कश्मीर के पहलगाम में हुई हिंसा पर रॉबर्ट वढेरा का बयान, असंवेदनशील बयान है
— परिचय दास —
किसी भी देश की सामाजिक और राजनीतिक चेतना की परिपक्वता का परिचय उसके नागरिक, बुद्धिजीवी और सार्वजनिक जीवन में सक्रिय व्यक्तित्व तब देते हैं जब वे कठिन समय में संयम और...
आपातकाल के पचास साल
— चंचल —
रुदाली आज शुरू कर रहे हो - “ आपातकाल सही था , “ “ जेपी ग़लत थे “ “ डॉ लोहिया और जेपी सीआईए के एजेंट थे “ ? सच कहूँ तो...
मुर्शिदाबाद की हिंसा के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य
— परिचय दास —
।। एक ।।
मुर्शिदाबाद की हालिया हिंसा को मात्र एक प्रशासनिक विफलता या आकस्मिक घटना कह कर टालना, उस गहरी सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संरचना की अनदेखी होगी, जो वर्षों से पश्चिम...
जेपी-लोहिया पर सी.आई.ए.का एजेंट होने का आरोप लगाना दिमागी दिवालियापन
— सुरेंद्र किशोर —
एक किताब का सहारा लेकर एक व्यक्ति ने हाल में लिख दिया कि जेपी और लोहिया सी.आई.ए.के एजेंट थे। जहां तक मेरी जानकारी है, इससे बड़ा झूठ कुछ और नहीं हो...
विचार की भट्टी का असर!
— राजकुमार जैन —
सोशल मीडिया में हर रोज सियासी उठा पठक, बड़े चैनलों के साथ-साथ बेशुमार बन गए अपने निजी प्रसारण केंद्रो की मार्फत ज्ञान बघारने, दूसरों को दोयंम दर्जे का सिद्ध करने के...
कांग्रेस पार्टी को ‘आपातकाल समर्थक कांग्रेसी- कम्युनिस्टों’ से मुक्त करें!
— रणधीर गौतम —
पिछले दो दिनों से कांग्रेसियों, कम्युनिस्टों और समाजवादियों में अपने-अपने इतिहास को लेकर कुछ ज़्यादा ही उत्साह उमड़ पड़ा है। यह स्थिति न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि खतरनाक भी। एक ओर...
राम से शुरू हुए राणा तक आ गए !
— चंचल —
संघ अपना एजेंडा चलाने में सफल रहा है। वह विषयांतर का माहिर है। सरकार में आने के लिए उसने “अतीत“ का सहारा लिया, क्योंकि उसके पास वर्तमान की दिशाहीनता शुरू से रही...
‘आपातकाल का सच’
— जयशंकर गुप्त —
जिसे इंदिरा गांधी और उनकी पार्टी के बड़े बड़े नेता भी जायज नहीं ठहरा सके, उस आपातकाल को हमारे कुछ मित्र आज पांच दशक बाद ‘आपातकाल का सच’ के नाम पर...
राणा सांगा पर बयान का राजनीतिक मनोविज्ञान
— परिचय दास —
रामजी लाल सुमन के राणा सांगा के बयान के पीछे के राजनीतिक मनोविज्ञान को समझने के लिए हमें यह देखना होगा कि ऐतिहासिक आख्यानों को राजनीतिक संदर्भों में कैसे इस्तेमाल किया...
इक्कीसवीं सदी की दहलीज़ पर भगत सिंह
— कनक तिवारी —
भगत सिंह सम्भावनाओं के जननायक बनकर इतिहास में अपनी धारदार उपस्थिति दर्ज कराते हैं। उन्हें देश के लिए जीने की ज़्यादा उम्र नहीं मिली। ईश्वर में भगतसिंह को आस्था नहीं थी।...