एमएससी पर सरकार का दावा प्रचार स्टंट – किसान मोर्चा

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15 सितंबर। संयुक्त किसान मोर्चा ने एमएससी की बाबत सरकार के दावे को झूठा और बहकाने वाला करार दिया है। 8 सितंबर 2021 को पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति में, केंद्र सरकार ने विपणन सीजन 2022-23 के लिए रबी फसलों के एमएसपी की घोषणा करते हुए एमएसपी तय करने के लिए उपयोग की जानेवाली उत्पादन लागत को “कुल लागत” के रूप में वर्णित किया था। एमएसपी तय करने की भाषा में कुल लागत अवधारणा को सी2 के रूप में संदर्भित किया जाता है, और एमएसपी घोषणा का आधार बनाने के लिए किसान इसी की बात करते रहे हैं, मतलब एमएसपी फॉर्मूले के रूप में सी2+50% का इस्तेमाल। जबकि एसकेएम ने एमएसपी तय करने के लिए ए2+FL लागत अवधारणा का उपयोग जारी रखने में सरकार के हठ का विरोध किया था।

संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि जो बात अत्यधिक आपत्तिजनक है वह पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति द्वारा किया गया प्रचार स्टंट है, जिसने ए2+FL को कुल लागत या सी2 के बराबर दिखाया है। इस बीच, सीएसीपी द्वारा जारी “रबी फसलों के लिए मूल्य नीति रिपोर्ट, विपणन सीजन 2022-23” से पता चलता है कि सरकार द्वारा उपयोग की जानेवाली उत्पादन लागत वास्तव में ए2+एफएल लागत है। सीएसीपी दस्तावेज में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ’व्यापक लागत’ सी2 लागत है, जैसा कि पहले था। “सरकार शरारत से व्यापक लागत की परिभाषा को बदलने की कोशिश कर रही है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने ताजा बयान में कहा है कि पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति में ए2+एफ एल लागत को व्यापक लागत के रूप में संदर्भित करके सरकार किसानों को गुमराह कर रही है। पीआईबी को अच्छी तरह से स्थापित लागत अवधारणाओं को और विकृत किये बिना इसपर तुरंत सुधार कर प्रकाशित करना चाहिए।

सरकारी रिपोर्ट से भी किसान की बात की पुष्टि

एनएसओ के 77वें दौर के सर्वेक्षण में मोदी शासन के तहत मंडियों के कमजोर किए जाने पर और अधिक तथ्य सामने आए हैं, जो बदले में कृषि घरानों की वास्तविक कृषि आय में गिरावट से संबंधित हो सकते हैं। एनएसओ की रिपोर्ट से पता चलता है कि 2013 (70वें दौर) और 2019 (77वें दौर) के बीच सरकारी मंडियों में अपनी उपज बेचने वाले किसानों का प्रतिशत काफी कम हो गया है — यह समयावधि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की है।

सर्वे के मुताबिक अधिकांश कृषक परिवार सरकार द्वारा घोषित एमएसपी से अनजान थे, और एपीएमसी मंडियों में फसल बेचने में सक्षम नहीं होने के लिए किसानों ने बुनियादी ढांचे की कमी (यानी मंडियों या खरीदारों की अनुपलब्धता) को जिम्मेदार ठहराया — उल्लेखनीय है कि इन दो दौर के सर्वेक्षणों के बीच एमएसपी और मंडी प्रणाली की स्थिति और खराब हो गयी है। ये तथ्य कॉरपोरेट के पक्ष में सरकारी मंडियों को कमजोर किये जाने के अंदेशे को सही साबित ‌करते हैं, और तीन कृषि कानूनों के वास्तविक उद्देश्य को जाहिर करते हैं।

प्रहार किसान संगठन के साथी जाते हुए ग्वालियर में

महाराष्ट्र में रैली

किसान आंदोलन का उभार अब पूरे देश में दिखाई दे रहा है। बुधवार को महाराष्ट्र के धुले में एक बड़ी किसान-मजदूर रैली का आयोजन किया गया। जयपुर में किसान संसद का आयोजन किया गया जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा के कई नेताओं ने भाग लिया। बिहार के चंपारण में किसान कन्वेंशन का आयोजन किया गया।

कर्नाटक में भारत बंद की तैयारी

27 सितंबर को भारत बंद सफल बनाने के लिए कर्नाटक में राज्य स्तरीय योजना को अंतिम रूप देने के लिए एक बैठक बुधवार को बैंगलोर के फ्रीडम पार्क में हुई। बैठक में कृषक संगठनों समेत लगभग 80 संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिनमें ट्रांसपोर्टर एसोसिएशन, श्रमिक और ट्रेड यूनियन, महिला संगठन, छात्र संगठन, डॉक्टर एसोसिएशन, बैंक कर्मचारी संघ आदि के प्रतिनिधि शामिल थे।

गुजरात के किसान गाजीपुर पहुंचे

इस बीच, फसल काटने के मौसम के बीच भी दिल्ली में मोर्चा मजबूत हो रहा है, जिसमें देश भर से किसान शामिल हो रहे हैं। आज गुजरात से बड़ी संख्या में किसान गाजीपुर मोर्चा पहुंचे। प्रहार किसान संगठन का साइकिल मार्च आज ग्वालियर पहुंचा जो 20 सितंबर को सिंघू मोर्चा पर किसानों से जुड़ेगा।

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