राष्ट्र निर्माण समागम ने जारी की ‘बनारस घोषणा’

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24 अगस्त। 13-14 अगस्त 2022 को वाराणसी में संघर्ष वाहिनी समन्वय समिति की पहल पर राष्ट्र निर्माण समागम हुआ था जिसमें नौ-दस प्रांतों से करीब दो सौ लोगों ने शिरकत की थी। इनमें मुख्य तौर पर छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से जुड़े रहे लोग, सर्वोदयकर्मी, सोशलिस्ट एक्टिविस्ट, जनसंगठनों से संबद्ध कार्यकर्ता आदि थे। समागम की रिपोर्ट समता मार्ग पर पहले ही आ चुकी है। समागम में हुई चर्चा के आधार पर ‘बनारस घोषणा’ जारी करने का निर्णय हुआ था। स्वाभाविक ही इसे तैयार होने में कुछ समय लगा। समागम में हुए निर्णय के अनुसार ‘बनारस घोषणा’ जारी कर दी गयी है जो इस प्रकार है –

बनारस घोषणा

देश की आजादी की 75वीं और भारत छोड़ो-अगस्त क्रांति की 80वीं वर्षगांठ के मौके पर सद्भावपूर्ण सहअस्तित्व की जीवनभूमि बनारस की धरती पर संघर्ष वाहिनी समन्वय समिति द्वारा आयोजित दोदिवसीय राष्ट्रनिर्माण समागम (13-14 अगस्त 2022) देश की स्थिति पर गहन सहचिन्तन कर अपने इन सर्वसम्मत निष्कर्षों और संकल्पों को जाहिर करता है।

1. आजादी के बाद से अब तक अपने देश ने कई महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। कई अवरोधों के बाद भी हमारा संसदीय लोकतंत्र जीवन्त रहा है। 26 नवम्बर 1949 को “हम भारत के लोगों के द्वारा”आत्मार्पित और 26 जनवरी 1950 से लागू भारतीय संविधान “आइडिया ऑफ इंडिया” यानी भारत की अवधारणा को व्यक्त करता है। आज विकृत और छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर भारत की अवधारणा को, भारत की आत्मा को आहत और अपंग किया जा रहा है। हम इस राष्ट्रघाती षड्यंत्र के खिलाफ एकजुट और संघर्षरत हैं।

2. समागम ने बड़ी शिद्दत से महसूस किया कि अब भारत आम भारतीयों की आकांक्षा और विश्वासभूमि की जगह कुछ सत्ताधीशों और पूँजीशाहों की स्वप्नस्थली बनता जा रहा है। पिछले आठ सालों से देश को नोटबन्दी, लॉकडाउन, जीएसटी उत्सव, ताली-थाली, दीया-बाती, बेटियों के साथ सेल्फी, हर साल दो करोड़ रोजगार, हर खाते में 15 लाख रु. जैसे अनेक जुमलों, तमाशों और मनमाने फैसलों से ठगा और तबाह किया जा रहा है। स्कूल कॉलेज, अस्पताल, रेल, हवाई अड्डे, बैंक सब कुछ पूँजीशाहों को सौंपे जा रहे हैं। भर्तियां बन्द हैं, नौजवान बेकार और दिशाहीन हैं। बुजुर्ग निराधार हैं। बच्चों का विकास भूख की गिरफ्त में ठिठका पड़ा है। आजादी के बाद के सबसे बुरे दौर से देश गुजर रहा है। एक विराट लोकतांत्रिक जनउभार से ही देश को वापस सही पथ पर लाया जा सकता है। हम सब एक बड़े देश बनाओ आंदोलन की नींव बनने को तैयार हैं।

