प्रधानमंत्री मोदी और किसान के बीच एक संवाद – योगेन्द्र यादव

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(दिल्ली की सरहदों पर किसानों को मोर्चा लगाए 150 दिन हो गए हैं। आंदोलन तो और भी पहले से चल रहा था। इतने लंबे समय से चले रहे धरने, इसमें किसानों की काफी तादाद में भागीदारी, देश-भर में इस आंदोलन को किसानों का व्यापक समर्थन, पहली बार देश के सारे किसान संगठनों का एकजुट होना, दूसरे तबकों की सहानुभूति और समर्थन, और यहां तक कि देश से बाहर भी इस आंदोलन को एक बड़ी सकारात्मक घटना और उम्मीद की तरह देखा जाना, ऐसे अनेक पहलू हैं जो इस आंदोलन को एक अपूर्व और महान आंदोलन बनाते हैं। लेकिन आंदोलन को बदनाम करने के लिए सरकार और भाजपा की तरफ से हुई कोशिशों और मीडिया के बड़े हिस्से की तरफ से हुई अनदेखी या दुष्प्रचार के चलते आज भी इस किसान आंदोलन के मुद्दों को लेकर समाज में समझ अपेक्षा से बहुत कम है। इस कमी को दूर करने के मकसद से ही एक लंबा लेख, दो किस्तों में हम दे रहे हैं। पहली किस्त प्रधानमंत्री मोदी और किसान के बीच एक काल्पनिक संवाद के रूप में है। दूसरी किस्त एक दिन बाद प्रकाशित होगी, जिसमें तीनों कृषि कानूनों की हकीकत बताई जाएगी।)              

एक दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को एक किसान मिल गया। वह बोले : आप मन की बात सुनते हैं?

किसान मुंहफट था, बोला : आप बड़े आदमी हो। आपके मन की बात तो हर महीने सुनता हूं। आज एक किसान के मन की बात भी तो सुन लो। दोनों में बात शुरू हो गई। 

मोदी जी : आप को पता हैहमारी सरकार किसानों के लिए तीन ऐतिहासिक कानून लेकर आई है? यह किसानों के लिए हमारी सौगात है।

किसान : सुनो जी, सौगात या उपहार वो होती है, जो किसी ने मांगी हो, या उसकी जरूरत हो, या उसके किसी काम की हो। आप ही बताओ। देश में लॉकडाउन था। किसान कह रहा था मुझे फसल का पूरा दाम चाहिए, नुकसान का मुआवजा चाहिए, सस्ता डीजल चाहिए। वो तो आपने दिया नहीं। उसके बदले पकड़ा दिए तीन कानून। आपके ये तीन कानून क्या कभी भी किसानों या उनके नेताओं ने मांगे थे ? इन कानूनों को लाने से पहले आपने किसी भी किसान संगठन से राय-बात की थी?

मोदी जी : अरे भाईसभी किसान कहते थे कि मंडी में सुधार की जरूरत है। मैंने सुधार कर दिया। आप अब भी खुश नहीं हो?

किसान : मेरा सवाल न टालो आप। बीमारी तो थी। इलाज तो चाहिए था। आज भी दवा चाहिए। लेकिन आप तो जहर का इंजेक्शन दे रहे हो। मैं पूछ रहा था कि ये तीन कानून वाला इंजेक्शन क्या कभी किसी किसान संगठन ने माँगा था आपसे।

मोदी जी : हर सुधार के लिए मांग का इंतजार नहीं किया जाता। पिछले बीस साल में कई एक्सपर्ट कमेटी ने यह सिफारिश की थी। कांग्रेस के राज में भी यही योजना बनी थी। कांग्रेस के मैनिफेस्टो…

किसान : कांग्रेस ने क्या किया, क्या नहीं किया, मुझे इससे क्या मतलब जी? कांग्रेस से तंग आकर ही तो मैंने आपको वोट दिया था। आप ये बताओ कि अगर ये तीन कानून किसानों के लिए सौगात हैं तो देश का एक भी किसान संगठन इन तीन कानूनों के समर्थन में क्यों नहीं खड़ा?

मोदी जी : वो तो विरोधी हैं। विरोध करना उनकी आदत है।

किसान : विरोधियों की बात छोड़ दो! आपके पचास साल पुराने सहयोगी अकाली दल ने इन तीन कानूनों के खिलाफ आपका साथ क्यों छोड़ दिया? आपका अपना संगठन ‘भारतीय किसान संघ’ आज भी खुलकर इन कानूनों का समर्थन क्यों नहीं कर रहा?

