— डॉ. सुनीलम —
सुरेन्द्र मोहन जी के मेरी अंतिम बात फोन पर 16 दिसंबर 2010 की रात्रि को हुई थी। जिसमें उन्होंने मुझे 10 – 11 जनवरी 2010 को छिन्दवाड़ा में अडानी पॉवर प्रोजेक्ट एवं पेंच परियोजना के विरोध में जनसुनवाई, 11 जनवरी की शाम को राष्ट्र सेवा दल की मुलतापी की बैठक में तथा 12 जनवरी को तेरहवें शहीद किसान स्मृति सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए उन्होंने सहमति दी।
मैंने उनसे कहा कि मुलतापी गोली चालन के प्रकरण में डिफेन्स साक्ष्य होने हैं तथा मेरी इच्छा है कि आप गवाही दें, वे सहर्ष तैयार हो गये। हमने मजिस्ट्रेट को बता दिया। उन्होंने 13 जनवरी भी तय कर दी। लेकिन वे उसके पहले ही विदा हो गए। सुरेंद्र मोहन जी ने जिस तरह से जीवन जिया वह देश के समक्ष आदर्श के तौर पर सदा उपस्थित रहेगा।
मुलतापी में 12 जनवरी 1998 को पुलिस गोली चालन के बाद जैसे सुरेन्द्र मोहन जी मुलतापी वासी हो गए थें। गोली चालन की खबर मिलते ही वे मुलताई के परमण्डल गांव में महापंचायत में शामिल हुये। उसके बाद लगातार मुलताई आते रहे। किसान संघर्ष समिति के एक एक किसान नेता की खोज खबर लेते रहे। किसान आन्दोलन कैसे आगे बढ़ाया जाए इसका मार्गदर्शन करते रहे। गोली चालन के बाद उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री श्री इन्द्रकुमार गुजराल के प्रतिनिधि के तौर पर उनका पत्र लेकर वे मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह से मुलताई किसान आन्दोलन के नेताओं को साथ लेकर भोपाल में मिले थे। मुलताई गोली चालन के प्रकरण को उन्होंने प्रशान्त भूषण जी, पीयूसीएल के महामंत्री श्री यशपाल छिब्बर जी के साथ मिलकर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के समक्ष उठाया था। जिसके आधार पर मुझे 10 वर्ष तक सुरक्षा मिलती रही । मैंने 7 चुनाव लड़े। सभी चुनावों में प्रचार के लिए सुरेन्द्र मोहन जी पहुँचे। जब मुझे मुलताई में किसान महापंचायत ने लोकसभा उम्मीदवार घोषित किया तब उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए देवगौड़ा जी के माध्यम से मुझे 4 लाख रुपए की आर्थिक मदद की तथा जब मैं लोकसभा का चुनाव लड़ा तब उन्होंने अपने समाजवादी साथी विजयप्रताप जी के माध्यम से पैसा इकट्ठा कर मुझे 1 लाख रुपये की राशि भिजवायी थी।
आखिरी बार जब दिल्ली गया तब वें 8 दिसम्बर को जनआन्दोलनों पर होने वाले राज्य के दमन के खिलाफ इंसाफ द्वारा राजेन्द्र भवन में आयोजित सम्मेलन में मिले थे। मैंने उन्हें अपने कॉलेस्ट्राल बढ़ने की जानकारी दी तब उन्होंने तुरन्त मुझे सभी परहेज बताते हुए दवाई दी तथा तुरन्त ऑल इण्डिया मेडिकल इंस्टीटयूट में मेरा अपने डॉक्टर के साथ समय तय करा दिया था।
शायद सुरेन्द्र मोहन जी देश के एकमात्र ऐसे नेता थे जो राजनीतिक दल के साथ जुड़े होने के बावजूद भी देश के लगभग सभी जन आन्दोलनों से भी जुड़े हुए थे। जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के लिए तो वे धूरी थे। उन्होंने अपने लंबे राजनीति जीवन में कई उतार चढ़ाव देखे थे।
अम्बाला, चंडीगढ, लखनऊ एवं दिल्ली के प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता के तौर पर उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कार्यालय सम्भाला तथा राष्ट्रीय महामंत्री भी रहे। वे सोशलिस्ट पार्टी के श्री जार्ज फर्नांडिस के साथ महामंत्री रहे तथा जनता पार्टी के भी राष्ट्रीय महामंत्री रहे। जब देशभर के समाजवादी नेता जेल में थे तथा जेपी के आह्वान के बाद जनता पार्टी का गठन हो गया था तब सुरेन्द्र मोहन जी ने अकेले पूरी कांग्रेस की सरकार के खिलाफ मोर्चा सम्भाला था ।
