26 अगस्त। बुधवार को एक ऐसी खबर आयी जो अकादमिक दुनिया के साथ ही जनांदोलनों के लिए भी बहुत बुरी खबर थी। विदुषी और ऐक्टिविस्ट गेल ओमवेट का 81 बरस की उम्र में बुधवार को उनके गांव (कासेगांव, जिला सांगली, महाराष्ट्र) में निधन हो गया।
गेल ओमवेट जन्म से अमरीकी थीं पर जीवन का बड़ा हिस्सा उनका भारत में बीता। अमरीका में कॉलेज के दिनों से ही वह आंदलनों में शरीक होने लगी थीं, युद्ध विरोधी प्रदर्शनों में शामिल हुई थीं। बर्कले विश्वविद्यालय से पीएचडी की। महात्मा फुले के जातिप्रथा विरोधी आंदोलन पर शोध-अध्ययन के सिलसिले में वह भारत आयीं और फिर यहीं की होकर रह गयीं। वामपंथी कार्यकर्ता और विद्वान भरत पाटंकर से विवाह किया और भारत में बस गयीं।
एक समाजशास्त्री के रूप में उनका योगदान बेमिसाल है, और इस नाते उन्हें भारत में ही नहीं, दुनिया भर में ख्याति मिली। अकादमिक जगत में विद्यार्थियों और शोधार्थियों से लेकर विद्वानों तक, और समतावादी आंदोलनों से जुड़े कार्यकर्ताओं के लिए भी उनकी किताबें फुले, आंबेडकर के आंदोलनों तथा जातिप्रथा को समझने का जरिया बनीं। उन्होंने काफी लिखा, और बहुत महत्त्वपूर्ण लिखा। उनकी लिखी करीब दो दर्जन किताबों में- दलित एंड द डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशन, अंडरस्टैंडिंग कास्ट : फ्राम बुद्धा टु आंबेडकर एंड बियांड, आंबेडकर : टुवर्ड्स एनलाइटेंड इंडिया, रिइनवेन्टिंग रिवोल्यूशन : न्यू सोशल मूवमेंट्स एंड द सोशलिस्ट ट्रेडिशन इन इंडिया, वी शैल स्मैश दिस प्रिजन इंडियन : वूमेन इन स्ट्रगल- आदि काफी प्रसिद्ध हैं। वह पुणे विश्वविद्यालय में फुले-आंबेडकर पीठ की अध्यक्ष और कोपेनहेगन में इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज में प्रोफेसर रह चुकी थीं।
गेल ओमवेट जातिप्रथा विरोधी आंदोलनों के अलावा वह महिलाओं के आंदोलनों, मानवाधिकारों की रक्षा के आंदोलनों तथा विस्थापन विरोधी आंदोलनों से भी जुड़ी रहीं। इस तरह कमजोर तबकों के प्रति संवेदनशीलता, ज्ञान और सामाजिक कर्म के ताने-बाने से बना उनका व्यक्तित्व सामाजिक अध्ययन व शोध के साथ-साथ समतावादी संघर्षों के लिए भी पथ-प्रदर्शक बन गया, और आगे भी बना रहेगा। उन्हें समता मार्ग की ओर से श्रद्धांजलि।