मोदी जी : सब राजनीति है! मैं कह रहा हूँ न, आज किसान को समझ आए या न आए, इनसे किसान का फायदा होगा।

किसान : वाह जी वाह! मतलब किसान तो बच्चा है जिसे अपने भले-बुरे की समझ नहीं। और आपके जिन अफसरों ने एक दिन भी खेती नहीं की, वो समझदार हैं! अच्छा, ऐसा करो। आप मुझे ही समझा दो कि इन कानूनों से किसान का क्या भला होगा।

मोदी जी : इससे आपको आजादी मिल जाएगी। जहां चाहो अपनी फसल बेच सकते हो।

किसान : यह आजादी तो मुझे पहले भी थी। गाँव में बेचूं, मंडी में बेचूं, कहीं और ले जाकर बेचूं, ना बेचूं, फेंकूं। कहने को तो सारी आजादी थी, लेकिन मैं अपनी मंडी से दूर कहां जाऊं? कैसे जाऊं? दूसरा राज्य छोड़ो, अपनी फसल बेचने के लिए दूसरे जिले में जाना मेरे बस की बात नहीं है। पिछले साल सब्जी लगाई थी, रेट इतना गिर गया कि सारी फसल सड़क के किनारे फेंकनी पड़ी। ऐसी आजादी का मैं क्या करूं?

मोदी जी : इसीलिए तो हमने व्यवस्था की है कि अब सरकारी मंडी में फसल बेचना जरूरी नहीं है। अब प्राइवेट मंडी भी खुल जाएगी। आपका जहां मन है वहां अपनी फसल बेचो।

किसान : सच बताऊं, सरकारी मंडी से मैं खुश नहीं हूँ। कई मंडी-कर्मचारी पैसा लेते हैं। कई आढ़ती किसान का शोषण करते हैं। मंडी के चुनाव में पॉलिटिक्स होती है। अगर आप मंडी व्यवस्था सुधारो तो मेरे जैसे सब किसान आपके साथ हैं। लेकिन आप तो सुधारने की बजाय इसे बंद करने का इंतजाम कर रहे हो। आज तो मंडी में जाकर मैं शोर भी मचा लेता हूँ, अपनी बात सुना लेता हूँ। प्राइवेट मंडी में मेरी कौन सुनेगा? शॉपिंग मॉल की तरह उनका गार्ड ही मुझे निकाल देगा।

मोदी जी : ये किसने कहा है कि मंडी बंद कर रहे हैं? अब तक कोई मंडी बंद हुई है क्या? हम तो बस एक और विकल्प दे रहे हैं। कोई जबरदस्ती थोड़े ही है।

किसान : इतना भोला भी नहीं हूँ जी। सरकारी मंडी उसी तरह बंद होगी जैसे जियो के मोबाइल ने बाकी कंपनियों को बंद कर दिया। जब अंबानी ने जियो का मोबाइल शुरू किया, तब कहा था जितनी मर्जी कॉल करो, जहां मर्जी करो, हमेशा फ्री रहेगा। सब लोग जियो के साथ हो लिये, बाकी मोबाइल की कंपनियां ठप्प हो गईं। फिर जियो कंपनी ने अपने रेट बढ़ा दिए। यही खेल प्राइवेट मंडी में होगा। पहले एक–दो सीजन किसान को सौ-पचास रुपया ज्यादा दे देंगे। इतने में सरकारी मंडी बैठ जाएगी, आढ़ती वहां अपनी दुकान बंद कर देंगे। फिर प्राइवेट मंडी वाले पांच सौ रुपया कम भी देंगे तब भी मजबूरी में किसान को वहीं जाकर अपनी फसल बेचनी पड़ेगी। मुझे पता है सरकारी मंडी एक साल में बंद नहीं होगी, उसे दो-तीन साल लगेंगे। पिछले कुछ महीनों में मंडियों की आमदनी कम हो गई है। आप बताओ, जब मंडियां बैठ जाएँगी तो सरकारी खरीद कहाँ होगी? प्राइवेट मंडी में मुझे सरकारी रेट कैसे मिलेगा?

मोदी जी : अरे भाईमैंने बार-बार बोला है कि एमएसपी थी, है और रहेगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था बनी रहेगी। आपको मुझ पर भरोसा नहीं है?

