समाजवादी आंदोलन के 90 वर्षपूर्ति के उपलक्ष्य में, 19,20,21 सितंबर 2025 को पुणे, महाराष्ट्र में आयोजित
पुणे घोषणापत्र
1. पृष्ठभूमि
हमारे देश का स्वतंत्रता आंदोलन विश्व भर में अभूतपूर्व रहा है। यह केवल ब्रिटिश साम्राज्यवाद और गुलामी से मुक्ति का आंदोलन नहीं था, बल्कि देश के भीतर मौजूद प्रचंड सामाजिक-आर्थिक असमानता और उस पर आधारित सामंती व्यवस्था के खिलाफ यह व्यवस्था परिवर्तन का आंदोलन भी था। न्याय, स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व, धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक समाजवाद के आधार पर देश को खड़ा करने वाला आंदोलन! एक नए स्वतंत्र देश के निर्माण का आंदोलन!
देश के स्वतंत्रता आंदोलन में सामाजिक न्याय और समता के मूल्यों को स्थापित करने वाला समाजवादी आंदोलन अपने 90 वर्ष पूर्ण कर रहा है। शताब्दी की ओर बढ़ रहा यह दीर्घकालीन, चुनौतीभरा और दमदार सफर है।
जयप्रकाश नारायण, डॉ. राम मनोहर लोहिया, आचार्य नरेंद्र देव, अच्युतराव पटवर्धन, अरुणा आसफ अली, उषा मेहता, यूसुफ मेहेरअली, साने गुरुजी… ऐसे समाजवादी निष्ठा रखने वाले नेतृत्व ने इस समाजवादी आंदोलन की नींव रखी। 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में समाजवादी आंदोलन का बड़ा योगदान रहा है। गांधीजी सहित सभी प्रमुख नेता जेल में होने के बावजूद इन युवा समाजवादी नेताओं ने भूमिगत रहकर जनक्रांति का नेतृत्व किया, जिसके परिणामस्वरूप देश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। देश के विभाजन का समाजवादियों ने विरोध किया और उस समय भड़की सांप्रदायिक हिंसा में गांधीजी का साथ देते हुए सामंजस्य और शांति स्थापित करने के कार्य में भी योगदान दिया।
एस. एम. जोशी, नानासाहेब गोरे, स्वामी सहजानंद सरस्वती, मामा बालेश्वर दयाल, कर्पूरी ठाकुर, मधु लिमये, मधु दंडवते, मृणाल गोरे, किशन पटनायक, रवि राय, सुरेंद्र मोहन, भाई वैद्य, ग प्र प्रधान… इन समाजवादी नेताओं ने संघर्ष – निर्माण की राजनीति करते हुए उतने ही तेजस्वी ढंग से इस परंपरा को आगे बढ़ाया। ‘अंतिम व्यक्ति को विकास का पहला अवसर’ – गांधीजी के इस संदेश को वास्तव में लागू करने के लिए संघर्ष और रचनात्मकता पर आधारित राजनीति को अपनाया। सामाजिक न्याय के लिए “पिछड़ा पाए सौ में साठ!” का आग्रह किया। स्वतंत्र भारत
में मजदूर-किसान आंदोलनों को धरातल पर कार्यरत कई साथियों ने आगे बढ़ाया। दलित, आदिवासी, महिला, ग्रामीण जैसे सभी शोषित और उपेक्षित वर्गों के लिए समाजवादी आंदोलन निरंतर कार्यरत रहा।
जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति आंदोलन और आपातकाल विरोधी संघर्ष में समाजवादी आंदोलन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। कई समाजवादी कार्यकर्ताओं ने इसके लिए जेल की सजा भुगती। यह समताधारित समाज परिवर्तन और लोकतंत्र के पोषण की दमदार पहल थी।
