निराला की कविता : राजे ने अपनी रखवाली की

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स्केच , मुकेश बिजोले

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

राजे ने अपनी रखवाली की;

किला बनाकर रहा;

बड़ी-बड़ी फौजें रखीं।

चापलूस कितने सामंत आए।

मतलब की लकड़ी पकड़े हुए।

कितने ब्राह्मण आए

पोथियों में जनता को बाँधे हुए।

कवियों ने उसकी बहादुरी के गीत गाए,

लेखकों ने लेख लिखे,

ऐतिहासिकों ने इतिहास के पन्ने भरे,

नाट्य-कलाकारों ने कितने नाटक रचे

रंगमंच पर खेले।

जनता पर जादू चला राजे के समाज का।

लोक-नारियों के लिए रानियाँ आदर्श हुईं।

धर्म का बढ़ावा रहा धोखे से भरा हुआ।

लोहा बजा धर्म पर, सभ्यता के नाम पर।

खून की नदी बही।

आँख-कान मूँद कर जनता ने डुबकियाँ लीं

आँख खुली – राजे ने अपनी रखवाली की।

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