किसान : भरोसा तो बहुत किया था जी। भरोसा किया था कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। भरोसा तो ये भी किया था कि 21 दिन में कोरोना भाग जाएगा। थाली भी बजाई थी। भरोसा फिर कर लूंगा, बस आप एक बार मेरे साथ मंडी घूम कर देख लो। आपने चने का एमएसपी घोषित किया था रु.5100 प्रति क्विंटल, लेकिन किसान को रु.4500 मिल रहा है। गेहूं का एमएसपी रु.1975, जौ का रु.1600, ज्वार का रु.2620 घोषित हुआ था। आप बताओ इनमें से किसमें किसान को पूरी फसल पर यह न्यूनतम दाम भी मिल रहा है? पिछले सीजन में बाजरा का न्यूनतम रेट था रु.2150, लेकिन किसानों ने बेचा रु.1300 पर। मक्का का रेट था रु.1850, किसान को रु.1000 भी नहीं मिला। ऊपर से जब आप कहते हो “एमएसपी थी है और रहेगी” तो मुझे लगता है मेरे जले पर नमक छिड़क रहे हो आप।

मोदी जी : अब आपको भरोसा कैसे दिलाऊं मैं?

किसान : आप इतनी बड़ी कुर्सी पर बैठे हो। अगर भरोसा दिलाना है तो कानून में लिख कर दे दो ना? जैसे फटाफट तीन कानून बना दिए थे, वैसे ही एक कानून बना दो कि सरकार जो न्यूनतम समर्थन मूल्य या एमएसपी घोषित करती है, कम से कम उतना रेट किसान को गारंटी से मिलेगा। अगर कम मिला तो सरकार भरपाई करेगी। मुझे तो नहीं पता लेकिन मास्टर जी बता रहे थे कि जब मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब 2011 में उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखकर यह मांग की थी कि एमएसपी की कानूनी गारंटी दे दी जाय। अब तो आप खुद ही प्रधानमंत्री हो, मोदी जी। किसी दूसरे की छोड़ो, आप अपनी ही बात मान लो ना!

मोदी जी : भाई आप तो पुरानी बातें लेकर बैठ गए। आगे देखो, इन तीनों कानूनों से आपकी आमदनी बढ़ेगी।

किसान : ये अच्छी याद दिलाई आपने। कुछ साल पहले आपने कहा था न कि किसान की आय छह साल में दुगनी कर देंगे? ठीक-ठीक तो याद नहीं है, लेकिन वो घोषणा किये पांच साल तो हो गए ना? कितनी बढ़ी किसान की आमदनी? चलो आप कोरोना वाले समय को छोड़ दो, इससे पहले जो चार साल हो गए थे तब तक कितनी आय बढ़ी थी? टीवी पर सुना था कि चार साल में पूरे देश के किसान की आय दोगुनी या डयोढ़ी तो छोड़ो, रुपये में दस पैसा भी नहीं बढ़ी है। मेरी आय तो एक पैसा भी नहीं बढ़ी। फिर आप कहोगे पुरानी बात लेकर बैठ गया। कुछ नई बात बताओ आप। कैसे बढ़ेगी मेरी आमदनी?

मोदी जी : और कुछ हो न होबिचौलिए से तो आपका पीछा छूट जाएगा ना?

किसान : वो कैसे होगा जी? अगर अंबानी या अडाणी प्राइवेट मंडी खोलेंगे तो वो कौन सा खुद आकर किसान की फसल खरीदेंगे? वो भी बीच में एजेंट को लगाएंगे। एक की बजाय दो बिचौलिए हो जाएंगे। एक कोई छोटा एजेंट और उसके ऊपर अंबानी या अडाणी। दोनों अपना-अपना हिस्सा लेंगे। फर्क इतना ही है कि आज आढ़ती जितना कमीशन लेता है, तब दोनों बिचौलिए मिला कर उसका दुगुना कमीशन काट लेंगे। आज मैं आढ़ती के तख्त पर जाकर बैठ जाता हूं, वक्त-जरूरत उससे पैसा पकड़ लेता हूं। उसकी जगह कंपनी हुई तो सारा टाइम फोन पकड़ कर बैठा रहूंगा, सुनता रहूंगा कि अभी सारी लाइनें व्यस्त हैं। मास्टर जी बता रहे थे कि नए कानून में आपने किसान और व्यापारी के अलावा “थर्ड पार्टी” को जगह दी है। ये थर्ड पार्टी बिचौलिया नहीं तो और क्या है?

