हमारे लोकतांत्रिक मूल्य क्या इतने कमजोर हैं!

0

— शिवानंद तिवारी —

बिहार आंदोलन के दरमियान पटना के गांधी मैदान में जयप्रकाश जी की सभा होने वाली थी। तारीख का स्मरण नहीं है। सभा के दिन ही प्रभाष जोशी जी दिल्ली से पटना आए थे। उन्होंने जेपी को बताया कि दिल्ली में आपकी गिरफ्तारी होने की चर्चा है। सरकार जल्द ही आपको गिरफ्तार करने वाली है। जेपी ने उस दिन गांधी मैदान वाली सभा में इसका जिक्र करते हुए कहा, हमारे एक मित्र दिल्ली से खबर लेकर आए हैं, दिल्ली में मेरी गिरफ्तारी की तैयारी हो गयी है। मैं चुनौती देता हूं। आइए मुझे गिरफ्तार कीजिए। गंगा में आग लग जाएगी। इस बात को प्रभाष जी ने लिखा है।

जेपी को बिहार पर बहुत भरोसा था। उनके साथ हुए किसी भी जुल्म और अत्याचार को बिहार के लोग सहन नहीं करेंगे। अगर ऐसा कुछ होता है तो लोग इसके विरोध में सड़कों पर उतर आएंगे।

जब देश में इमरजेंसी लगी, जयप्रकाश जी सहित आंदोलन के साथ जुड़े तमाम नेता गिरफ्तार कर लिये गए। लेकिन एकाध अपवाद छोड़ बिहार सहित देश में कहीं भी जेपी की गिरफ्तारी तथा इमरजेंसी के विरुद्ध कोई उल्लेखनीय प्रतिवाद नहीं हुआ।

मुझे याद है, पटना की फुलवारी शरीफ जेल में इमरजेंसी के दरमियान मैं बंद था। जिन लोगों के नाम मीसा या डीआईआर में गिरफ्तार किए जाने वालों में पुलिस की सूची में थे, उनकी गिरफ्तारी के अलावा इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन करते हुए जेल में आने का कोई सिलसिला नहीं था। किसी भी आंदोलन के दरमियान आमतौर पर जेल में नए-नए लोग आंदोलनात्मक कार्यक्रम में गिरफ्तार होकर आते रहते हैं। लेकिन इमरजेंसी के दरमियान ऐसा कोई दृश्य जेलों में नहीं था।

यह रहस्य है कि इमरजेंसी के खिलाफ जब देश में कोई आंदोलन नहीं था, कोई संघर्ष नहीं था तो इंदिरा गांधी ने 1977 में चुनाव क्यों करवाया !

कुलदीप नैयर जी की किताब में मैंने देखा था। उन्होंने लिखा है कि संजय गांधी का इंटरव्यू लेने के लिए वह इंदिरा जी के आवास पर गये थे। इंदिरा जी बरामदे में बैठी थीं। उन्होंने इंदिरा जी से कहा कि आज मैं आपसे नहीं संजय से बात करने आया हूं। संजय गांधी ने कुलदीप नैयर जी से कहा कि चुनाव क्यों करवाया जा रहा है यह आप उनसे (इंदिरा जी से) पूछिए। इस विषय में मैं कुछ भी नहीं जानता हूं। संजय गांधी की बात से स्पष्ट है कि चुनाव कराने का निर्णय इंदिरा जी का था। संभवत: वह निर्णय संजय गांधी के पीठ पीछे लिया गया था।

बताया जाता है कि इंदिरा जी ने चुनाव का निर्णय लेने के पूर्व गुप्तचर विभाग से इस संदर्भ में एक सर्वेक्षण करवाया था। सर्वेक्षण से निष्कर्ष निकला कि अगर अभी चुनाव कराया जाता है तो इंदिरा जी को प्रचंड बहुमत मिलेगा। उसी सर्वे के निष्कर्ष के भ्रम में उन्होंने चुनाव करवाने की घोषणा कर दी थी। लेकिन सवाल है कि चुनाव करवाने की बात उनके मन में क्यों आयी! बगैर किसी प्रतिरोध के जब देश में उनकी तानाशाही चल ही रही थी तो इंदिरा जी ने चुनाव करवाने की जरूरत क्यों महसूस की।

इसके दो कारण समझ में आते हैं। पहला, इमरजेंसी के विरुद्ध और लोकतंत्र के पक्ष में इंदिरा जी पर अंतरराष्ट्रीय दबाव था, विशेष रूप से यूरोप और अमरीका का। दूसरे, जयप्रकाश जी की अंतरराष्ट्रीय ख्याति थी। कुछ दिन पहले जेपी ने इंदिरा जी के ही अनुरोध पर बांग्लादेश के लिए होनेवाले युद्ध में भारत के पक्ष में जनमत बनाने के उद्देश्य से अमरीका और यूरोप का दौरा किया था। उन्हीं जयप्रकाश जी को इंदिरा गांधी ने जेल में बंद कर दिया है, यह किसी को पच नहीं रहा था। अंतरराष्ट्रीय दबाव के पक्ष में यह भी एक कारक रहा होगा।

इनके अलावा शायद अंतरात्मा की आवाज की भी भूमिका हो। जवाहरलाल नेहरू की बेटी, महात्मा गांधी की गोद में खेली और आजादी की लड़ाई में जेल भुगतनेवाली इंदिरा जी को उनकी अंतरात्मा ने भी पुनः लोकतंत्र की बहाली के लिए फटकार लगायी हो। चुनाव हुए। परिणाम भी हमलोगों ने देखा। उस प्रकरण को याद करते हुए और आज के हालात को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि हमारे समाज में लोकतांत्रिक मूल्य बहुत कमजोर हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here