इस दरमियान समाजवादी आंदोलन में कई उतार-चढ़ाव आए। कुछ मतभेद भी हुए। संयुक्त समाजवादी पक्ष और प्रजा समाजवादी पक्ष के रूप में दो पार्टियों में हिस्से भी हुए, लेकिन समाजवादियों की समाजवादी निष्ठा अटल रही। आपातकाल के बाद भले ही समाजवादी पक्ष का अस्तित्व समाप्त हो गया; लेकिन समाजवादी विचार, समाजवादी कार्यकर्ता और समाजवादी कार्यक्रमों के माध्यम से लोकतांत्रिक समाजवाद का प्रवाह अबाधित और जन आंदोलन के रूप में जोरदार ढंग से आगे बढ़ता रहा।
बीसवीं सदी के अंत में जब विनाशकारी और विषमता आधारित विकास के मुद्दे सामने आए और सांप्रदायिक राजनीति ने कहर बरपाया, तब इन दोनों मोर्चों पर समाजवादी आंदोलन ने शांतिपूर्ण जन आंदोलन के द्वारा इन देशविनाशक प्रवृत्तियों का जोरदार विरोध किया। देश भर में विनाशकारी विकास के खिलाफ हुए आंदोलनों में, तथा बाबरी मस्जिद के पतन के साथ फैले सांप्रदायिक उन्माद और हिंदुत्व की लहर में देश का धर्मनिरपेक्ष एकात्मता न ढहने पाए इसके लिए अपने समुदाय द्वारा पूरी जन शक्ति के साथ, समाजवादी आंदोलन ने अपना संघर्ष जारी रखा। मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का आग्रह रखते हुए सामाजिक न्याय के लिए समाजवादी आंदोलन कटिबद्ध रहा। गांधीजी द्वारा परिकल्पित विकेंद्रित और स्वावलंबी ग्राम स्वराज की अवधारणा को वास्तविकता में लाने के लिए ग्रामीण स्तर पर, आदिवासी क्षेत्रों में तथा शहरी गरीब बस्तियों में रचनात्मक कार्यों में भी समाजवादी आंदोलन का योगदान रहा है।
इसके अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, महिला और युवा सशक्तिकरण, किसान और किसानी, असंगठित और असुरक्षित श्रमिक जैसे सभी मुद्दों पर संघर्ष और रचनात्मक कार्य करते हुए जनहित में ही नीतियां पारित करने के लिए सरकार को समाजवादी आंदोलन द्वारा समय-समय पर बाध्य किया गया है।
2. आज की चुनौतियां
आज हम जब समाजवादी आंदोलन के 90 वर्ष पूरे कर रहे है तब देश पर बेरोजगारी, महंगाई, सांप्रदायिक कट्टरता, जातिवाद हावी है। लोकतंत्र के नाम से चल रहा पूरा तंत्र, भ्रष्ट तंत्र, लूट तंत्र में तब्दील हो गया है। भारतीय संविधान में भले ही संघ – राज्य और विकेंद्रीकृत पंचायती राज के प्रावधान किए गए हो, लेकिन पूरा तंत्र केंद्रीकृत और मुट्ठी भर पूंजी पतियों के प्रभाव में चलता दिखाई देता है। केंद्रीय एजेंसियों और चुनाव आयोग तक का इस्तेमाल विपक्ष को कुचलने के लिए किया जा रहा है। सरकारें चंद करोड़पति, कॉरपोरेटस के अधिकतम मुनाफे को सुनिश्चित करने के लिए कार्य कर रही है, जिसके परिणामस्वरूप गैर बराबरी और बेरोजगारी बढ़ रही है। एक तरफ़ पूंजी का केंद्रीकरण हो रहा है। 1% आबादी के पास 60% पूंजी केंद्रित हो गई हैं। दूसरी तरफ कल्याणकारी राज्य लगातार सिकुड़ता जा रहा है । हर नागरिक को सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए राज्यों द्वारा निशुल्क स्वास्थ्य और शिक्षा, न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करने की जरूरत है। बुनियादी परिवर्तन द्वारा न्याय और समता पर आधारित सम्मानजनक रोजगार के बजाय, चुनावी परिप्रेक्ष्य में राजनीतिक दलों और शासनकर्ताओं के द्वारा ‘ राहत ‘ की तात्कालिक योजनाएं बनाकर लोगों को याचक बनाया जाना संविधान विरोधी है।
