृत्यांगना मंजुश्री चटर्जी ने किया। समारोह में विदुषी गायिका पद्मश्री रीता गांगुली, शाश्वती सेन, लीला वेंकटरमन, गीतांजलि लाल, जयंत कस्तुवार, साधना श्रीवास्तव आदि मौजूद थे।
श्री वाजपेयी ने समारोह के अंत में कार्यक्रम का एक तरह से समाहार करते हुए कहा कि वे प्रेरणा श्रीमाली को गत 50 सालों से जानते हैं और कुछ लोगों की तरह उन्होंने उनकी प्रतिभा को बहुत पहले भांप लिया था। वे पिछले 30 साल से प्रेरणा को यह पुस्तक लिखने के लिए उकसा रहे थे और आखिरकार उन्होंने यह महत्त्वपूर्ण पुस्तक लिखी। हिंदी में वैसे भी नृत्य पर कथक पर कम किताबें हैं और जो हैं उनमें घरानों और गुरुओं का बखान है लेकिन नृत्य के बारे में चिंतनपरक और सृजनात्मक किताब नहीं है। प्रेरणा ने इस कमी को पूरा किया और सबसे बड़ी बात कि उसने योजना बनाकर यह किताब नहीं लिखी।
उन्होंने कहा कि प्रेरणा परम्परा में गृहस्थ होकर भी नृत्य में प्रयोग करती रही है। यूँ तो कविता का नृत्य से कोई संवाद नहीं है पर वर्षों पहले उन्होंने रजा के चित्रों और मेरी कविताओं पर नृत्य किया था जिसमें उनके चेहरे को नहीं बल्कि उनके पदाघात को ही दिखाया गया था और उसमें उनके घुंघरू बोलते थे। उन्होंने मीरा के पदों पर भी ऐसा प्रयोग किया था जिसमें शरीर को छोड़कर सिर्फ पैरों से ही भाव व्यक्त किया था।
श्री वाजपेयी ने कहा कि नृत्य में एक तरह का अमूर्तन और एकांत भी होता है पर उसके साथ एक विचार भी होता है।
श्री वाजपेयी का मानना था कि कथक संसार का उत्सव नहीं बल्कि वह संसार पर विचार भी करता है। नृत्य करते हुए विचार करना और विचार करते हुए नृत्य करना दिलचस्प है और प्रेरणा ने यह सम्भव किया है।
अनामिका का कहना था कि नृत्य भी राजनीति में प्रतिरोध का काम करता है और चिकित्सा से लेकर समाजशास्त्र में भी उसकी भूमिका है। वह भीतर की तकलीफों और दुख को भी कम करता है। उनका यह भी कहना था कि नृत्य शरीर से शुरू होकर शरीर से परे होता है और ग्रहों की वलयाकार निर्मिति की तरह होता है जिसमें नर्तक नाचते हुए एक वलय बनाता है और उसका अतिक्रमण करता है।उन्होंने कहा कि नृत्य विचार के पत्तों के झरने के बाद खिला हुआ एक फूल है। यह किताब ओस के गिरते बूंदों की लय में लिखी गयी है।
श्रीमती मंजरी सिन्हा का कहना था कि यह किताब प्रेरणा की डायरी और आत्मकथा के रूप में लिखी गयी कथक की अन्तर्यात्रा है। इसमें देखा-परखा और जिया गया अनुभव है।
सुश्री मनीषा कुलश्रेष्ठ के विचार में प्रेरणा जी अमूर्तन की उपासक हैं और परम्परा को बेड़ियों की तरह नहीं पहनतीं। उनका कहना था कि वर्षों पहले मैंने उनकी डायरी पढ़ी थी।उन्होंने उस डायरी को पुस्तकाकार दिया है। वह नृत्य के बारे में चिंतन भी करती रही है। यह किताब अलग तरह की है अकादमिक पुस्तकों की तरह नहीं है।
समारोह में प्रसिद्ध नर्तक राजेन्द्र गंगानी ने बताया कि प्रेरणा ने किस तरह गुरु जी के शब्दों को डायरी में लिपिबद्ध किया। उन्होंने बताया कि तत्कार से ही नृत्य को शुरू करते हैं। प्रेरणा ने कथक के सभी पदों को सरल भाषा में समझाया है।
प्रेरणा श्रीमाली ने बताया कि उन्होंने सोच-समझकर यह किताब नहीं लिखी बल्कि वह तो किताब के छपने से नर्वस थीं। वो डायरी के रूप में लिखती जा रही थीं। उन्हें नहीं पता था कि एक दिन उनकी डायरी किताब का रूप ले लेगी और आप सबको पसंद आएगी।
कुल मिलाकर नृत्य विमर्श की वह शाम बिल्कुल अलग थी।साहित्य के समारोहों से अलग। अगर साहित्यकारों और नृत्यांगनाओं तथा नर्तकों के साथ एक संवाद कायम हो तो दोनों कलाओं के लिए रुचिकर होगा तथा दोनों कलाओं का विकास होगा एवं आपसी लेनदेन, आवाजाही होगी। इससे एक सांस्कृतिक समृद्धि आएगी।