मोदी जी : हमने यह भी व्यवस्था कर दी है कि व्यापारी चाहे तो अपने गोदाम में जितना मर्जी माल रख सकता है। इससे वह आपको बेहतर रेट दे पाएगा।

किसान : आप तो खुद व्यापारी रहे हो मोदी जी। आप ही बताओ, व्यापारी ने दुकान खोली है या धर्मशाला? आप कहते हो तो मान लेता हूं कि ज्यादा स्ट़ॉक रखकर वह ज्यादा मुनाफा कमाएगा और चाहे तो किसान को ज्यादा रेट दे सकता है। लेकिन वो मुझे ज्यादा रेट क्यों देगा? वह अपना गोदाम भरेगा। जब मेरा फसल बेचने का टाइम आएगा उससे पहले कुछ माल बाजार में उतार देगा ताकि रेट गिर जाए। और जब सब किसान फसल बेच लेंगे तब जमाखोरी कर लेगा ताकि भाव चढ़ जाए। मेरे लिए फसल का रेट गिर जाएगा, लेकिन गरीब खरीदार को महंगा पड़ेगा। किसान और मजदूर दोनों को ही मार पड़ेगी, बड़ा व्यापारी मालामाल हो जाएगा। अडानी की कम्पनी ने इतने विशाल गोदाम बना लिये हैं, जिन्हें साइलो कहते हैं। वो अब जितनी फसल चाहे जमा कर लेगा और फिर कालाबाजारी करेगा। उससे आम जनता को बचाने के लिए पुराने कानून में बंदिश लगी हुई थी। आपने उस सीमा को क्यों हटा दिया? शहरी मध्यम वर्ग और गरीब दोनों महंगाई से मारे जाएंगे। मेरे जैसे किसान फसलों के दाम गिरने से मारे जाएंगे।

मोदी जी : ऐसा न हो उसके लिए हमने कॉन्ट्रैक्ट की खेती की व्यवस्था भी कर दी है। फसल बुवाई से पहले ही आप कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट कर लो कि कितने भाव में कितनी फसल बेचोगे।

किसान : मैंने तो कभी ऐसा कॉन्ट्रैक्ट नहीं किया लेकिन उसकी कहानी सुनी है। पंजाब में पेप्सी कंपनी ने आलू चिप्स के लिए आलू के किसानों से 6 रुपये किलो के भाव से कॉन्ट्रैक्ट किया था। पहले साल मंडी में दाम 8 रुपये किलो चल रहा था तो कंपनी ने कांट्रेक्ट दिखाकर किसानों से 6 रुपये किलो में खरीदा। अगले साल जब मंडी में भाव गिरकर 4 रुपये किलो हो गया तो कंपनी मुकर गई। बोली, तुम्हारे आलू की क्वालिटी ठीक नहीं है। किसान बेचारा कंपनी के वकीलों से कहां जाकर लड़ता? अब आप ही बताओ, इतने लम्बे चौड़े कॉन्ट्रैक्ट मैं क्या समझूंगा? वकीलों की फीस कौन देगा? आपके कॉन्ट्रैक्ट से तो हमारा मुँहजबानी ठेका और बँटाई का तरीका ही अच्छा है। कम से कम मुझे कोर्ट-कचहरी के चक्कर तो नहीं काटने पड़ेंगे।

मोदी जी : आपको सारी गलतियाँ हमारी ही नजर आती हैं? पिछली सरकारों के राज में क्या किसान खुश थे?

किसान : अगर किसान तब खुश होते तो आज आप इस कुर्सी पर बैठे न होते। किसान दुखी थे इसीलिए तो आपकी बातों पर भरोसा किया। पिछली सरकारों के निकम्मेपन के चलते हट्टा-कट्टा किसान अस्पताल पहुंच गया। आपकी सरकार ने उसे आईसीयू तक पहुंचा दिया। अब आप उसकी ऑक्सीजन हटाने पर तुले हो। अब भी मन नहीं भरा आपका। पराली जलाने को रोकने के लिए आपने किसानों पर एक करोड़ रुपये के जुर्माने और पांच साल की सजा का कानून भी बना दिया है। मुझे पता लगा कि किसान की सस्ती बिजली बंद करने का कानून भी आप बना रहे हो।

मोदी जी : हो सकता है इन कानूनों में कोई कमी रह गई हो। आप बताओ इनमें क्या बदलाव चाहिए? हम संशोधन के लिए तैयार हैं। तीनों कानून रद्द ही होंयह जिद क्यों?