आज की सबसे गंभीर चुनौतियां निम्नमुजब है –
– उग्र धर्मांधता तथा जातिवादी राजनीति के चलते बहुविधता पर आधारित सांस्कृतिक ताना – बाना ध्वस्त किया जाना। स्वतंत्रता आंदोलन में उभरी हुई जाति – धर्मनिरपेक्ष, सांस्कृतिक विविधता में एकता वाली भारत की संकल्पना (idea of India) पर आघात।
– दो-चार बड़े कॉरपोरेट्स के हाथ में पूरी आर्थिक, औद्योगिक व्यवस्था समेटी गई है जिसके चलते हमारे प्राकृतिक संसाधनों का प्रच्छन्न दोहन, उन पर आधारित समाज समूहों का विस्थापन, पर्यावरण का विनाश और बढ़ती बेरोजगारी और विषमता।
– लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं और लोकतांत्रिक संस्थाओं को निष्प्रभ करते हुए, सच बरतने वाले कार्यकर्ता – पत्रकारों को जेल में बंद करते हुए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संकोच करते हुए, राज्य /सत्ता के कदम तानाशाही की तरफ बढ़ते जा रहे हैं।
– हमारे पंचशील पर आधारित, सभी देशों से सौहार्द के संबंध रखने वाले, युद्धखोरी में मध्यस्थ की भूमिका अदा करने वाले परराष्ट्रीय संबंध आज दुर्बल हो गए हैं। हमारे देश की संप्रभुता और निष्पक्षता के कारण विश्वभर में भारत का जो सम्मानजनक स्थान था वह अब नहीं रहा। हमारे पड़ोसियों के साथ हमारे संबंध दोस्ती के नहीं रहे। फिलिस्तीन मैं हो रहे मानव संहार पर हम चुप रहे। यह सब हमारे बुद्ध – गांधी के देश के लिए लज्जास्पद है। संविधान के अनुच्छेद 51 का उल्लंघन हो रहा है।
– जलवायु परिवर्तन का गंभीर संकट दुनिया पर मंडराते हुए भी, अपने देश में और दुनिया में पृथ्वी और प्रकृति के साथ आजीविका और जीवन को बचाने के प्रयास की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाने के बजाय, अपनी विकास नीति का पुनर्विचार करने के बजाय, उसी पूंजीवादी विनाशकारी विकास की दिशा मे आगे बढ़ना बड़ी आपदाएं, राज्य – राज्य में विध्वंस बढ़ा रहा है।
3. भविष्य की दिशा
स्वतंत्रता के 79 वे वर्ष और समाजवादी आंदोलन के 90 वर्षों के परिप्रेक्ष्य में हमारा संकल्प इस प्रकार है :
– स्वतंत्रता आंदोलन के आदर्शों और सिद्धांतों का पालन करते हुए, एक समतामूलक, समाजवादी समाज के लिए भारत में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक परिवर्तन लाना।
– जाति – धर्म – लिंग – भाषा – प्रदेश जैसे किसी भी आधार पर भेदभाव, नफरत और हिंसा हमें नामंजूर है। देश में एकता, बहुविधता, सर्वधर्म समभाव, आपसी सद्भाव और सोहार्द कायम रखने के लिए हम कटिबद्ध है।
– व्यवस्था में निहित किसी भी प्रकार की असमानताओं के विरुद्ध जागरूकता फैलाना, आदिवासियों, दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों की गरिमा-स्वतंत्रता-न्याय की रक्षा करना यह हमारा कर्तव्य है। मानवीय अधिकार और रिश्तो के आधार पर मानव धर्म और प्रकृति धर्म की मान्यता को हमें प्रसारित करना है।
श्रमिक –
