कांग्रेस से वेतन लेना उचित नहीं, यह विचार अभिमान सूचक ही है। बिना वेतन के अधिक सेवक मिल ही नहीं सकते । और यदि वेतन लेने वाला कोई भी न रहे तो स्वराज्य-तंत्र आगे नहीं बढ़ सकता।
यह भी एक वहम है कि लोग वेतन लेने वालों को आदर की दृष्टि से नहीं देखते। वेतन लेता हो अथवा न लेता हो यदि कार्यकर्ता जनता की दिलोंजान से सेवा न करेगा तो उसके प्रति लोगों का आदर भाव टिक ही नहीं सकता। मैं अनुभव से कह सकता हूं कि लोगों को दिलोंजान से काम करने वाले को वेतन चुकाना भारस्वरुप नहीं लगेगा । हमें दूसरी जगह वेतन लेकर नौकरी करने की अपेक्षा कांग्रेस से वेतन लेकर उसकी नौकरी करने में प्रतिष्ठा माननी चाहिए।
जो लालच से सेवा करेगा वह गिरे बिना नहीं रहेगा। स्व. गोखले ने फर्ग्युसन कॉलेज को अपने २० वर्ष दिए। उन्हें रॉयल कमीशन आदि से भी रुपए मिलते थे। वे फिर भी कालेज से वेतन लेने में अपना गौरव मानते थे। जब तक हम यह नहीं मानने लगेंगे कि वेतन लेकर सेवा करना मानस्पद है तब तक हमें अधिक संख्या में सेवक नहीं मिलेंगे। इस प्रकार प्रतिष्ठा बढ़ाने का सबसे अच्छा रास्ता यह कि वल्लभभाई स्वयं वेतन लेने लगें। जब मैं सेवा करने लगूंगा तब मैं भी जरूर वैतनिक सेवकों में अपना नाम लिखाऊंगा।
वेतन कितना और किस तरह निश्चित किया जाए, सबको एक-सा दिया जाए या नहीं, सेवकों की परीक्षा रखी जाए या नहीं आदि समस्या जरुर खड़ी होती है; परंतु इनको हल करना ही हमारी कार्य- संचालन की क्षमता की कसौटी होगी।
18 मई 1924
साभार: संपूर्ण गांधी वांग्मय , खंड 24 पृष्ठ 86
(आभार कलानंद मनी)