किसान : अच्छा मजाक करते हो आप। मुझे चाहिए थी पैंट, आपने बना दी सलवार, और अब कहते हो इसमें कांट-छांट करवा लो। संशोधन तो तब होता है जब कानून की मूल भावना सही हो, कोई छोटी-मोटी कसर रह गयी हो। ये तीनों कानून तो किसान को जो चाहिए उसके उलट हैं। इनमें संशोधन से कैसे काम चलेगा? वैसे भी अगर ये मेरे लिए सौगात थी और मुझे पसंद नहीं है तो वापिस क्यों नहीं कर सकता मैं? सौगात में सौदेबाजी की क्या जरूरत? कुछ भी संशोधन करवा लो, बस कानून रद्द नहीं हों, यह जिद क्यों?

मोदी जी : हमने तो उसे भी छोड़ दिया। हमने तो कह दिया कि डेढ़ साल के लिए तीनों कानूनों पर रोक लगा देते हैं। इसमें भी आप नहीं मान रहे?

किसान : अगर रोक लगाने को तैयार हो तो मतलब कुछ गड़बड़ है न? अगर गड़बड़ है तो सिर्फ रोक क्यों लगा रहे हो, रद्द क्यों नहीं कर रहे? डेढ़ साल का ऐसा क्या मुहूर्त निकला है? अगर आपको लगता है कि डेढ़ साल में किसान आपकी बात मान जाएंगे तो अभी रद्द कर दो, डेढ़ साल बाद किसानों से पूछकर नया कानून ले आना। इसे आप अपनी नाक का मामला क्यों बना रहे हो? तीन सौ से ज्यादा किसान शहीद हो चुके हैं, अब तो मान जाओ आप।

मोदी जी : मैं आपको कैसे समझाऊं? ये नेता लोग आपको बहका रहे हैंडरा रहे हैं, गुमराह कर रहे हैं।

किसान : सच बोलूं प्रधानमंत्री जी? वो नहीं, आप और आपके दरबारी बहका रहे हो इतने महीनों से। कभी कहते हो मैं अन्नदाता हूँ, कभी मुझे आतंकवादी बताते हो। कभी कहते हो हमारा आंदोलन पवित्र है, कभी हमें देशद्रोही बताते हो। कहते हो बातचीत के दरवाजे खुले हैं, लेकिन किसानों के खिलाफ केस बनाते हो, रास्ते में कील और तार बिछाते हो। आपका मन खुला नहीं है। मैंने सुना था बड़े नेता बंद रास्तों को खोलते हैं। पता नहीं क्यों आपको चलती हुई चीजों को बंद करने का शौक है। पहले नोटबंदी, फिर देशबंदी और अब किसान की घेराबंदी।

मोदी जी : अब आपने भी नेताओं वाली भाषा बोलनी शुरू कर दी? किसान आंदोलन में राजनीति मत करो भाई!

किसान : मतलब मैं ना करूं लेकिन आप करो, आप की पार्टी करे! किसान आंदोलन ने कोई पार्टी नहीं बनाई, कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया, किसी के पक्ष में प्रचार नहीं किया। बस इतना कहा कि जो पार्टी किसानों के साथ धोखा कर रही है उसे सजा दो। अगर राज की गलत नीति पर सवाल उठाना राजनीति है तो उससे हम कैसे बचें? जब मेरी फसल और नस्ल का सवाल है तो मैं चुप कैसे रहूं?

देखो मोदी जी, ये जो मंडी है न, ये समझो एक छप्पर है मेरे सर पर। छप्पर टूटा है, इसमें पानी टपकता है, इसकी मरम्मत की जरूरत है। लेकिन आप तो छप्पर ही हटा रहे हो। और कहते हो इससे मुझे खुला आकाश दिखाई देगा, रात को चाँद-तारे दिखाई देंगे! बिना छप्पर के जीने की आजादी मुझे नहीं चाहिए…

किसान की नजर आकाश से नीचे उतरी तो देखा कि मोदी जी झोला उठाकर चले जा रहे थे।

वो भी उठ खड़ा हुआ, किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए।

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