23दिसंबर। कोलकाता का हिंदी मेला विद्यार्थियों और नौजवानों के बीच साहित्य के लोकप्रियकरण का प्रयास है, साहित्य को कलाओं से जोड़ने का अभियान है। इसका आयोजन पिछले 27 सालों से हो रहा है। इसमें राष्ट्रीय संगोष्ठी के अलावा अन्य कार्यक्रमों में नयी पीढ़ी मंच पर होती है। वरिष्ठ लेखक, प्राध्यापक और साहित्य-प्रेमी दर्शकदीर्घा में होते हैं।
हिंदी मेला में अब तक हजारों नौजवान भाग ले चुके हैं और उन्होंने इसमें अपनी सांस्कृतिक आंख खोली है। इसके बीच से कई नये रचनाकार उभरे। अब सभागार के अलावा ऑनलाइन पर देश भर के विश्वविद्यालयों के कई नौजवान इससे जुड़ रहे हैं और संस्कृति प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं। वे कविताओं की आवृत्ति करते हैं, कविताओं को गाते हैं, कविताओं पर चित्र बनाते हैं। उनके लिए ढेरों उपहार, पुरस्कार और स्मृति चिह्न हैं!
हिंदी मेला बहुत सीमित संसाधनों और छोटे-छोटे सहयोग के बल पर होता रहा है। मानवीय सौहार्द, अध्ययनशीलता, सृजनात्मकता, मित्र भावना, निर्भयता, निर-अहंकार और साहित्यिक सक्रियतावाद इसके प्रेरक मूल्य हैं। इसका नारा है- पढ़ना लड़ना है!
हिंदी मेला के विगत आयोजनों में हिंदी के कई वरिष्ठ और नये लेखकों के अलावा बांग्ला के प्रसिद्ध साहित्यकार सुभाष मुखोपाध्याय, महाश्वेता देवी, तसलीमा नसरीन, नवारुण भट्टाचार्य, फिल्मकार गौतम घोष जैसे व्यक्तित्व आ चुके हैं। 27वें हिंदी मेला में कई महत्त्वपूर्ण लेखक और कलाकार भाग लेंगे। हम चाहेंगे, आप हिंदी मेला में आएं, इससे जुड़ें। यथासंभव अपने-अपने नगर में बच्चों, विद्यार्थियों और नौजवानों के बीच साहित्य के लोकप्रियकरण और पढ़ने की संस्कृति के लिए कुछ इसी तरह के आयोजन के बारे में सोचें!
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– डॉ शंभुनाथ, कोलकाता
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