जनता दल के मार्गदर्शक के तौर पर उन्हें जाना जाता था। बाद में जनता दल के विभाजन के बाद वे जनता दल सेक्युलर में रहे लेकिन जब देवगौडा जी ने भाजपा के साथ सरकार का गठन किया तब उन्होंने बैठक आयोजित कर देवगौडा जी को पार्टी से निकाल दिया तथा अपनी पार्टी का गठन किया। वे सोशलिस्ट फ्रंट के सस्थापक थे । बाद में उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी इंडिया को सम्हाला था।
मुझसे वे बार-बार एक ही बात कहते थे कि यदि 1934 में बहुत कम उम्र में तमाम समाजवादी युवा जेपी और लोहिया के साथ मिलकर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी बना सकते थे तो तुम लोग नयी पार्टी बनाने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाते? सुरेन्द्र मोहन जी समाजवादी आन्दोलन तथा देश के राजनीतिक इतिहास का इनसाइक्लोपीडिया थे। जब भी मेरी मुलाकात होती एक बार पूरे समाजवादी आन्दोलन की तथ्यात्मक समीक्षा कर डालते।
उन्होंने राममनोहर लोहिया के जन्मशताब्दी वर्ष को मनाने में अपनी पूरी ताकत झोक दी थी। डॉ लोहिया सप्त क्रान्ति यात्रा को सफल बनाने के लिए सुरेन्द्र मोहन जी ने अत्यधिक रूचि ली थी। सुरेन्द्र मोहन जी सादगी के प्रतीक थे, सांसद होते हुए तथा खादी ग्रामोद्योग के उपाध्यक्ष होते हुए भी उनकी जीवन शैली में कोई अन्तर नहीं आया। जब वे सहविकास सोसायटी में रहने चले गए तब वहाँ से नियमित रूप से डीटीसी की बस से ही वीपी हाउस आना जाना किया करते थे। मुझे उनके साथ लम्बा समय तक वीपी हाउस में रहने का अवसर मिला। सभी जानते हैं कि वीपी हाउस के एक कमरे में मंजू जी और दो बच्चों के साथ कैसे वे रहा करते थे तथा देशभर के समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने साथ ठहराते भी थे तथा खिलाते भी थे। मुझे जब अपना कमरा एनडीए सरकार बनने के बाद खाली करना पड़ा तब उन्होंने मुझे अपना कमरा सौंप दिया। कई वर्षों तक मैं सुरेन्द्र मोहन जी के कार्यालाय और आवास के कमरे में रहा।
वे देशभर के समाजवादी कार्यकर्ताओं को सहज उपलब्ध थे। उनके अपने निजी कार्यों के लिए भी तथा क्षेत्र में कार्यक्रमों के लिए भी। देश में ऐसे सैंकड़ों समाजवादी कार्यकर्ता होंगे जिनका इलाज सम्बन्धी तथा जरूरत पड़ने पर आर्थिक मदद की होगी। सुरेन्द्र मोहन जी ने अपना परिवार पेंशन तथा लेख लिखकर चलाया। सभी जानते हैं कि उनके जीवन का आर्थिक आधार उनके द्वारा लिखे जाने वाला लेख थे। अपने समाजवादी साथियों के लिए वे सदा सब कुछ करने के लिए तैयार रहते थें। एक बार प्रो. विनोद प्रसाद सिंह जी गांधी पीस फाउण्डेशन में ठहरे हुए थे, लेकिन उनका मन वहां नहीं लग रहा था. ज्यों ही मैंने सुरेन्द्र मोहन जी को बताया वें तुरन्त उन्हें अपने साथ बिठाकर सामान सहित घर ले गये। मैंने कहा कि प्रो. साहब 70 वर्ष के हो गए हैं, उनका अभिनन्दन कार्यकम हमें करना चाहिए।
सुरेन्द्र मोहन जी तत्काल सब काम छोड़कर लगभग 300 साथियों के नाम लिखवाकर बोले कि इन सभी साथियों को तुम चिट्ठी भेज दो। मैंने कहा कि आयोजन समिति के आप अध्यक्ष हो जाइए तो वे बोले कि अध्यक्ष हरीकिशोर सिंह जी को बनाओं, मैं उपाध्यक्ष रहूँगा। मैंने पूछा कि कहाँ कार्यकम करेंगे तो वे बोले कि दिल्ली और पटना दोनों जगह कार्यक्रम करेंगे। इस अवसर पर अभिनन्दन ग्रन्थ का सम्पादन करने के लिए उन्होंने सहमति दे दी थी। हांलाकि प्रो.साहब के तैयार न होने के कारण पूरी योजना आगे नहीं बढ़ सकी। बाद में जब मैं जेल में था तब प्रोफेसर साहेब की मौत हो गई थी।