3. पूरे देश में धार्मिक ध्रुवीकरण का एजेंडा जोर-शोर से चलाया जा रहा है। सीएए एवं अन्य कानूनों के जरिये मुस्लिमों को दोयम नागरिकता की ओर धकेला जा रहा है, प्रताड़ित किया जा रहा है। कथित धर्मसंसदों से मुस्लिम वंश संहार की घोषणाएं हो रही हैं। कभी गोमांस, कभी हलाल, कभी हिजाब.. एक के बाद एक मसले उभारकर मुस्लिम समाज को आतंकित किया जा रहा है। मुस्लिम द्वेष की इस संघी राजनीति और संस्कृति के खिलाफ लड़ते रहे हैं, लड़ते रहेंगे।

4. हम सब आजादी आंदोलन के स्वप्नों और मूल्यों तथा संविधान में दर्ज मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक तत्त्वों के थातीदार हैं। हम सब नागरिक समता, सर्वधर्म समभाव, धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल्यों पर हो रहे हमलों के खिलाफ लड़ते रहेंगे।

5. पूँजीपति समर्थक नीतियों के कारण बेरोजगारी, गैरबराबरी, महंगाई बढ़ रही है। बैंकों में जनता का जमा पैसा पूँजीपतियों को सस्ती दर पर दिया जाता है। पूँजीपतियों के कर्ज बड़ी उदारता से माफ कर दिये जाते हैं। सार्वजनिक और सरकारी संस्थानों और उपक्रमों को बेहद सस्ते में पूँजीपतियों को बेच दिया जा रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य को निजी व्यापार के लिए पूरी तरह खुला छोड़ दिया गया है। प्राकृतिक संसाधनों को लूटने की छूट पूँजीपतियों को हासिल है। उनके पक्ष में श्रम और कृषि कानून बदले जा रहे हैं। इन्हीं कदमों के कारण मजदूर, किसान, पशुपालक, कुटीर और लघु उद्यमी और छोटे एवं मध्यम व्यापारी आदि बेहाल और तबाह हैं।

हम बैंकिंग और कर्ज की नीति, निजीकरण की नीति, श्रमिक और कृषक विरोधी कोडों और कानूनों के खिलाफ हैं। अग्निवीर जैसी भर्ती योजना के खिलाफ हैं।

हम खादी ग्रामोद्योग समेत तमाम कुटीर-छोटे-मंझले उद्योगों की वजूद की लड़ाई में, युवाओं के रोजगार आंदोलन में, मजदूरों और किसानों के आंदोलन में शामिल रहने की घोषणा करते हैं।

हम रोजगार की गारंटी, संसाधनों पर जनसमुदाय के हक, हर नागरिक के लिए स्वास्थ्य एवं शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने की गारंटी, हर व्यक्ति के लिए भोजन एवं घर, किसानों को एमएसपी, मजदूरों को मानवीय जीवन निर्वाह लायक मजदूरी जैसे लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आंदोलन बनाएंगे।

पूँजीपतियों के माफ कर्जों समेत सारे कर्जों की वसूली; उन पर कारपोरेट टैक्स, प्रोपर्टी टैक्स लगाने और बढ़ाने की माँग उठाते रहेंगे।

सम्पत्ति, आमदनी और मुनाफा पर न्यूनतम और अधिकतम की एक युक्तिसंगत आनुपातिक हदबंदी के लिए आवाज उठाते रहेंगे।

6. मोदी शासन के इन आठ वर्षों में लोकतंत्र और न्याय पर सबसे ज्यादा हमला हुआ है। प्रांतों में भी तानाशाही और अन्याय के अनेक भाजपाई मॉडल उभरे हैं। असहमति की अभिव्यक्ति और सार्वजनिक प्रतिवाद को अपराध की तरह पेश किया जा रहा है। दलीय, गैरदलीय हर विरोधी पर छापा, मुकदमा, जेल जैसे दमन चलाये जा रहे हैं।

सीबीआई, एनआईए, ईडी जैसी एजेन्सियों को विरोधियों को कुचलने का हथियार बना दिया गया है। चुनाव आयोग, हार्ईकोर्ट-सुप्रीम कोर्ट, आरबीआई जैसे स्वायत्त निकायों को पक्षपातपूर्ण चयन, लोभ और भय के जरिये अपने पक्ष में फैसला करने के लिए बाध्य किया जा रहा है।

