11 सितंबर। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने न्यूजक्लिक और न्यूजलांड्री के दफ्तरों पर आय कर विभाग के सर्वे को लेकर चिंता जतायी है और इसे डराने की कार्रवाई करार दिया है।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा, महासचिव संजय कपूर और कोषाध्यक्ष अनंत नाथ की ओर से जारी बयान के मुताबिक 10 सितंबर 2021 को आय कर विभाग के अधिकारी उपर्युक्त दोनों मीडिया संस्थानों के दफ्तर पहुंचे और वहां दिन भर छानबीन करते रहे। हालांकि आय कर अफसरों ने इसे सिर्फ ‘सर्वे’ कहा, लेकिन न्यूजलांड्री के सह-संस्थापक अभिनंदन सीकरी ने इसे डराने की कार्रवाई तथा स्वतंत्र रूप से काम करने के अपने अधिकार पर हमला करार दिया है। आरोप है कि इस कथित सर्वे के दौरान आईटी टीम ने सीकरी के मोबाइल फोन और लैपटाप तथा कुछ अन्य उपकरणों के भी क्लोन तैयार किये, जो कि आय कर की धारा 133 ए के तहत निर्धारित सर्वे के दायरे में नहीं आता है। यह धारा सिर्फ जांच के विषय से संबंधित आंकड़े जुटाने की इजाजत देती है, किसी पत्रकार की निजी और पेशेवर सूचनाओं में सेंधमारी की नहीं। इसके अलावा, आय कर विभाग की कार्रवाई सूचना अधिनियम, 2000 का भी उल्लंघन है।
जिस तरह से पत्रकारों के विश्वसनीय सूत्रों और जिन खबरों पर वे काम कर रहे थे उनके ब्यौरे हासिल करने के लिए आय कर विभाग की टीम ने सारे-नियम कायदे ताक पर रख दिये, उसे एडिटर्स गिल्ड ने घोर चिंताजनक कहा है।
यह दूसरा मौका था जब आय कर की टीम ने न्यूजलांड्री के दफ्तर पर धावा बोला। इससे पहले जून में इस तरह की कार्रवाई की गयी थी। न्यूजक्लिकभी पहले निशाने पर आ चुका है, प्रवर्तन निदेशालय ने उसके दफ्तरों तथा उसके अधिकारियों और वरिष्ठ पत्रकारों के घरों पर इसी साल फरवरी में छापे डाले थे। गौरतलब है कि न्यूजक्लिक और न्यूजलांड्री, दोनों मीडिया संस्थान केंद्र सरकार की नीतियों और कार्यप्रणाली की आलोचना करते रहे हैं।
इसी साल जुलाई में हिंदी के अग्रणी व लोकप्रिय अखबार दैनिक भास्कर और लखनऊ से संचालित होनेवाले समाचार चैनल भारत समाचार पर आय कर अफसरों ने छापे डाले थे। दैनिक भास्कर और भारत समाचार, दोनों ने कोरोना महामारी से निपटने में सरकार की उदासीनता व लापरवाही को लेकर रिपोर्टें दी थीं।
एडिटर्स गिल्ड ने कहा है कि इस तरह की जांच में हमेशा काफी सावधानी और संवेदनशीलता दिखायी जाए ताकि वह पत्रकारों तथा मीडिया संस्थानों को डराने-दबाने की कार्रवाई न बने। दूसरे, कोई भी जांच निर्धारित नियमों के दायरे में होनी चाहिए, वह स्वतंत्र मीडिया संस्थानों को डराने के लिए उत्पीड़न का हथियार नहीं बनना चाहिए।