सुरेन्द्र मोहन जी हिन्द मजदूर सभा के आजीवन मार्गदर्शक रहे। उमरावमल पुरोहित जी, एडी नागपाल जी के साथ उनका रोजमर्रा का सम्पर्क रहा करता था। उन्होंने हिन्द मजदूर किसान पंचायत का हिन्द मजदूर सभा में विलय कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विलय के बाद उन्हें यह लगने लगा था कि हिन्द मजदूर सभा के माध्यम से वे समाजवादी आन्दोलन को देश में पुनर्स्थापित कर सके।
सुरेन्द्र मोहन जी ने खादी ग्रामोद्योग के उपाध्यक्ष के तौर पर देश में खादी ग्रामोद्योग को पुनर्स्थापित करने का भरपूर प्रयास किया। उनके प्रयासों के चलते केन्द्र सरकार से अधिक से अधिक संसाधन लाने में वे कामयाब रहें।
सुरेन्द्र मोहन जी का दुनिया के विभिन्न देशों के समाजवादी नेताओं से गहरे तालुकात थे। वे जब तक जनता पार्टी में सक्रिय थे तब तक कई बार सोशलिस्ट इंटरनेशनल की बैठकों तथा इन्टरनेशनल यूनियन ऑफ सोशलिस्ट यूथ के कार्यक्रमों में शिरकत किया करते थे। नेपाली कांग्रेस के नेताओं के साथ सुरेन्द्र मोहन जी का बहुत गहरा एवं आत्मीय सम्बन्ध था। श्री कोईराला के निधन पर जब वें काठमाण्डू गए थे तब उन्हें नेपाल के राष्ट्रपति अपना मेहमान बनाकर बहुत आग्रह के साथ अपने निवास पर ले गए थे। बर्मा में लोकतंत्र की बहाली, तिब्बत की आजादी, भूटान के नेपाल में रह रहे शरणार्थियों से जुड़े हर कार्यक्रम में वे मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित रहते थे तथा धरना, प्रदर्शन के कार्यक्रमों में अगुवाई किया करते थे।
सुरेन्द्र मोहन जी अंग्रेजी की 1946 से निकलने वाली समाजवादियों की पत्रिका, जनता के सम्पादक थे। यह साप्ताहिक पत्रिका समय से निकालना टेढ़ीखीर होने के बावजूद वे जनता डॉ. जीजी परीख के साथ मिलकर नियमित निकालते रहें। देशभर के समाजवादी सुरेन्द्र मोहन जी के सम्पादकीय पढ़ने के लिए ‘जनता का इंतजार किया
करते थे। अपने लेख वे स्वंय टाईप किया करते थे।
सुरेन्द्र मोहन जी ने रोजगार को मौलिक अधिकार में शामिल करने के लिए जनता शासन काल में बड़ी रैली दिल्ली में की थी। कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक की समस्याओं के सुरेन्द्र मोहन जी गहरे जानकार थे। नागाओं की भारत सरकार से बातचीत में सुरेन्द्र मोहन जी ने अहम भूमिका निभाई थी।
सामाजिक न्याय के प्रति सुरेन्द्र मोहन जी की गहरी आस्था थी। मण्डल आन्दोलन का उन्होंने बढ़-चढ़कर नेतृत्व किया। यही कारण था कि सामाजिक न्याय से जुड़े सभी नेता सुरेन्द्र मोहन जी के बहुत नजदीक थे। मुलायमसिंह यादव, रामविलास पासवान, शरद यादव, नीतीश कुमार, लालू यादव के साथ सुरेन्द्र मोहन जी का गहरा रिश्ता था। मुझे याद है जब कैप्टन अब्बास अली पर उनके सुपुत्र कुर्बान भाई ने किताब का लोकार्पण किया था, तब मुलायमसिंह, रामविलास पासवान सहित सभी नेताओं ने समाजवादी एकता का जिक्र करते हुए कहा था कि सुरेन्द्र मोहन जी ही देश में समाजवादी एकता कायम कर सकते हैं। उन्हें अक्सर लोग समाजवादी आन्दोलन का दधीचि ही मानते थे। यानी जिन्होंने समाजवादी आन्दोलन को जीवित बनाए रखने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन आहूत कर दिया।
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