समता मार्ग
बेंगलुरु/शिवमोगा। केंद्र सरकार और मीडिया का बड़ा हिस्सा यही धारणा फैलाते रहते हैं कि किसान आंदोलन उत्तर भारत के कुछ हिस्सों का ही आंदोलन है। जबकि यह देशव्यापी शक्ल ले चुका है। आंदोलन का विस्तार जहां पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में भी शुरू हो गया है वहीं दक्षिण में भी इसका असर बढ़ रहा है। इस सिलसिले में कर्नाटक के शिवमोगा जिले में हुई किसान पंचायत आंदोलन के विस्तार की ताजा गवाह बनी। इस रैयत (किसान) पंचायत को कर्नाटक के कई किसान संगठनों ने मिलकर आयोजित किया और इसमें भारी तादाद में किसान जमा हुए। कर्नाटक के किसानों का विरोध दोहरा है। एक तरफ जहां वे केंद्र के तीन किसान विरोधी कानून की मुखालफत कर रहे हैं वहीं कृषिभूमि पर कंपनियों के स्वामित्व का रास्ता साफ करनेवाले राज्य सरकार के बनाए कानून के खिलाफ भी वे आवाज उठा रहे हैं। कर्नाटक भाजपा-शासित राज्य है, पर पिछले दिनों जब किसान नेता योगेन्द्र यादव ने राज्य की कई मंडियों का दौरा किया तो एक बार फिर साफ हो गया कि यहां भी किसानों को एमएसपी नहीं मिल रहा है। शिवमोगा में हुई किसान महापंचायत को दर्शनपाल, राकेश टिकैत, युद्धवीर सिंह के अलावा कर्नाटक राज्य रैयत संघ के कोडिहल्ली चंद्रशेखर और चुक्की नंजुदास्वामी ने भी संबोधित किया। महापंचायत का समापन के टिकैत के भाषण से हुआ। उन्होंने कहा कि जिस तरह सरकार हर चीज कंपनियों को बेच रही है, वैसे में किसान चुप नहीं रह सकते। बंगलुरु की सीमाओं पर भी आमलोगों को बैठ जाना चाहिए। टिकैत ने यह भी कहा कि जो भी सच के साथ है, सरकार उसपर हमला बोल रही है। लेकिन यह सब चलेगा नहीं, आखिरकार सरकार को किसान विरोधी कानून वापस लेने होंगे।
इसी सिलसिले में 22 मार्च को बिहार के रोहतास जिले के खड़ारी में किसान महापंचायत हुई जिसे योगेन्द्र यादव समेत कई किसान नेताओं ने संबोधित किया। बिहार ऐसा राज्य है जहां सरकारी मंडियां कोई पंद्रह साल पहले खत्म कर दी गई थीं। अगर सराकारी मंडी खत्म होने से किसानों का भला होता तो बिहार के किसान अन्य राज्यों के किसानों से बेहतर स्थिति में होते। लेकिन बिहार के किसानों की हालत और भी गई-बीती है। बिहार के किसानों का यह अनुभव अनेक वक्ताओं ने बताया। रोहतास की महापंचायत में भी 26 मार्च को होनेवाले भारत बंद को सफल बनाने का निर्णय लिया गया।
(गौरी लंकेश न्यूज डॉट कॉम से साभार)