– आजादी के बाद पारित 44 में से 29 राष्ट्रीय श्रम कानून को बरकरार रखना और चार कमजोर श्रम संहिताओं को वापस लेना, जो श्रम अधिकारों को नकारने और नियोक्ता मालिक और मजदूर के बीच असमानता बढ़ाने के लिए, आईएलसी (वार्षिक बैठक) आयोजित किए बिना लाए गए। क्षेत्रीय कानूनों – जैसे निर्माण मजदूरों के लिए बना BOCW अधिनियम, बीड़ी, नमक आदि के लिए कल्याण और उपकर अधिनियमों सहित श्रम कानूनों की बहाली और साथ ही हर राज्य में गठित कल्याण मंडलों के साथ सहित राज्य कानूनों को बचाना।
– खेत मजदूरों, घरेलू कामगारों, गृह आधारित कामगारों, सफाई मजदूर, मत्स्य पालन-नमक-मिट्टी के बर्तन-धोबी-गली विक्रेता, वन आदि जैसे सार्वजनिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों के साथ-साथ श्रम अधिकारों के संदर्भ में अनौपचारिक श्रमिकों के लिए विशेष कानून बनाए जाने चाहिए। कंत्राटी मजदूरी खत्म होकर कंत्राटी मजदूर कानून का पूरा पालन होना चाहिए।
– प्रवासी मजदूरों को मूल राज्य और गंतव्य में अनिवार्य रूप से पंजीकृत किया जाना चाहिए और उन्हें मुफ्त राशन, मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल, बाल देखभाल, बच्चों की शिक्षा और डाक मतपत्र प्रदान किया जाना चाहिए। पलायन रोकने के लिए मनरेगा के द्वारा न्यूनतम मजदूरी देकर और बढ़ाकर स्थानीय रोजगार उपलब्ध करना चाहिए।
– बंधुआ मजदूरी और बाल श्रम का वार्षिक सर्वेक्षण, रिहाई और प्रभावी तो उनके पुनर्वास को श्रमिक संगठनों की सहभागिता के साथ लागू किया जाना चाहिए।
किसान
– किसान और किसानी यह हमारे देश की रीढ़ की हड्डी है। लेकिन आज जलवायु परिवर्तन निर्मित पर्यावरणीय संकट और सरकार निर्मित किसान विरोधी नीतियों के संकट का सामना किसान कर रहा है। हमारा संकल्प है कि –
– i) किसान को अपने हर प्राकृतिक उत्पाद का सही दाम मिले।
– ii) प्राकृतिक आपदा की वजह से होने वाले नुकसानकी भरपाई मिले।
– iii) किसान को फसल बीमा का लाभ मिले।
– iv) विकास परियोजनाओं के नाम पर किसान से खेती न छीनी जाए।
– v) आयात – निर्यात नीतियां किसान के हित में हो।
– vi) ऑर्गेनिक फार्मिंग को प्रोत्साहन मिले।
महिला
देश की महिलाएं आज असुरक्षित, लैंगिक शोषण की शिकार, शिक्षा और रोजगार से वंचित, परिवार और समाज में उपेक्षित है। महिला सुरक्षा और लैंगिक न्याय को नीतियों और कानूनी एवं न्यायसंगत परिवर्तन प्रक्रियाओं के माध्यम से सुनिश्चित किया जाना चाहिए। महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान, उन्हें शिक्षा, रोजगार और सभी क्षेत्रों में बराबरी के अवसर प्राप्त हो। समाज में महिलाओं के प्रति समता और सम्मान का व्यवहार स्थापित हो।
दलित – आदिवासी – भूमिहीन
– कृषि पर निर्भर आदिवासियों, दलितों और भूमिहीनों के लिए भूमि अधिकार सुनिश्चित किए जाएँ और समतावादी भूमि वितरण सुनिश्चित किया जाए। वन अधिकार अधिनियम 2006 और स्ट्रीट वेंडर्स (फेरीवाला) अधिनियम 2009 को क्रमशः आदिवासी संगठनों और स्ट्रीट वेंडर्स संगठनों की भागीदारी से लागू किया जाना चाहिए।
– आदिवासी क्षेत्रों में पांचवी अनुसूची पूर्णतः लागू हो। राज्यपाल महोदय अपना कर्तव्य निभाएं इसके निर्देश राष्ट्रपति महोदया से दिए जाएं। देशभर – लद्दाख समेत – हर राज्य में छठी अनुसूची लागू होकर जिला स्तरीय विकास नियोजन मान्य हो।
