महेश कटारे सुगम की पॉंच ग़ज़लें

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पेंटिंग : पंकज पाल


1.

मज़हबों की क्रूरता पर आप भी कुछ बोलिए
सांप्रदायिक धूर्तता पर आप भी कुछ बोलिए

चैन से जीने की राहों को खड़ी रोके हुए
हर सियासी मूर्खता पर आप भी कुछ बोलिए

जो दलित, पीड़ित जनों को रौंदती है रोज़ ही
कायराना शूरता पर आप भी कुछ बोलिए

रोज़ बोला जा रहा है कुछ नये अंदाज़ में
झूठ की इस भव्यता पर आप भी कुछ बोलिए

कष्ट सहकर भी डटे जो कुर्सियों की गोद में
इस सियासी श्रेष्ठता पर आप भी कुछ बोलिए

2.

हवाओं का असर भी है हवाई
तरक्की का सफ़र भी है हवाई

बंधा है कागजों पर बांध कोई
जो निकली है नहर भी है हवाई

सुना है कीमतें कम हो गईं हैं
यक़ीनन ये ख़बर भी है हवाई

मिलेगी हर किसी को नौकरी अब
खुशी की ये लहर भी है हवाई

हुई थी घोषणा स्मार्ट वाली
सुगम अब हर शहर भी है हवाई

3.

जो भी मरने से डरते हैं उनका जीना बेकार गुरू
हो मौत सार्थक मेरी तो मैं करता हूँ इकरार गुरू

ये ज़ुल्म, ज्यादती, दमन चक्र, है सच कहने पर पाबंदी
ये मनमानी, भृष्टाचारी अब नहीं हमें स्वीकार गुरू

अधिकार हमारे छिन जायें हम बैठे भी चुपचाप रहें
हम नहीं नपुंसक इतने भी हम हुए नहीं लाचार गुरू

जो छीन रही हो आज़ादी, जो क़त्ल कर रही स्वाभिमान
हम नहीं चाहते, हो ऐसी ज़ालिम कोई सरकार गुरू

हम भगत सिंह के वंशज हैं बलिदान हमारी थाती है
हम ज़ुल्म के आगे झुकने से अब करते हैं इंकार गुरू

पेंटिंग : उषा रामचंद्रन

4.

सुनाओ मत हमें पावन ॠचाऍं
हमारे पास हैं अपनी व्यथाऍं

कई चाणक्य अपमानित हुए जो
वो खोले फिर रहे अपनी शिखाऍं

उठाकर सर विहंसती फिर रही हैं
नईं कुछ, कुछ पुरानी व्यर्थताऍं

नहीं कर पा रही हैं सार्थक कुछ
स्वयं को कोसती असमर्थताऍं

छुपाकर मुंह कहीं दुबकी हुई हैं
हमारी ऐतिहासिक वीरताऍं

कहीं का भी हमें रहने न देंगीं
कलंकित दौर की संकीर्णताऍं

5.

नतीजे सामने आने लगे हैं
हमारे ज़ख़्म गहराने लगे हैं

मिली है दर्द को नाका़मयाबी
बिखरते अश्क मुस्काने लगे हैं

हमारी मौत पर तुमने कहे जो
तुम्हारे बोल बचकाने लगे हैं

उन्हीं की गलतियां सारी सरासर
हमें दोषी वो ठहराने लगे हैं

बिलखते भूख से भोले जनों को
वो बातें दे के बहलाने लगे हैं

दिलों के दरम्यां दूरी बढ़ा दीं
सड़े उपदेश समझाने लगे हैं

मिटाकर रख दिया है भाईचारा
मसीहा अब तो कहलाने लगे हैं


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