यूएपीए , एनएसए जैसे कानूनों का दुरुपयोग कर फर्जी मामले बनाकर भीमा कोरेगांव उत्सव, सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन और अन्य संघर्षों में मुखर व सक्रिय शख्सियतों को जेल में डाल दिया गया है। उन्हें जमानत भी नहीं दी जा रही है।

हम लोकतांत्रिक, संवैधानिक संस्थानों की स्वायत्तता में छेड़छाड़ और हस्तक्षेप, उनके शासकीय दुरुपयोग का विरोध करते हैं।

हम यूएपीए, सीएए जैसे तमाम दमनकारी और विभाजनकारी कानूनों को वापस लेने की माँग करते हैं।

हम विभिन्न फर्जी मामलों में जेल में बन्द सारे आंदोलनकारियों, पत्रकारों, मानवाधिकार कर्मियों और सामान्य जनों की रिहाई की मांग करते हैं। जब तक इनकी रिहाई नहीं होती, रिहाई के लिए आवाज उठाते रहेंगे।

7. सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसले बुनियादी न्यायशास्त्र के खिलाफ हैं, अन्यायकारी हैं। तीस्ता सीतलवाड़, श्रीकुमार तथा हिमांशु कुमार के संदर्भ में आया फैसला तो इंसाफ माँगने अदालत में जाने को ही अपराध ठहरा देता है। खानविलकर पीठ ने ईडी की असीमित और असंवैधानिक शक्तियों को सही ठहरा दिया है। ऐसे फैसले सरकारी दबाव, वैचारिक पूर्वाग्रह के अलावा सेवानिवृत्ति के बाद लाभप्रद नियुक्ति के लोभ से भी चालित होते हैं। हम तीस्ता सीतलवाड़ और हिमांशु कुमार मामले तथा ईडी अधिकार मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार कर वापसी की मांग करते हैं।

यह समागम सेवानिवृत्ति के बाद जजों को लाभ के पद पर जाने से रोकने के लिए कानून बनाना जरूरी समझता है ।

8. पिछले दिनों कथित हिन्दू धर्म संसद के मंचों से मुस्लिमों का कत्लेआम करने के आह्वानों पर भी सरकार मौन रही। प्रशासन और न्यायालय नरम रहा। यह समागम ऐसे साम्प्रदायिक आपराधिक संत समूहों और धर्म संसदों पर कानूनी कार्रवाई की माँग करता है।

9. प्राचीन नगरी वाराणसी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र बनने के बाद से अपनी साझी संस्कृति की विरासत पर हमला झेल रही है। विश्वनाथ कॉरीडोर के लिए सैकड़ों हिन्दू धर्मस्थलों का कब्रगाह बना दिया गया। आस्था और आराधना स्थल को ऐश्वर्य और व्यापार का बाजार बना दिया गया। वहाँ भक्तों और पुजारियों से ज्यादा वर्दीधारी सिपाहियों का बोलबाला दिखता है। समागम इस परिघटना को गलत मानता है।

ज्ञानवापी मस्जिद पर आरोपित विवाद में प्रशासन और निचली अदालत का रवैया चिंताजनक है। दरअसल इसमें कहीं भी आस्था नहीं है। बदले और वर्चस्व की भावना से समाज के तानेबाने को तोड़ने का कुकृत्य है।

हम ज्ञानवापी मस्जिद को ध्वस्त करने की कोशिशों के खिलाफ हैंं।

10. जातिवाद, साम्प्रदायिकता, आदिवासी स्वायत्तता पर हमला, स्त्री पुरुष गैरबराबरी, सम्पति और आमदनी की गैरबराबरी अन्ततः देश को कमजोर करते हैं। इन मसलों पर हम सब समतामूलक भूमिका लेते रहेंगे।

हम सब जाति उन्मूलन, साम्प्रदायिकता का खात्मा, स्त्री-पुरुष समता की धीमी या ठहरी लड़ाई को नयी गति देने की कोशिश करेंगे।

