— कौशल किशोर —
शनिवार की रात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर प्रयागराज जाने वाले 20 तीर्थयात्रियों के मौत की खबर दुखदाई है। इसके पहले ही संगम घाट पर स्नान के लिए उमड़े भक्तों की भीड़ में मौनी अमावस्या पर भगदड़ मचने से तीर्थयात्रियों के हताहत होने की दुःखदायी खबर आई थी। कुंभ मेला प्रशासन की ओर से 30 यात्रियों की मौत और 90 श्रद्धालुओं के घायल होने की बात सार्वजनिक की गई थी। राज्य सभा में मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस भगदड़ में मारे गए तीर्थयात्रियों की संख्या 15000 बता कर सभी को चौंका दिया था।
राम मंदिर के उदघाटन के बाद इस महाकुम्भ में तीर्थयात्रियों की बाढ़ आ गई। मुख्य स्नान पर्व बीत जाने के बाद भी शेष बचे दिनों में यात्रियों की भीड़ ने तीर्थाटन का परिदृश्य बदल दिया है। मौनी अमावस्या पर हुई दुर्घटना का कोई असर श्रद्धालुओं पर नहीं है। श्रद्धा के सामने हादसों का भय पूरी तरह मिट गया है। देश के आम लोगों की इस निर्भीकता के सामने राजनीतिक जमात भय की खेती करती प्रतीत होती है।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से मेले में जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को 25 लाख रुपये की आर्थिक मदद की घोषणा की गई। दिल्ली सरकार ने 10 लाख रुपये की मदद का आश्वासन दिया है।इस अकाल मृत्यु को मोक्ष नहीं मान पाने वाले परिवार के सदस्य अपनों को खोज रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार आस्था की डुबकी लगाने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या पचास करोड़ के पार पहुंच गई है। काश! इसी तत्परता और ईमानदारी के साथ मृतकों का आंकड़ा भी पेश किया जाता।
प्रयागराज में जमा 14 लाख टन कचरे का शीघ्र निस्तारण कर नगर निगम ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को भी हैरत में डाल दिया। सीमेंट कंपनी को यह कचरा बेचने की बात कही गई है। लेकिन 20 जनवरी को इस मामले में हुई सुनवाई के दौरान प्रशासन के सामने कोई वाजिब जवाब नहीं था। इससे यही पता चलता है कि शासन प्रशासन मिल कर सच छिपाने में लगा है। लंबे समय से गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों में कचरा प्रवाहित करने की बात किसी से छिपी नहीं है। ऐसी दशा में हरित प्राधिकरण के सामने पसरा मौन समझ से परे नहीं रहता है।
महाकुंभ मेले की वजह से सड़कों पर जाम की समस्या प्रयागराज से लेकर 300 किलोमीटर आगे तक बढ़ गया। लखनऊ, कानपुर, काशी और आयोध्या समेत ये जाम मध्य प्रदेश और बिहार तक प्रभावित करता रहा। वसंत पंचमी के बाद भीड़ छंटने की संभावना व्यक्त करने वाले प्रशासन के सामने लगातार बढ़ती भीड़ और जाम से निजात पाने का कोई रास्ता नहीं है। ग्रह नक्षत्रों की 144 वर्ष पुरानी स्थिति का जिक्र प्रयागराज बुलाने वाले अब नहीं आने की अपील कर रहे हैं। कुंभ का शाही स्नान अमृत स्नान बनने से पहले अकाल मृत्यु व अव्यवस्था के हवाले हो गया है।
दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर विलाप के बाद आयोजन स्थल पर व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए सरकार ने संवेदनशीलता का वादा किया था। लेकिन अव्यवस्था का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। 2019 में अर्ध कुंभ में प्रयागराज के मंडलायुक्त रहे आशीष गोयल व इलाहाबाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रहे भानु गोस्वामी के साथ विशेष सचिव स्तर के पांच अधिकारियों को भेजने से भी अव्यवस्था दूर नहीं हुई। तमाम दावे खोखले ही साबित हुए।
भगदड़ में मौत का संज्ञान लेकर अखाड़ा परिषद ने साधु-संतों से पहले श्रद्धालुओं के स्नान का प्रस्ताव दिया था। भीड़ के कम होने पर ही संत स्नान करने के लिए संगम की ओर गए। साथ ही शाही स्नान को अमृत स्नान मानने की नीति पर चर्चा शुरु हुई थी।भारतीय संस्कृति की उदारता सहेजने के लिए शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती व आचार्य मिथिलेशनन्दिनी शरण जैसे विद्वानों ने वीआईपी कल्चर के नुकसान का भी जिक्र किया था। अनुशासन और प्राचीन परंपरा की दुहाई देने वाले साधु संतों की यह उदारता जमीन पर बेहतर परिवर्तन का संकेत करे, इसके पहले ही जाम और बदइंतजामी हावी हो गई।
प्रशासनिक अधिकारियों के बदले ये भीड़ प्रबंधन के शोधार्थियों का महत्व जाहिर करता है। कुंभ जैसे महापर्वों में मेला आयुक्त और मेलाधिकारी के पद पर भविष्य में इनकी नियुक्ति पर चर्चा होने लगी है। पर्यटन की नवीन सभ्यता के दौर में तीर्थाटन की संस्कृति को सहेज कर भारत दुनिया को बेहतर पाठ पढ़ा सकता है। इस क्रम में तीर्थयात्रा और सैर-सपाटा के बीच का भेद स्पष्ट होता है।
बारह साल बाद दोहराने वाले इस पर्व के आयोजन में भाग लेने वाले लोगों को आमंत्रित करने वाले इस अव्यवस्था को दूर करने में सफल नहीं हो सके। सरकार और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद को आगे बढ़ कर जिम्मेदारी लेनी चाहिए।सत्य से दूरी कायम रखने के बदले दोषों को स्वीकार किए बिना पुण्य नहीं होगा। हादसों में घायल लोगों व मरने वालों के व्यथित परिजनों तक मदद पहुंचाना चाहिए। ऐसा नहीं करने पर सूबे के मुख्यमंत्री से त्यागपत्र की मांग का औचित्य भी बना रहेगा।
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