शहरी गरीब – श्रमिक
– शहरी श्रमिकों के बलबूते पर ही शहर चलते हैं। लेकिन उन्हीं को तिरस्कृत माना जाता है। बहिष्कृत रखा जाता है। कार्यस्थल के निकट पट्टा प्राप्त बेघर और झुग्गीवासियों के लिए पेयजल, स्वच्छता के साथ आवास का अधिकार मिले। स्वास्थ्य – शिक्षा की सुविधा बस्ती-बस्ती पर मिले। उन्हें आजीविका और बच्चों की शिक्षा से वंचित करने के लिए दूर स्थानों पर विस्थापन नव-अस्पृश्यता के समान है। इसे रोका जाना चाहिए।
आर्थिक समता
– वैश्वीकरण – उदारीकरण – निजीकरण की अर्थनीति को खारिज करके, भारत को कर्जदार न बनाते एक स्वावलंबी राष्ट्र बनाया जाए।
– गैर बराबरी बढ़ाने वाली अर्थव्यवस्था बदलना जरूरी है। स्वावलंबन पर आधारित, रोजगारप्रवण, विकेंद्रित आर्थिक रचना और नीति हो। नीति आयोग जनतांत्रिक प्रक्रिया के द्वारा संवैधानिक मार्गदर्शक सिद्धांतों का अमल लाए।
– देश में कोई भूखा / भूखी ना रहे इसलिए हर जरूरतमंद परिवार को 2013 के खाद्य सुरक्षा कानून के आधार पर पर्याप्त मुक्त / सस्ता अनाज, दाल, तेल उपलब्ध किया जाए।
– हर नागरिक की अनिवार्य जरूरतें पूरी करने को आर्थिक नीति में प्राधान्य हो।
विकेंद्रीकरण
– स्थानीय स्वराज संस्थाओं का सशक्तिकरण हो। निर्णय प्रक्रिया विकेंद्रित हो। निर्णय प्रक्रिया में महिला, पिछड़े, दुर्बल समूहों समेत पूरे गांवसमाज की और हर नगर/ शहर में बस्ती सभा को विकास नियोजन की प्रथम इकाई की मान्यता और उसकी सहभागिता हो।
विकास नीति
– पर्यावरण की रक्षा, आजीविका की सुनिश्चितता, न्यायपूर्णता, निरंतरता और सही तकनीक – यह विकास की अवधारणा के आधार हो। प्रकृति की रक्षा और रोजगार के अवसर इन्हें प्राथमिकता हो।
– ऊर्जाधारित, मशीनीकरणवादी बड़े उद्योगों को शासन स्वयं चलाएं और गृहोद्योग, ग्रामोद्योग, छोटे उद्योगों को सहकारिता के आधार पर चलाने को प्राथमिकता दी जाए।
– नशा व्यक्ति, परिवार और समाज को बर्बाद करती है। महिलाएं हिंसा भुगतती है। नशा मुक्त समाज बनाने के लिए हम कटिबद्ध है। हर राज्य नशाबंदी कानून पारित करें और संविधान के अनुच्छेद 17 का पालन करें। हर राज्य शासन शराब के व्यापार द्वारा करोड़ों की कमाई करना बंद करें।
– अंजाधीश, करोड़पतियों पर 5% संपत्ति कर और 50% वारसाई कर लागू करें। सही टैक्स प्रणाली द्वारा 14 वर्ष तक गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा, किसानों को हर उपज का सही दाम, स्वास्थ्य की मुफ्त शासकीय सुविधा के लिए जरूरी बजट / फंड उपलब्ध करें।
हम चाहते हैं कि यह देश और यहां का प्रत्येक व्यक्ति संविधान के उद्देशिका के सिद्धांत अनुसार चले और यहां के सभी लोग खुशहाल रहे। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए हम शांतिपूर्ण संवैधानिक मार्गों का अवलंब करेंगे। हम जनशक्ति, जनतंत्र के द्वारा जन आंदोलन को सभी समाजवादी उद्देश्यों तक पहुंचाएंगे।
_(यह प्रस्तावित घोषणा पत्र है। कृपया आपके सुझाव संक्षेप में 20 तारीख की शाम तक सुनीति – 9423571784 या 95886 39146 को दीजिए।)_
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