11. 80 बनाम 20 जैसे नकली और नकारात्मक बहुमतवादी नारों को नाकाम करने के लिए मजदूर, किसान, दलित, आदिवासी, स्त्री, अल्पसंख्यक जैसे शोषित-पीड़ित मेहनतकश समूहों के प्रश्नों को लेकर लोकतांत्रिक एकता गढ़नी होगी। हम तमाम जनपक्षीय, लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण धाराओं के बीच मैत्री बनाने की कोशिशों में अपने अधिकतम संभव अंशदान की तत्परता जतलाते हैं।

12. मीडिया की मौजूदा भूमिका बेहद चिंताजनक है। लगभग सारे मीडिया संस्थान साम्प्रदायिक, मुस्लिम विरोधी और सरकारी प्रचारक की भूमिका में हैं। यह लोकतांत्रिक जनमत बनाने-फैलाने की राह की सबसे बड़ी बाधा है। हमें मीडिया की इस भूमिका को बदलने के लिए बड़ा नैतिक जनदबाव बनाना होगा। नागरिक या सोशल मीडिया की ओर से उनके झूठों के खिलाफ सत्य अभियान चलाना होगा।

13. मतदाता आज बेबस या भ्रमित है। मतदाता को सशक्त और निर्णायक बनाने, भ्रमजाल को काटने, चुनाव प्रक्रिया में धन और अपराध के हस्तक्षेप को रोकने के लिए राजनीतिक एवं चुनाव सुधार के मसलों को उठाते रहना हम जरूरी समझते हैं।

14. फासीवाद के बढ़ते हमले को रोकने के लिए; लोकतंत्र, संविधान और न्याय की रक्षा के लिए, भारत की अवधारणा और अस्मिता को बचाने के लिए, समता और स्वतंत्रता की संभावनाओं के बचने के लिए आगामी चुनावों में खासकर 2024 के संसदीय चुनाव में भाजपा को हराना आवश्यक है। इसके लिए एक व्यापक भाजपा विरोधी राजनीतिक वातावरण बनाना होगा। हर सीट पर एकजुट विपक्षी उम्मीदवार के लिए प्रमुख विपक्षी दलों पर दबाव बनाना होगा। हम इस भूमिका की तात्कालिक आवश्यकता महसूस करते हैं और उस भूमिका में पूरी ताकत से लगने का निश्चय करते हैं।

इन निष्कर्षो और संकल्पों के साथ समागम ने कुछ समयबद्ध और मुद्दाकेन्द्रित कार्यक्रमों का भी निर्धारण किया है।

# 2 अक्टूबर से 12 अक्टूबर के बीच रोजगार अधिकार और एमएसपी पर अपनी-अपनी जगहों पर विविध कार्यक्रम आयोजित किये जाएँगे।

# 2 अक्टूबर को हर जगह एक कार्यक्रम किया जाएगा।

# दिसम्बर 2022 तक रोजगार अधिकार, एमएसपी और अन्य स्थानीय तौर पर निर्धारित मसलों पर प्रांतीय या क्षेत्रीय सम्मेलन किये जाएंगे।

# 30 जनवरी, 2023 को गाँधी शहादत दिवस पर सारे सहमना एक विशेष नारे और स्वरूप के साथ कार्यक्रम करें, इसकी कोशिश की जाएगी।

# 2023 की पहली तिमाही में दिल्ली जुटान के लिए किसान, मजदूर, युवा एवं अन्य आंदोलनों और संगठनों से विमर्श किया जाएगा। सहमति की तारीख पर अपने अपने मुद्दों के साथ हम सब दिल्ली में जुटेंगे।

# देश के विविध समूहों के बीच संवाद और साझा कार्यक्रमों को संभव और सुगम बनाने के लिए इस समागम में कई समूहों के साथियों के स्वैच्छिक प्रतिनिधित्व से एक टीम बनायी गयी है।

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