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संस्कृति को ठीक से समझना होगा अन्यथा संस्कृति के नाम पर...
आचार्य नरेंद्रदेव (31अक्टूबर 1889 - 19 फरवरी 1956)
'संस्कृति' का ठीक-ठीक अर्थ कर और उसके स्वरूप को समझकर ही हम आगे बढ़ सकते हैं, अन्यथा...
क्या धार्मिक शिक्षा हमारी शिक्षा-संस्थाओं द्वारा दी जानी चाहिए?
— आचार्य नरेन्द्रदेव —
पुरानी दुनिया में धार्मिक शिक्षा बच्चों की शिक्षा का एक अविच्छिन्न अंग मानी जाती थी। देवमंदिर या गिरजाघर समाज के जीवन...
मेरे संस्मरण – आचार्य नरेन्द्रदेव : छठी व अंतिम किस्त
महात्माजी के आश्रम में चार महीने रहने का मौका मुझे सन् 1942 में मिला। मैंने देखा कि वे कैसे अपने प्रत्येक क्षण का उपयोग...
मेरे संस्मरण – आचार्य नरेन्द्रदेव : पाँचवीं किस्त
वकालत के पेशे में मेरा मन न था। नागपुर के अधिवेशन में जब असहयोग का प्रस्ताव पास हो गया तो उसके अनुसार मैंने तुरंत...
मेरे संस्मरण – आचार्य नरेन्द्रदेव : चौथी किस्त
धीरे-धीरे हममें से कुछ का क्रांतिकारियों से संबंध होने लगा। उस समय कुछ क्रांतिकारियों का विचार था कि आई.सी.एस. में शामिल होना चाहिए ताकि...
मेरे संस्मरण – आचार्य नरेन्द्रदेव : तीसरी किस्त
जापान की विजय से एशिया में नव-जागृति का आरम्भ हुआ। एशिया-वासियों ने अपने खोये हुए आत्मविश्वास को फिर से पाया और अंग्रेजों की ईमानदारी...
समाजवादी समाज और सभ्यता का सपना
— क़ुरबान अली —
(दूसरी किस्त)
सन 1948 में जब सोशलिस्ट, कांग्रेस पार्टी से बाहर आ गये और स्वतंत्र रूप से सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया तो कांग्रेस के...
मेरे संस्मरण – आचार्य नरेंद्रदेव : दूसरी किस्त
हमारे स्कूल में एक बड़े योग्य शिक्षक थे। उनका नाम था– श्री दत्तात्रेय भीखा जी रानाडे। उनका मुझ पर बड़ा प्रभाव पड़ा। उनके पढ़ाने...
भारतीय समाजवाद के पितामह आचार्य नरेंद्रदेव
— क़ुरबान अली —
उन्नीसवीं सदी के मध्यकाल से लेकर बीसवीं सदी की शुरुआत तक भारत ने कई महान सपूत पैदा किये जो न सिर्फ अपने...
मेरे संस्मरण – आचार्य नरेंद्रदेव : पहली किस्त
मेरा जन्म संवत् 1946 में कार्तिक शुक्ल अष्टमी को सीतापुर में हुआ था। हम लोगों का पैतृक घर फैजाबाद में है, किन्तु उस समय...