आदिवासियों के जंगल, जमीन को छीनने के लिए बनाए गए फर्जी दस्तावेजों को छुपाने अदानी कंपनी ने पुनः झूठ परोसकर भ्रम फैलाया।
परसा कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति के लिए साल्ही, हरिहरपुर, फतेहपुर और घाटबर्रा गांव के फर्जी दस्तावेज बनाकर कंपनी अदानी के द्वारा स्वीकृति हासिल करने के खुलासा होने के बाद से ही कंपनी लगातार भ्रम और झूठ फैलाने का कार्य कर रही है। रिपोर्ट को जारी होने से रोकने के भरसक प्रयासों के बाद अब अदानी अब उस रिपोर्ट के तथ्यों पर ही झूठ फैलाने का कार्य कर रही है।
अदानी द्वारा कल जिस दिलबंधु नामक व्यक्ति को सामने लाकर मीडिया में प्रसारित करवाया गया उस दिलबंधु के दस्तखत ही अलग पाए गए यहां तक कि उससे ठीक ढंग से दस्तखत करते भी नहीं बनता। ग्रामीणों ने आयोग के अध्यक्ष के समक्ष आज पुनः दस्तावेजों में दर्जनों शपथ सौंपे जिनके फर्जी हस्ताक्षर ग्रामसभा में बनाए गए थे।
आयोग के समक्ष घाटबर्रा पंचायत के सचिव गोपालराम यादव का भी बयान है जिसमें उसने बताया कि दिनांक 28-06-2016 को दिलबंधु की मृत्यु हुई। इसका मृत्यु प्रमाण पत्र भी मौजूद है। वर्ष 2017 की ग्रामसभा में उसके हस्ताक्षर कैसे हुए सचिव को इसकी जानकारी नहीं है क्योंकि रजिस्टर में हस्ताक्षर कोटवार के माध्यम से करवाए गए थे। इस ग्रामसभा की उपस्थिति पंजी और केंद्रीय वन मंत्रालय को भेजे गए दस्तावेजों की उपस्थिति पंजी में संख्या भिन्न है जिसमे 132 को 432 बनाया गया है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि कूटरचित दस्तावेज बनाए गए हैं।
ग्रामीणों ने आयोग के अध्यक्ष को बताया कि दिनांक 8 दिसंबर 2014 को घाटबर्रा गांव की ग्रामसभा ने कोल ब्लॉक के आवंटन के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था जिसमें दिलबंधु के हस्ताक्षर हैं । उसके बाद दिनांक 1 मार्च 2016 को घाटबर्रा के सामुदायिक अधिकार पत्रक के निरस्तीकरण के खिलाफ कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन में भी दिलबंधु के हस्ताक्षर हैं। उपरोक्त ग्रामसभा प्रस्ताव और ज्ञापन पर दिलबंधु के हस्ताक्षर एक समान हैं । परन्तु वर्ष 2019 की ग्रामसभा में जो दस्तखत हैं वह दिलबंधु के दस्तखत से भिन्न है । यहां तक कि कंपनी द्वारा प्रस्तुत किए गए दिलबंधु के हस्ताक्षर भी उससे पूर्ण भिन्न है जो दर्शाता है कि वर्ष 2017 और 2019 के फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव बनाकर हस्ताक्षर भी फर्जी करवाए गए।
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने आरोप लगाते हुए कहा कि इस मामले में शासन प्रशासन जानबूझकर मौन साधे हुए है। भाजपा के शासनकाल में ही दस्तावेजों की कूट रचना की गई थी। अदानी कंपनी और भाजपा का भ्रष्ट गठजोड़ छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को उनके जंगल जमीन से बेदखल कर रहा है वह भी उनकी संवैधानिक ग्रामसभाओं के विरोध के बावजूद।