21 जून। हरियाणा में एक बार फिर साबित हुआ कि खट्टर सरकार की हैसियत कानूनी रूप से सरकार की भले हो, जनता में अब उसका कोई इकबाल नहीं बचा है। मुख्यमंत्री जहां भी जाते हैं, किसानों के विरोध प्रदर्शन से बचने के लिए सरकार या तो दमन का तरीका अख्तियार करती है या चालाकी का कोई ऐसा कदम उठाती है जो आखिरकार काम नहीं आता और उसकी जगहंसाई होती है। दो दिन पहले ऐसा ही हुआ।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को पंचकूला जाना था। सिर्फ पैंतीस किलोमीटर दूर जाने के लिए उन्होंने हेलिकाप्टर सेवा का विकल्प चुना। किसानों के विरोध-प्रदर्शन के डर से दो हैलिपैड बनाए गए थे। जिस हैलिपैड का प्रचार किया गया था, मुख्यमंत्री वहां न उतरकर दूसरे हैलिपैड पर उतरे। लेकिन किसानों के विरोध प्रदर्शन से फिर भी बच नहीं पाये। पुलिस ने 45 किसानों को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन उनकी रिहाई की मांग को लेकर किसान जमा होने लगे और उनकी तादाद लगातार बढ़ती जा रही थी तो न सिर्फ पुलिस को गिरफ्तार किसानों को छोड़ना पड़ा बल्कि बदसलूकी के लिए माफी भी मांगनी पड़ी।
इससे पहले हिसार और टोहाना में भी ऐसा ही हुआ था। मुख्यमंत्री की समस्या यह है कि वह तीन किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने की मांग पर विचार नहीं कर सकते, क्योंकि यह केंद्र के अख्तियार में है और असल में तो एक ही व्यक्ति को निर्णय करना है। और वहां मुंह खोलने की हिम्मत पार्टी में किसी नहीं है। लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं है कि हरियाणा में किसानों को परेशान करने और पुलिस कार्रवाई के खिलाफ मोर्चाबंदी में आए दिन उलझाने तथा तथ्यों को तोड़-मरोड़कर आंदोलन को बदनाम करने का खेल केंद्र के इशारे पर चल रहा है ताकि संयुक्त किसान मोर्चा हरियाणा में कहीं न कहीं उलझा रहे और आगे की रणनीति बनाने, क्रियान्वित करने तथा खास करके उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा को हराने पर अपनी ऊर्जा न लगा सके?
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